भारत के बारे में यह कहा जाता है कि यह प्राचीन संस्कृति और परंपरा के रक्षकों का देश है। परंपरा और प्राचीन धरोहर के प्रति कागजों में खूब आदर और सम्मान का भाव प्रदर्शित किया जाता है। बचपन से हमें यही सिखाया जाता है कि हमें अपने देश की प्राचीन धरोहर की रक्षा करनी चाहिए। असल में यह सब पाखंड़ है इसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है। प्राचीन धरोहरों के प्रति हमारे मन में कितना आदर है और केन्द्र और राज्य सरकारें कितनी मुस्तैदी के साथ प्राचीन चीजों की हिफाजत करती हैं इसके बारे में सच यदि सामने रख दिया जाए तो आंखें विश्वास नहीं कर पाएंगी।
तथ्य सामने आए हैं कि राजधानी दिल्ली में ,जहां पर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का केन्द्रीय ऑफिस है वहां पर, 35 राष्ट्रीय प्राचीन इमारतें,स्तूप,मंदिर,कब्रिस्तान गायब हो गए हैं। केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय ने ये तथ्य जारी किए हैं। मंत्रालय का कहना है कि देश की राजधानी में सबसे ज्यादा प्राचीन इमारतें और धरोहर के स्थान गायब हुए हैं। रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में सन् 2006 तक 157 राष्ट्रीय ऐतिहासिक इमारतें थीं, इनमें से 11 प्राचीन ऐतिहासिक इमारतें गायब हैं। कानून के खाते में 1950 में 157 इमारतें सुरक्षित ऐतिहासिक इमारतों की सूची में थीं। जिनमें से सन् 2006 तक आते- आते 11 इमारतें गायब पायी गयी। हमारे देश में राष्ट्रीय महत्व की 3675 इमारतें दर्ज हैं। रामनिवास मिर्धा कमेटी ने 9000 हजार प्राचीन इमारतों की देखभाल के लिए चौकीदार आदि की व्यवस्था का निर्देश दिया था जिसमें से बमुश्किल 4000 इमारतों पर ही यह व्यवस्था हो पायी है। समस्या यह है कि क्या चौकीदार की नियुक्ति से इमारत की सुरक्षा संभव है, जी नहीं, चौकीदार से शुरूआत कर सकते हैं,किंतु संरक्षण का काम तो इसके बाद शुरू होता है। उसके लिए और भी बहुत कुछ करने की जरूरत है।
सवाल उठता है आखिरकार प्राचीन इमारतें कहां गायब हो गयीं । मूलत: अंधाधुंध शहरीकरण, व्यापारीकरण और विकास के नाम पर जो निर्माण कार्य हुए हैं उनमें प्राचीन इमारतें खत्म होती चली जा रही हैं। केन्द्र और राज्य सरकारों की इन प्राचीन इमारतों की देखभाल और साज सज्जा में कोई दिलचस्पी नहीं है। वे तरह तरह के मॉल,शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, गगनचुंबी इमारतें बनाने में दिलचस्पी ले रही हैं। दूसरी ओर मायावती सरकार है जो और कुछ नहीं तो सिर्फ अपने नेताओं की मूर्तियों को लगाने के नाम पर पार्क वगैरह बनाने पर हजारों करोड़ रूपये खर्च कर रही है। उसकी प्राचीन धरोहर के संरक्षण में कोई दिलचस्पी नहीं है। बेहतर होता इस दिशा में केन्द्र सरकार कोई कदम उठाती और प्राचीन इमारतों के संरक्षण और संवर्द्धन की महत्वाकांक्षी योजना में पैसा लगाती,इसके लिए बाजार से भी पैसा उठाया जा सकता था। प्राचीन इमारतों को यदि समय रहते सुरखित नहीं किया गया तो हमें एक समय के बाद अपनी पहचान खोजने में बड़ी तकलीफों का सामना करना पड़ेगा।
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