पश्चिम बंगाल का मौजूदा परिदृश्य भयावह है ,गांवों में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही। महामहिम ने लिखा है लोकसभा चुनाव के बाद राज्य में चारों ओर राजनीतिक हिंसा का ताण्डव चल रहा है। कोई दिन ऐसा नहीं जाता जिस दिन किसी न किसी की राजनीतिक हत्या की खबर न आती हो।प्रतिदिन विधवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। महामहिम ने अपने पत्र में यह भी लिखा है कि मुझसे वाममोर्चा,कांग्रेस,तृणमूल कांग्रेस सभी के प्रतिनिधिमंडल आकर मिल गए हैं सवाल उठता है कि जब इन सभी दलों का साझा लक्ष्य है हिंसा खत्म हो तो हिंसा थम क्यों नहीं रही है।
इसके जबाव में राज्यपाल ने लिखा है पश्चिम बंगाल में तीन तरह की राजनीतिक आग जल रही है। राज्य के राजनीतिक नेताओं की यह जिम्मेदारी है कि वे इस आग को बुझाएं। वे अपने समर्थकों और सदस्यों से कहें कि वे इस आग को बुझाएं। वे हिंसा से उत्तेजित न हों और उत्तेजित न करें। जिससे और हिंसा भड़के। यह उनकी जिम्मेदारी है वे अपने संगठन के अंदर हिंसा को रेखांकित करें और उससे कानून के जरिए निबटें। राज्यपाल ने मांग की है कि राज्य में अवैध हथियारों के फिनोमिना पर तेजी से रोक लगायी जाए। हिंसा करने वालों को कानून के हवाले किया जाए। आम जनता में भरोसा पैदा किया जाए कि उनकी राजनीति और सुरक्षा एक दूसरे से जुड़े नहीं हैं।
राज्यपाल के इस पत्र को राज्य सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए और इस दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए। इस प्रसंग में सबसे मुश्किल बात है राजनीतिक दलों को हिंसा को त्यागने के लिए तैयार करना। राज्य के तीनों राजनीतिक धड़े (वाम मोर्चा,कांग्रेस,तृणमूल कांग्रेस) हिंसा का अपने -अपने इलाकों में सहारा ले रहे हैं। राजनीतिक हिंसा में खुलेआम राजनीतिक दलों की हिस्सेदारी ने राज्य के समूचे वातावरण को असुरक्षा और भय से भर दिया है।
राजनीतिक हिंसा बंद हो इसके लिए सबसे पहले माकपा को ही कदम उठाना होगा और तृणमूल कांग्रेस को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह शांति के माहौल को इलाका दखल के बहाने हिंसा में तब्दील न करे। मुश्किल यह है कि ज्यों ही किसी इलाके में हिंसा थमती है दूसरा दल इलाके में रहने वाले अन्य पार्टी के लोगों को दल छोड़ने के लिए दबाव ड़ालना शुरू कर देता है। यदि व्यक्ति दल नहीं छोड़ता तो उसे सीधे निशाना बनाकर हत्या कर दी जाती है अथवा गांव से बेदखल कर दिया जाता है। यह इलाका दखल और अन्य राजनीतिक दल को नेस्तनाबूद करने वाला फिनोमिना लंबे समय से चल रहा है। पहले इसका वाम ने लाभ उठाया था अब विपक्ष लाभ उठा रहा है और राजनीतिक हिंसाचार करने में लिप्त है।
सभी राजनीतिक दलों को इलाका दखल और राजनीतिक तानाशाही के भाव को त्यागना होगा इसके बिना पश्चिम बंगाल में शांति नहीं लौटेगी। राज्य में शांति का माहौल नहीं लौटने का एक और बड़ा कारण है वे पुराने जमींदार जिनकी जमीनें वाम सरकार ने गरीबों में बांट दी थीं और अब वे जमींदारवर्ग के लोग विपक्ष के साथ एकजुट होकर अपने राजनीतिक बदले ले रहे हैं। यदि गंभीरता के साथ मरने वालों की सामाजिक और जाति हैसियत देखें तो यह फिनोमिना से समझ में आएगा कि पश्चिम बंगाल की ग्राम्य हिंसा में वर्गीय टकराव भी चल रहा है। इसका माओवादियों से लेकर तृणमूल कांग्रेस तक सभी लाभ उठाने की कोशिश में हैं।
साधारण ग्रामीण जो किसी भी पार्टी का सदस्य हो उसे संभवत: यह राजनीतिक दलीय हिंसा दिख सकती है, मीडिया के लिए दलीय जंग है। राज्यपाल साहब के लिए यह ताकत का खूनी खेल है। व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह वर्गीय हिंसा है और वाम मोर्चे की पकड़ जितनी कमजोर होगी,यह हिंसा बढेगी घटेगी नहीं। पुराने जमींदारवर्ग के लोगों ने अपने को नए रूपों में संगठित कर लिया है और वे आक्रामक मुद्रा में हैं। इसके लिए बहुस्तरीय योजना बनानी होगी।
राज्य प्रशासन कानून का शासन स्थापित करे, वाममोर्चा अपना राजनीतिक काम करे और जनता को गोलबंद करे। वाममोर्चे में नंदीग्राम के घटनाक्रम के बाद से राजनीतिक पस्ती छायी हुई है। राजनीतिक पस्ती और अवसाद से माकपा और वाममोर्चा बाहर नहीं निकलता है तो गरीब जनता की अपूरणीय क्षति हो जाएगी और इसके बाद पश्चिम बंगाल की जनता वाम मोर्चे को कभी माफ नहीं करेगी।
वाम मोर्चे को यह भी समझना होगा कि वाम की शक्ति जनता में है हथियारों और हिंसाचार में नहीं। सन 1977 में वाममोर्चा हिंसा का विरोध करके शांति का संदेश लेकर आया था। गुंडे़,हथियारबंद गिरोह,दादा कभी भी माकपा और वाम की शक्ित नहीं थे,सन 1977 के पहले मरकर वाम के कार्यकर्त्ताओं ने जनता का दिल जीता था, मारकर नहीं।
कांग्रेस के हत्यारे गिरोहों को अभी लोग भूले नहीं हैं। गलती यह हुई है कि वाम मोर्चा खासकर माकपा के सांगठनिक ढ़ांचे में अपराधी तत्वों,बमबाजों और असामाजिक तत्वों ने व्यापक रूप में शरण ले ली है और माकपा इनके साथ अपनी दूरी बरकरार रखने में असफल रही है। यही वह कमजोर कड़ी है जहां से राजनीतिक हिंसा पैदा हो रही है,माकपा को अपनी इस कमजोर कड़ी को काटकर फेंकना होगा, इसके कारण चाहे जितनी बड़ी राजनीतिक क्षति क्यों न उठानी पड़े। माकपा के लिए राज्य की जनता के हित सबसे पहले आते हैं, गुण्डों और अपराधी तत्वों के हितों से उसे अलग करना होगा। तब ही सही मायने में शांति का वातावरण भी बन पाएगा।
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