आलोक तोमर जी ,आप 'ईमानदार' हैं,यह बात कम से कम कहनी पड रही है, प्रभाष जोशी पर जितनी भी बहस हुई उसमें सबसे ज्यादा गंभीर बहस मैंने चलाई है,मेरा अनुमान सही था कि आपने अपना लेख बिना पढे लिख मारा। यह टिप्पणी भी बिना पढे ही पचा गए, सचमुच में मजेदार आदमी हैं,गुरू को भी पचा गए और दोस्तों के लिखें को भी हजम कर गए।
आलोक तोमर जी आपने लिखा है ''जगदीश्वर जी का लेख मैंने नहीं पढा है. कहाँ छपा था? '' मैं पता बताने की मूर्खता नहीं करूंगा,आप जानते हैं,नहीं जानते हैं तो जानें और अपने गुरू की रक्षा में जितनी रसद हो खर्च कर दें, कम पडे तो हमसे बोलिएगा, प्रभाष जोशी की हजार गलतियों के बावजूद हम उनके साथ हैं,लेकिन आलोचनात्मक विवेक को ताक पर रखकर नहीं। पगार,शिक्षा,औकात या सामाजिक हैसियत वाली बात इसलिए आयी थी क्योंकि आपने पत्रकारिता के उसूलों के बाहर जाकर लिखा था,मैंने आपसे आपके अंक नहीं पूछे थे मैंने प्रभाषजोशी के खिलाफ लिखी गयी अपनी आलोचना पर जबाव मांगा है, मैं जानता हूं आप पढे लिखे आदमी हैं किंतु गुरूभक्ति में अपने आलोचनात्मक विवेक से विश्वासघात कर रहे हैं। सत्य को देखकर भी अनदेखा कर रहे हैं। एक पत्रकार सत्य से आंखें नहीं चुराता, सत्य को देखे बगैर नहीं लिखता,आपने ठीक मेरा लिखा देखे बगैर किसी के कहने पर सीधे अपना लेख लिख मारा और आप यह भूल गए कि यह प्रेस का दौर नहीं है,इंटरनेट का दौर है, प्रेस के दौर में अखबार भी आपका था,लेखन भी आपका था,जैसा चाहे लिखते रहो किसी का जबाव नहीं छापना था,लेकिन इंटरनेट के दौर में प्रेस से लेकर नेट तक पत्रकार जो कुछ भी लिख रहा है,उसकी गहरी छानबीन चल रही है। प्रभाष जोशी के अब दिन लद गए हैं,अब उनके लिखे पर रोज आलोचनाएं छपेंगी और वे रोज तर्कहीन साबित किए जाएंगे। आप उनके साक्षात्कार पर लिखी मेरी टिप्पणियों पर आप खुलकर लिखें,आप बडे पत्रकार हैं, आपको नेट मालिक और नेट पत्रकार भी जानते हैं, आप जितना चाहेंगे स्पेस मिलेगा यदि कोई स्पेस नहीं देगा तो मैं दूंगा इस अनपढ का भी नेट पर ब्लाग है,वहां जितना चाहेगे आपको लिखने दूंगा। कृपया बहस के मैदान में आएं,अपने गुरूदेव से भी कहें कि वे भी अपने समूचे तर्कशास्त्र और मीडियाशास्त्र को लेकर मैदान में आएं हम वादा करते हैं, आप लोगों के प्रति जो सम्मान और प्यार है,उसे रत्तीभर कम नहीं होने देंगे। वैसे ही आप लोगों की खबर लेंगे,जैसे किसी दोस्त की खबर ली जाती है। यह भी वायदा करते हैं अपनी बातों की पुष्टि के लिए किसी घटिया तर्कशास्त्र और ग्रंथ का सहारा नहीं लेंगे। हम सिर्फ मीडियाशास्त्र और भारतीय इतिहास और परंपरा के बारे में प्रभाष जोशी के विवादास्पद साक्षात्कार के बारे में ही विवाद करेंगे और फिर अनुरोध है अब तक जो लिखा है, उसे खोजें और पढें,गुरूदेव को भी पढाएं, जरूरी हो तो लाइब्रेरी भी जा सकते हैं, गुरूदेव की मदद के लिए,लेकिन लौटकर नेट पर गुरू सहित जरूर आएं, यह नेट है और ज्ञान का सागर है, यह प्रेस का दफतर नहीं है, जिसमें कोई लाईब्रेरी नहीं होती, आपको हम वे सारे संदर्भ नेट पर ही उपलब्ध कराएंगे जो प्रभाष जोशी और आपकी भाषा और मान्यताओं के संदर्भ में प्रथम कोटि के विश्व विख्यात लोगों के हैं। भारत के इतिहास और परंपरा के बारे में भी हम सिर्फ वही सामग्री मुहैयया कराएंगे जो प्रथम कोटि के इतिहासकारों की है, उसके बाद ही तय करना कि प्रभाष जोशी के लिखे को कहां रखें, दोस्त वायदा है अपमानजनक नहीं सम्मानजनक शास्त्रार्थ होगा,ऐसा शास्त्रार्थ होगा जिसे नेट यूजर पढकर स्वास्थ्यलाभ करेंगे। आपको भी अपनी गलती का अहसास कराने के लिए यह बेहद जरूरी है, क्योंकि आपने अभी तक अपनी गलती नहीं मानी है, आपने बगैर पढे बगैर नाम के मेरे बारे में जो बातें कही हैं,एक अच्छे पत्रकार को उसके लिए माफी मांगनी चाहिए वरना साक्षात्कार पर शास्त्रार्थ के लिए तैयार रहना चाहिए ,मैं आपका इंतजार कर रहा हूं कि आप अपनी पोजीशन साफ करें माफी मांगे या शास्त्रार्थ करें, यह मामला व्यक्तिगत की हदें पार गया है,आप और आप जैसे ही लोग प्रभाष जोशी की छवि को इस हद तक पहुंचाने के लिए जिम्मेदार हैं, बेहतर यही होता आप हम लोगों की आपत्तियों पर उनका एक साक्षात्कार लेते और जहां पर आपने अपने गुरूज्ञान का परिचय दिया है, वहां पर ही छाप देते, प्रभाष जोशी नेट पर नहीं जाते हैं, लेकिन आप तो जाते हैं, आप किसी घटिया से मसले पर किसी साखरहित नेता के दरवाजे आए दिन खबर लेने चले जाते हैं लेकिन जब आपके गुरू पर आलोचनाएं लिखी जा रही हैं, तो अपने गुरू के दरवाजे जाकर उनकी राय को एकत्रित करके हमें बताने की भी जरूरत नहीं समझी आपको गाली और अपमान की भाषा में लिखने के लिए समय मिल गया किंतु हमारे लिखे को पढने और उस पर सोचने का समय नहीं मिला, यह कैसे हो सकता है आपको गुस्सा बगैर पढे ही आ गया और आपने अनाप शनाप लिख डाला ,क्या आपकी पत्रकारिता की इस शैली पर पुलित्जर पुरस्कार दिलवाने की मांग करें ? मैंने अपनी पगार की बात इसलिए उठायी थी क्योंकि आपने बडे ही घटिया ढंग से बेरोजगार नौजवानों का आपने अपमान किया हमारा भी अपमान किया ,जरा अपना लिखा गौर से पढें और सोचें आपको प्रायश्चित स्वरूप क्या करना चाहिए ? आलोक तोमर ने लिखा है '' जगदीश्वर जी हिन्दी स्नाकोत्तर परिक्षा में अंक कितने आये थे? मेरे ७० प्रतिशत थे और विश्वविद्यालय में सबसे ज्यादा थे. निरक्षर तो हम भी नहीं हैं.प्रोफेसर पद पर में भी पहुँच जाता...आखिर २१ साल की उम्र में डिग्री कालेज में पढा चूका हूँ. रही जनसत्ता के पतन की दास्तान, तो आपकी चिंता से सहमत हूँ मगर टेंपो और ट्रक टकरा जाएँ तो दोष प्रभाष जी का है? रामनाथ गोयनका जब तक रहे, जनसत्ता शान से चला, पर बाद के लोगों ने उसका राम नाम सत्य कर दिया।'' आलोक तोमर मुश्किल अंकों में है तो यह जान लो प्रभाष जोशी के बारे में जिन लोगों ने भी लिखा है, उनमें कई के बारे में मैं जानता हूं उनके अंक आपसे ज्यादा हैं और तर्क भी वैज्ञानिक हैं, आपके अंक भी कम है तर्क भी अवैज्ञानिक हैं। अखबार की 'धारण क्षमता' किसमें होती है ? अखबार को कौन धारण करता है ?कौन चलाता है ? मालिक या संपादक और पत्रकार ? गोयनकाजी कैसे थे क्या थे,यह यहां विवेचन का विषय नहीं है। आप स्वयं लिख चुके हैं,जनसत्ता अखबार में प्रभाष जोशी सर्वाधिकार सम्पन्न थे, सवाल यही है कि सर्वाधिकार सम्पन्न होने बावजूद,प्रभाष जोशी के धांसू लेखन के बावजूद प्रतिभाशाली पत्रकार उनसे अलग क्यों हो गए अथवा निकाल दिए गए अथवा अखबार का भटटा क्यों बैठ गया ? आलोक तोमर अखबार के बैठ जाने पर मात्र दो पंक्तियां और जिन शुभ चिंतकों ने आलोचना लिखी उन पर पूरा लेख वह भी धमकी और अपमानभरी मर्दवादी मवालियों की भाषा में। बंधु यह संतुलित लेखन नहीं है, कम से जनसत्ता के पतन के बारे में और उसमें संपादक और सर्वाधिकार सम्पन्न व्यक्ति के कार्यकलाप और धारण क्षमता के बारे में आपको मेरे सवालों के जबाव देने ही होंगे। हम चाहते हैं खुलकर बहस हो,दोस्ताना वातावरण है स्वस्थ बहस हो, व्यक्तिगत आपेक्ष किए बगैर बहस हो, आप कम से कम नेट भोगी पत्रकार हैं आप किनाराकशी नहीं कर सकते, इंतजार है,जबाव दें, और असभ्य भाषा के प्रयोग के बारे में प्रायश्चित करें।
( देशकाल डॉट कॉम पर आलोक तोमर की लिखी टिप्पणी पर प्रतिक्रिया,विस्तार से देशकाल डॉट कॉम और मोहल्ला लाइव डॉट काम पर जाकर पढें )
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
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