जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
गुरुवार, 27 अगस्त 2009
कंधहार फैसले में क्या आरएसएस शामिल था ?
भूतपूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्रा ने आज एक निजी टेलीविजन को साक्षात्कार में जो कुछ कहा है वह हमारे देश के लिए शर्म की बात है और कम से कम भाजपा के नेतृत्व के लिए यह सीधे देश के खिलाफ विश्वासघात का मामला बनता है। कंधहार प्रकरण के तथ्य धीरे -धीरे सामने आ रहे हैं और बड़े ही पुख्ता तरीके से पेश किए जा रहे हैं, सवाल यह है ब्रजेश मिश्रा साहब ने ये सभी बातें उसी समय देश के सामने क्यों नहीं रखीं ? वे कौन सी मजबूरियां थीं जिनके चलते उनका अब तक मुंह बंद था और अचानक अब उनको सत्य बोलने की जरूरत पड़ रही है ? यही सवाल जसवंत सिंह जी से भी पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने जिस समय कंधहार मसले पर फैसला लिया था और आज जब इतने दिनों बाद उस पर रोशनी डाल रहे हैं तो क्या 'सुरक्षा केबीनेट कमेटी' का फैसला सही था या गलत ? क्या इस तरह का फैसला जब लिया गया और जेल में बंद आतंकियों को लेकर वे जब कंधहार गए थे तब क्या उन्होंने भारत के संविधान की रक्षा की थी ? आज रहस्योदघाटन करके वे क्या गोपनीयता भंग नहीं कर रहे ? यदि नहीं तो उसी समय देश की जनता को क्यों नहीं बताया ? क्या यह फैसला आरएसएस की सहमति से लिया गया था ? यह एक खुला सच है कि आरएसएस से अनुमति लिए बगैर कभी भी कोई बड़ा राजनीतिक फैसला तत्कालीन एनडीए सरकार ने नहीं लिया। आरएसएस के पक्के कार्यकर्त्ता केबीनेट के फैसलों पर कडी नजर रखे थे,जब 'सुरक्षा केबीनेट कमेटी' ने कंधहार प्रसंग में आतंकवादी छोडने का निर्णय लिया था तब संघ परिवार के संगठनों की क्या राय थी ? खासकर संघ प्रमुख के क्या विचार थे ? संघ के नेताओं को जब मालूम पडा तब उनकी राट्रभक्ति कहां थी ? असल में कंधहार मसले पर जो भी फैसला लिया गया उसे केबीनेट मंत्रियों के अलावा संघ प्रमुख जानते थे और उनसे अनुमति या र्निदेश जो भी कहें, मिलने के बाद आतंकवादियों को छोडने का फैसला हुआ था, संघ प्रमुख की इस प्रसंग में अब तक चुप्पी बहुत कुछ संदेश दे रही है। क्या आज भारत सरकार गोपनीयता को राष्ट्रहित में भूलकर 'सुरक्षा केबीनेट कमेटी' के मिनट्स आम जनता के हित में उजागर करेगी ?, क्या वर्तमान केन्द्र सरकार पुरानी सरकार के फैसले को सही मानती है ? इस प्रसंग में उन अफसरों और स्टेनोग्राफर को भी अपना बयान देना चाहिए जो उस मीटिंग में मौजूद था। आखिरकार वह मिडिलमैन कौन था जिसने यह सौदा पटाया ? क्या अपहृत यात्रियों को छुडाने के लिए मोटी रकम भी दी गयी थी ? क्योंकि अभी तक कोई सच नहीं बता रहा, सच छन छनकर काफी धीमी गति से आ रहा है और यह सीधे राजद्रोह का मामला बनता है ? मंत्री के नाते संविधान और गोपनीयता भंग का मामला बनता है। इसके बारे में कानूनी प्रावधान हैं उनके आधार पर कानूनी कार्रवाई करने के बारे में केन्द्र सरकार को कानूनविदों से सलाह मशाविरा करना चाहिए।
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