सुजात हुसैन साहब ने स्वीकार किया है , उन्हें मुस्लिम होने के नाते अनेक बार जांच अधिकारियों का सामना करना पड़ा है,उन्होंने यह भी कहा कि वे अनेकबार अमेरिका जा चुके हैं। लेकिन उन्होने भी इस बात को रेखांकित किया है कि एयरपोर्ट के कर्मचारी अच्छा व्यवहार करते हैं। उन्होंने लिखा है वे एकबार लॉस एंजिल्स से न्यूयार्क की यात्रा कर रहे थे उनके पास बिजनेस क्लास का टिकट था,यह घटना नाइन इलेवन की घटना के एक सप्ताह बाद की है, उनके पास बैठे यात्रियों ने शिकायत की कि वे सुजात साहब के साथ बैठने में असुविधा महसूस कर रहे हैं। इसके बाद कैप्टन ने उनका प्रोफाइल जांच के लिए वाशिंगटन स्वीकृति हेतु भेजा,यह भी कहा कि सारी प्रक्रिया में मात्र 20 मिनट लगेंगे। ज्योंही प्रक्रिया खत्म हुई कैप्टन ने आकर कहा कि आप बैठे रहें। इसके बावजूद मेरे पास बैठे यात्रियों ने मेरे पास बैठने पर आपत्ति प्रकट की और यह मुझे बेहद अपमानजनक लगा।
सुजात साहब ने कैप्टन को बुलाकर कहा तब भी वो लोग नहीं माने तो कैप्टन ने उन लोगों को उतरकर दूसरी हवाईसेवा लेने के लिए कहा। साथ ही कहा कि सुजात साहब को किसी भी तरह वे नहीं उतारेंगे। सुजात साहब ने कहा अमेरिका में किसी भी व्यक्ित को विशिष्ट दर्जा नहीं दिया जाता,सबको समान भाव से देखा जाता है। इसके बावजूद सुजात साहब ने माना है कि उन्हें मुसलमान होने के कारण काफी मर्तबा परेशान होना पड़ा है। इसी क्रम में उन्होंने यह भी कहा कि उनके बेटे को चेन्नई में पांच लोगों ने घर देने से इसलिए मना किया क्योंकि वह मुसलमान था अंत में एक हिन्दू महिला ने उसे किराए पर घर दिया और जब यह लड़का बीमार पड़ा तो उसकी देखभाल,सेवा बगैरह भी की।
सुजात साहब का मानना है कि असहिष्णुओं की दुनिया में मुसलमान का जीना बेहद कठिन है। यह वैसे ही है जैसे किसी दलित को ब्राह्मणों के इलाके में भारत में आज भी घर नहीं मिलता। भारत में भी ऐसे लोग हैं जो मुसलमानों को आए दिन देश छोड़ने की धमकी देते रहते हैं। सुजात साहब ने कहा है यह सच है कि इस्लाम धर्म में कुछ लोग हैं जो अपने को आतंकवादी कहते हैं ,आतंक के जरिए ही सब कुछ तय करना चाहते हैं ।
किंतु मुसलमानों को इनके आधार पर नहीं देखा जाना चाहिए। सुजात साहब ने बहुत सुंदर ढ़ंग से कहा है कि जिन पांच 'अशिक्षित मूर्खों ' ने मेरे बेटे को चेन्नई में घर देने से मना किया उसके आधार पर हिन्दुओं को नहीं देखा जाना चाहिए।
अंत में,शाहरूख खान के मसले पर यही कहना है कि अमेरिकी अधिकारियों ने आज जो बयान दिया है यदि उसमें दिए गए तथ्य सही हैं और शाहरूख उनका खंडन नहीं करते तो यही माना जाएगा कि शाहरूख के साथ कोई बदसलूकी नहीं हुई थी। कम से कम दो बातों के बारे में शाहरूख को अपना नजरिया बताना होगा,पहला जहां जांच के लिए ले जाया गया था वहां पहले से ही भीड़ थी या और भी लोग लाइन में खड़े थे ? दूसरा ,क्या उनका सामान किसी दूसरे हवाई जहाज से आया था ? यदि इस संबंध में उनके विचार अमरीकी अधिकारियों से मेल खाते हैं तो उन्हें यह सोचना चाहिए कि उन्हें बयान देने की मूर्खता नहीं करनी चाहिए थी,सदि शाहरूख ने अपनी असहमति व्यक्त की तो मामला कुछ और ही शक्ल लेगा, लेकिन जिस तरह के व्यवसायिक दांव लगे हैं उसे देखते हुए कोई भी फिल्म अभिनेता अमेरिका के खिलाफ बोलने का साहस नहीं दिखाएगा। इस सबके बावजूद यह सच है कि अमेरिका मेंअश्वेतों, मुसलमानों और तीसरी दुनिया के देशों के नागरिकों के प्रति समान व्यवहार नहीं किया जाता ,इस बात को अनेक सरकारी जांच दस्तावेजों में स्वीकार किया गया है।
शाहरूख खान का जो कमेंट सुनाने का जो भोंडा मीडिया तमाशा पिछले दिनों चला वह हास्यास्पद ही माना जाना चाहिए. खोदा पहाड और निकली चुहिया. शाहरूख देवता है उन तमाम मूर्खों के लिए जो किसी भी चीज पर उछलने के लिए तैयार रहते हैं. सवाल यह होना चाहिए कि एक नागरिक के साथ सलूक ठीक होता है या नहीं. अमरीका के नागरिकों के साथ वहां के अधिकारी अगर अलग तरह का व्यवहार करते हैं तो इसकी वजह यह भी है कि उनके समाज में आम नागरिक की गरिमा की रक्षा के लिए पर्याप्त संवेदनशीलता है. हमारे यहां यह सिर्फ बडे लोगों का विशेषाधिकार है. शाहरूख का खान होना कहीं असुविधाजनक है तो कहीं फायदेमंद भी तो है. कुल मिलाकर उनका खान होना उनके लिए फायदेमंद ही रहा है. यह हो हल्ला बिल्कुल बेकार है. मुसलमान होना किसी का गुनाह नहीं है, पर यह क्या बात हुई कि इस बात का आधार लेकर कि किसी मुसलमान को घर नहीं मिला तो यह इस लिए नहीं मिला क्योंकि मुसलमानों को संदेह की निगाह से देखा जाता है! इमरान हाशमी से लेकर अज़हरउद्दीन तक कई सितारे शिकायत करते हैं पर साहब जब इसी साम्प्रदायिक आधार पर एम पी बन जाते हैं तो वह बिल्कुल अपना हक समझते हैं. मुसलमान के सवाल पर खुल कर बोलने की जरूरत है. हर मुसलमान और हर हिन्दु बराबर है. यह देश हम सबका है. अगर नाज़ायज बात मुसलमान करे तो उसकी निन्दा भी उसी तरीके से करनी चाहिए जिस तरह से एक हिन्दू की होनी चाहिए. खानों और पटौदियों को आम भारतीय मुसलमान का प्रतिनिधि मानने में कठिनाई है.
जवाब देंहटाएं