गुजरात के मुख्यमंत्री की स्थिति भी वही है जो भाजपा की है। भाजपा गलतफहमी की शिकार है कि उसने जसवंत सिंह को निकालकर पार्टी को वैचारिक प्रदूषण से बचा लिया। गुजरात के मुख्यमंत्री ने एक कदम आगे जाकर तुरंत ही जसवंत सिंह की किताब पर पाबंदी लगाकर कहा कि इस किताब से बल्लभभाई पटेल की छवि खराब हो सकती है अत: राज्य में इसके वितरण और बिक्री पर पाबंदी लगायी जाती है। यह पाबंदी वैसे ही है जैसे शराब के खिलाफ गुजरात में पाबंदी लगी हुई है लेकिन दुकान के पिडवाड़े से शराब खुलेआम बिक रही है,यहां तक कि जहरीली शराब भी बिक रही है।
पटेल की इमेज कहीं नष्ट न हो जाए इसलिए जसवंत सिंह की किताब पर पाबंदी लगाने की जरूरत नहीं थी,सवाल यह है कि क्या पटेल असहिष्णु थे ? क्या पटेल का अभिव्यक्ति की आजादी में विश्वास नहीं था ?क्या पटेल के जीते जी किसी ने उन्ाकी आलोचना नहीं की ?
भाजपा की गुजरात सरकार कूपमंडूकों की सरकार है और बगैर सोचे किसी चीज,किसी भी विचार,किसी धर्म के मानने वालों के बारे में राजाज्ञा,राजदंड कुछ भी जारी करने की पुरानी आदत से लाचार है। आज के यु्ग में किसी भी किस्म की पाबंदी बेमानी है,खासकर किताब पर पाबंदी तो एकदम बेअसर साबित होगी,तसलीमा की किताब के संदर्भ में हम पाबंदियों को धराशायी होते देख चुके हैं।
पटेल देशभक्त थे,लेकिन साम्प्रदायिक नहीं थे, अपने विचारों के पक्के थे,लेकिन भाजपा के नेताओं की तरह रंग बदलने वाले नहीं थे, बुद्धिमान,मेधावी और कुशल राजनीतिज्ञ थे लेकिन भाजपा के नेताओं की तरह बेबकूफ नहीं थे,पटेल के हाथ किसी की हत्या के खून के रंग से सने नहीं थे,उन्होंने कभी किसी समुदाय अथवा धर्म के मानने वालों,खासकर मुसलमान और ईसाई सम्प्रदाय के लोगों के प्रति कभी जहर नहीं उगला,काश ,नरेन्द्र मोदी और उनके गुजरात प्रशासन में बैठे नेतागण यह सब पटेल से सीख पाते। लेकिन मोदी एंड कंपनी से पटेल जैसी बुद्धि,परिश्रम,ईमानदारी, देशभक्ति और राजनीतिक कौशल की उम्मीद करना रेगिस्तान में पानी की बूंद ढूंढने जैसा है।
काश पटेल आज जिंदा होते और देश के गृहमंत्री होते तो अपनी आंखों से वह सब कुछ देखते जो नरेन्द्र मोदी की सरकार ने अब तक किया है ,पटेल यदि आज गृहमंत्री होते तो नरेन्द्र मोदी और उनके भाजपा के नेतागण पटेल की भक्तमंडली की बजाय जेल की सलाखों के पीछे होते।
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशिष्ट पोस्ट
मेरा बचपन- माँ के दुख और हम
माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...
-
मथुरा के इतिहास की चर्चा चौबों के बिना संभव नहीं है। ऐतिहासिक तौर पर इस जाति ने यहां के माहौल,प...
-
लेव तोलस्तोय के अनुसार जीवन के प्रत्येक चरण में कुछ निश्चित विशेषताएं होती हैं,जो केवल उस चरण में पायी जाती हैं।जैसे बचपन में भावानाओ...
-
(जनकवि बाबा नागार्जुन) साहित्य के तुलनात्मक मूल्यांकन के पक्ष में जितनी भी दलीलें दी जाएं ,एक बात सच है कि मूल्यांकन की यह पद्धत...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें