'ब्लाग' लेखन के दस साल पूरे हो गए हैं। वर्ष 1999 में पीटर महोर्ल्ज ने इस नाम को जन्म दिया था। इसी साल सन फ्रांसिस्को की पियारा लैब ने 'वी ब्लॉग'से आगे बढकर लोगों को संवाद की सुविधा मुहैयया करायी थी,ब्लॉग की दुनिया ने आज सारी दुनिया में संवाद की प्रकृति को बदल दिया है। मार्च, 1999 में ब्रैड फिजपेट्रिक ने 'लाइव जर्नल' नामक वेब पत्रिका बनायी और लेखकों यानी ब्लागरों को इस पर लिखने की सुविधा प्रदान की। जो ब्लॉगरों को होस्टिंग की सुविधा देती थी। सन् 2003 में ओपेन सोर्स ब्लॉगिग प्लेटफार्म वर्डप्रेस का जन्म हुआ और पियारा लैब्स के ब्लॉगर को गूगल ने खरीद लिया। इसके बाद से ब्लॉगिंग की सुविधा सारी दुनिया में आम हो गयी।
'टेक्नोरॉटी' द्वारा 2008 में जारी आंकड़ों के हिसाब से पूरी दुनिया में ब्लॉगरों की संख्या 13.3 करोड़ पहुंच गई है। भारत में लगभग 32 लाख लोग ब्लॉगिंग कर रहे हैं।हिन्दी में भी ब्लॉगिंग लेखन जनप्रियता अर्जित कर रहा है। हिन्दी में ब्लॉगिंग लेखन में बड़ी संख्या में युवा लेखक,पत्रकार और बुद्धिजीवी आ रहे हैं,पुराने और वरिष्ठ लेखक भी ब्लॉग पर पढ़ना सीख रहे हैं,हो सकता है वे भी कुछ समय के बाद आने लगें। अनेक साहित्यिक पत्रिकाएं भी इन दिनों उपलब्ध है, कुछ ब्लॉग हैं जहां जमकर बहसें हो रही हैं। अभिव्यक्ित के वैविध्य के साथ हिन्दी ब्लॉग जगत समृद्ध हो रहा है।
मजेदार बात यह है कि हिन्दी का ब्लागर महज आत्मालाप और आत्मकष्टों का बखान नहीं कर रहा बल्कि बहुत कुछ सर्जनात्मक लिख रहा है। मसलन् क्रांतिकारी लोग क्रांति की बातों और क्रांति के साहित्य के वितरण में लगे हैं,कवि लोग कविता में व्यस्त हैं,टोपी उछालने वाले टोपी उछालने के धंधे में लगे हैं, कुछ युवा ब्लागर भी हैं जो बड़ी ही बेबाकी के साथ जो मन में आ रहा है लिख रहे हैं, हिन्दी में औरतें कम लिख रही हैं।
हिन्दी में विदेशों में रहने वाले ब्लॉगर भी हैं जो काफी रोचक ढ़ंग से लिख रहे हैं,फिल्म समीक्षा के ब्लाग सबसे ज्यादा जनप्रिय हैं,उसके बाद तीखे वाद-विवाद वाले ब्लॉग जनप्रियता के दायरे में आते हैं,व्यक्तिगत तौर पर लिखे जा रहे साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों के ब्लॉगों पर परिचित अपरिचित सभी किस्म के यूजर आ रहे हैं, लेकिन इनकी संख्या कम है।
हिन्दी लेखन में जिस तरह का सामंती माहौल है और बड़े लेखक,संपादक और प्रकाशक जिस तरह की गैर पेशेवर हरकतें कर रहे हैं उसे नष्ट करने में ब्लॉग संस्कृति सबसे कारगर हथियार है। भविष्य में हिन्दी को गैर पेशेवर धंधेखोरों के हाथों मुक्ति दिलाने में ब्लाग लेखन सबसे प्रभावी मंच होगा,इसका प्रकाशन,शिक्षण और भाषणकला पर भी गहरा असर होगा,ब्लॉगरों की बढ़ती संख्या हिन्दी के लिए शुभ संकेत है।
हरामखोर और कूपमंडक लेखकों,आलोचकों का भविष्य में कोई नाम लेने वाला भी नहीं मिलेगा। लेखन और भाषण में पेशेवर रवैयया और भी पुख्ता होगा। हिन्दी ब्लॉग लेखन को अपने को ज्यादा प्रभावशाली बनाने के लिए समाज के ज्वलंत राजनीतिक,आर्थिक,सांस्कृतिक सवालों पर निरंतर सक्रिय करना होगा। हिन्दी के अधिकांश बुद्धिजीवी ,लेखक और ब्लागर जब तक इस दिशा में सक्रिय नहीं होते तब तक ब्लाग जगत को परिवर्तन का उपकरण नहीं बनाया जा सकता।
हिन्दी का ब्लागर जब तक सत्ता की नीतियों पर मुखर नहीं होता तब तक सामाजिक जीवन और सत्ता के गलियारों में ब्लाग का असर दिखाई नहीं देगा। ब्लाग को सत्ता की नीतियों की आलोचना और वैकल्पिक नीतियों का मंच बनाया जाना चाहिए। ब्लाग संस्कृति को राजनीतिक अभिव्यक्ति का प्रभावी माध्यम बनाया जाना चाहिए,इस मामले में ब्लाग जगत में नक्सलवादी अभी भी बाकी विचारधारा के लोगों से आगे हैं।
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
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बेहद ज़रूरी लेख. धन्यवाद. यह सही है कि ब्लाग लेखन का उपयोग सरकारी नीतियों के बारे में खुली बातचीत करनी चाहिए. नक्सलवादी विचारधारा से जुडे लोग अगर इसका अधिक उपयोग कर रहे हैं तो यह भी अच्छी बात है. इस ओर से विचारधारात्मक संघर्ष को उर्जा मिलती है. दस साल का समय छोटा समय है. 33 लाख ब्लाग इस्तेमाल करने वालों में हिन्दी के बारे में कोई जानकारी हो तो बताएं.
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