वाममोर्चा ने पश्चिम बंगाल 31 अगस्त के दिन खाद्य आंदोलन की याद में शानदार रैली की। इस रैली को लेकर तरह -तरह का टीवी कवरेज था,चैनलों में जमकर इस रैली के तात्कालिक राजनीतिक अर्थों को खोलने की कोशिश की गयी। हमेशा की तरह बांग्ला चैनल राजनीतिक आधार पर बंटे हुए थे,चैनलों का इस रैली को लेकर सामयिक राजनीतिक नफा नुकसान खोजना बेतुका प्रयास ही कहा जाएगा। कायदे से खाद्य आंदोलन को लेकर वाममोर्चे की यह नयी पहल नहीं थी, फर्क इतना भर था पहले छोटा जलसा करते थे इसबार बड़ा जलसा किया । इस जलसे में वोट के संदर्भ अर्थ खोजना बेवकूफी होगी। आज से ठीक पचास साल पहले विधानचन्द्र राय के शासनकाल के दौरान तकरीबन तीन लाख लोगों की एक रैली आज के सभा स्थल के पास के मैदान में हुई थी ,उस रैली में भाग लेने वाले लोग अपने लिए अन्न की मांग कर रहे थे, उस समय पश्चिम बंगाल में गांवों में गंभीर खाद्य संकट था और तत्कालीन राज्य सरकार इससे निबटने में बुरी तरह विफल रही थी। गरीबों की उस रैली पर तत्कालीन प्रशासन के इशारे पर पुलिस ने नृशंस लाठीचार्ज किया और आंसूगैस के गोले छोडे,कहने के लिए पुलिस ने गोली नहीं चलायी थी,लेकिन बर्बर लाठीचार्ज के कारण 80 लोग मारे गए,हजारों घायल हुए और 27 हजार से ज्यादा लोगों ने गिरफ्तारी दी।मामला उसी दिन शांत नहीं हुआ बाद में कई दिनों तक रैली में भाग लेने वालों पर विभिन्न इलाकों में जुल्म चलता रहा। इस घटना में मारे गए शहीदों की स्मृति में आज इस घटना के पचास साल होने पर विशाल जनसभा का वाममोर्चे ने आयोजन किया था,यह आयोजन निश्चित रूप से प्रशंसनीय प्रयास कहा जाएगा।
वाममोर्चे के नेता अच्छी तरह जानते हैं कि हाल के लोकसभा चुनाव में हुई भारी पराजय और व्यापक स्तर पर जनता से कटाव को इस तरह के आयोजन से भरना संभव नहीं है। वामनेता यह भी अच्छी तरह जानते हैं कि राज्य में व्यापक पैमाने पर गरीबी और भुखमरी फैली हुई है। राज्य में खाद्य उत्पादन में विगत तीन सालों में गिरावट आयी है, चायबागानों में पिछले दिनों भुखमरी के कारण एक हजार से ज्यादा लोग मौत के मुंह में जा चुके हैं। यह भी एक वास्तविकता है कि विगत 35 सालों में पश्चिम बंगाल में भुखमरी का भी राजनीतिक बंटबारा हुआ है,केन्द्र की जितनी भी योजनाएं गरीबों के लिए हैं वे नौकरशाही और दलीय स्वार्थ की बलि चढ चुकी हैं। गरीब को राजनीतिक दलों के साथ नत्थी कर दिया गया है। वामदल अपने समर्थक को ही केन्द्र सरकार की योजनाओं के लाभ देना चाहते हैं,इसी तरह जहां तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस का वर्चस्व है वहां पर वे भी सिर्फ अपने ही समर्थक गरीबों को योजनाओं के लाभ देना चाहते हैं। तेरा गरीब मेरा गरीब की बंदरबांट के कारण राज्य में खाद्य का पर्याप्त भंडार होने के बावजूद सही वितरण व्यवस्था को राज्य सरकार अभी तक सुनिश्चित नहीं कर पायी है। वाममोर्चे को कायदे से आज के दिन यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि गरीबों के लिए केन्द्र सरकार की सभी योजनाओं को पक्षपात और भेदभाव के बिना लागू किया जाएगा,इस काम में नौकरशाही और पार्टीतंत्र को आड़े नहीं आने दिया जाएगा। वाममोर्चे को आज के अवसर पर ज्योति बसु के द्वारा भेजे संदेश में निहित राजनीतिक संदेश को भी गंभीरता से लेना होगा। वाममोर्चा जनता से कट चुका है, जनता का दिल जीतने के लिए अपनी गलतियों को उसे खुले मन से आम लोगों के बीच में जाकर स्वीकार करना चाहिए और उन तमाम निहितस्वार्थी और अपराधी तत्वों को पार्टी से अलग करना चाहिए जिनकी आम जनता में छवि खराब है। खाद्य आंदोलन का वाममोर्चे के लिए एक ही सबक है कि राज्य में कोई व्यक्ति भूख से नहीं मरेगा। दुर्भाग्य की बात यह है कि वाममोर्चे ने इस सबक को अभी सीखा नहीं है, 35 साल के शासन के बावजूद वितरण प्रणाली को दुरूस्त नहीं किया है,गरीबों के खिलाफ पक्षपात करने वाले लोगों को चाहे वे किसी भी दल के हों, उन्हें कानून के हवाले नहीं किया है। यदि वाम मोर्चा आगामी दिनों में यह सब कर पाता है तो निश्चित तौरपर राज्य की जनता वाम को अपना प्यार देगी,दूसरी बात यह कि वाम को विपक्ष को अपमानित करने अथवा नीचा दिखाने वाली क्षुद्र राजनीति से अलग करना होगा। आज विपक्ष के पास वाम से ज्यादा जनसमर्थन है किसी भी किस्म की अपमानजनक अथवा उपहासजनक टिप्पणी वाम के लिए नुकसान कर सकती है। वाम नेताओं को यह बात सोचनी चाहिए कि अपनी खोई हुई साख वे कैसे अर्जित करते हैं ? ममता बनर्जी को व्यक्तिगत निशाना बनाने की रणनीति बुरी तरह पिट चुकी है,उससे ममता को लाभ मिला है। वाम को अपनी नीति और व्यवहार में साम्य पैदा करना होगा। इस संदर्भ में उन्हें अभी काफी कुछ करना बाकी है, महज एक दो रैली से वाम मोर्चे के प्रति जनता का विश्वास वापस नहीं आएगा। वाम की रैली में पहले भी ज्यादा लोग आते थे इसके बावजूद वाम का लोकसभा चुनाव में सफाया हो गया,रैली को जनप्रियता का मानक नहीं बनाएं। जनता के बीच में राज्य प्रशासन की अकर्मण्य प्रशासन की छवि को जब तक दुरूस्त नहीं किया जाता तब तक रैलियों को राजनीतिक पूंजी में तब्दील नहीं किया जा सकता।
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
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