फलित ज्योतिष मासकल्चर का अंग है। देखने में अहिंसक किन्तु वैचारिक रूप से हिंसक विषय है। सामाजिक वैषम्य, उत्पीडन, लिंगभेद,स्त्री उत्पीडन और वर्णाश्रम व्यवस्था को बनाए रखने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।ग्रह और भाग्य के बहाने सामाजिक ग्रहों की सृष्टि में अग्रणी है। फलित ज्योतिष स्वभावत:लचीला एवं उदार है। 'जो मांगोगे वही मिलेगा' के जनप्रिय नारे के तहत प्रत्येक समस्या का समाधान सुझाने के नाम पर व्यापक पैमाने पर जनप्रियता हासिल करने में इसे सफलता मिली है।सतह पर सबका दिखने वाले इस विषय का समाज के सबसे कमजोर लोगों से कम और समर्थ या ताकतवर लोगों की सत्ता को बनाए रखने से ज्यादा संबंध है।यह स्वभावत: समानता, बंधुत्व और जनतंत्र का विरोधी है। फलत: हमेशा से अधिनायकवाद का प्रभावशाली औजार रहा है। इसका सामाजिक आधार अर्ध्द-शिक्षित और शिक्षितवर्ग है।यही सामाजिकवर्ग फासीवादी और अधिनायकवादी ताकतों का भी सामाजिक आधार है। फ्रेंकफुर्ट स्कूल के समाजशास्त्री एडोर्नो के मुताबिक समाज में भाग्य और फलित ज्योतिष के प्रति जितना आकर्षण बढ़ेगा प्रतिक्रियावादी और फासीवादी ताकतों का उतनी ही तेजी से वर्चस्व बढ़ेगा।
अविवेकवादी परंपरा में एक ओर झाड़-फूंक करके जीने वालों का समूह है, कर्मकाण्ड, पौरोहित्य आदि की तर्कहीन परंपराएं हैं, दूसरी ओर व्यक्ति के निजी हितों की रक्षा के नाम पर प्रचलित फलित ज्योतिषशास्त्र भी है। निजी हितों की रक्षा कैसे करें ? इसका चरमोत्कर्ष हिटलर के उत्थान में देखा जा सकता है। हिटलर ने निजी हितों को चरमोत्कर्ष पर पहुँचाकर समूची मानवता को विनाश के कगार पर पहुँचा दिया था।निजी हितों पर जोर देने के कारण हम निजी हितों के परे देखने में असमर्थ होते हैं।और अंतत: अपने ही हितों के खिलाफ काम करने लगते हैं। अविवेकवाद जरूरी नहीं है कि विवेकवाद की सीमारेखा के बाहर मिले बल्कि यह भी संभव है कि वह स्व को संरक्षित करने की विवेकवादी प्रक्रिया में ही मौजूद हो।
फलित ज्योतिष में कर्मकाण्ड प्रमुख नहीं है। कर्मकाण्ड हाशिए पर है। भाग्य की धारणा में जिनका विश्वास है वे ज्योतिषशास्त्र के बहाने कही गई बातों को आंख मींचकर मानते हैं।उसका तर्क है कि ज्योतिषी की बातों का अस्तित्व है,फलितज्योतिष का अस्तित्व है,वह प्रचलन में है। लाखों लोगों का उस पर विश्वास है इसलिए हमें भी सहज ही विश्वास हो जाता है।फलित ज्योतिषशास्त्र अपने तर्क का उन क्षेत्रों में इस्तेमाल करता है जहां व्यक्ति की बुध्दि प्रवेश नहीं करती।अथवा अखबारों में छपने वाले राशिफल हमेशा उन बातों पर रोशनी डालते हैं जहां पाठक सक्रिय रूप से भाग नहीं लेता। पाठक का इस तरह अनुभव से अलगाव सामने आता है।अनुभव से अलगाव के कारण पाठक अविश्वास और पलायनबोध में जीता है।
भविष्यफल में रोचक और विलक्षण भविष्यवाणियां होती हैं जिन पर पाठक संदेह करता है। यही संदेह आधुनिक अविवेकवाद की सबसे बड़ी पूंजी है। इसके ऐतिहासिक कारण हैं।इनमें सबसे प्रमुख कारण समाज में गंभीरता का अभाव। गंभीरता के अभाव के कारण ज्योतिष,तंत्र,मंत्र, कर्मकाण्ड आदि की तरफ ध्यान जाता है।
फलित ज्योतिष आम तौर पर व्यक्ति के आलोचनात्मक विवेक के बाहर सक्रिय होता है और प्रामाणिक होने का दावा करता है। वह वास्तव जरूरतों के आधार पर कार्य करता है।आम तौर पर ज्योतिषी के पास जब कोई व्यक्ति प्रश्न पूछने जाता है तो वास्तव समस्या के बारे में पूछता है कि क्या होगा या क्या करें ?वह यह मानकर चलता है कि उसके जीवन को ग्रहों ने घेरा हुआ है और ग्रहों की चाल के बारे में ज्योतिषी अच्छी तरह से जानता है।इसके कारण अति-वास्तविकता पैदा हो जाती है।यह अति-वास्तविकता स्वयं में अविवेकपूर्ण है।ऐतिहासिक विकास क्रम में इसका अत्यधिक विकास हुआ है।यह स्व के हितों को नष्ट करती है। जनमाध्यमों में व्यक्त फलादेश इस शैली में होता है जिससे यह आभास मिलता है कि ज्योतिष ही दैनन्दिन समस्याओं के समाधान का एकमात्र प्रामाणिक रास्ता है।साथ ही यह भी अर्थ व्यक्त होता है कि व्यक्ति के भविष्य के बारे में कोई अदृश्य शक्ति है जो जानती है। अर्थात् स्वयं के बारे में अन्य ज्यादा जानता है। राशिफल में ज्यादातर बातें सामाजिक मनोदशा को व्यक्त करती हैं। अमूमन फलादेश में जिज्ञासु की दिशाहीनता और अनिश्चियता का इस्तेमाल किया जाता है।
साधारण आदमी एक घड़ी के लिए धार्मिक होने से इंकार कर सकता है किन्तु भाग्य को लेकर ज्योतिषी के कहे हुए को अस्वीकार करने में उसे असुविधा होती है क्योंकि वह मानता है कि फलादेश का ग्रहों से संबंध है।फिर भी फलित ज्योतिष को अंधविश्वास की मनोवैज्ञानिक संरचना कहना मुश्किल है।फलित ज्योतिष पर विचार करते समय ध्यान रहे कि इसका समाज के बृहत्तम हिस्से से संबंध है अत: किसी भी किस्म का सरलीकरण असुविधा पैदा कर सकता है। इसका व्यक्ति के अहं(इगो) और सामाजिक हैसियत से गहरा संबंध है। इससे लोगों में आत्मविश्वास पैदा होता है। फलादेश की संरचना में अविवेकवाद पृष्ठभूमि में रहता है। सतह पर जो भविष्यफल होता है वह तार्किक प्रतीत होता है।भविष्य में आने वाले खतरों की भविष्यवाणियां इस तरह की जाती हैं कि वे पाठक को भयभीत न करें। भविष्यवाणियां इस तरह की भाषिक संरचना में होती हैं जिससे आस्था बने। फलादेश में हमारी संस्कृति के अविवादास्पद पक्षों पर जोर दिया जाता है। फलादेश में मनोवैज्ञानिक धारणाओं के आधार पर सामाजिक एटीट्यूटस का इस्तेमाल आम प्रवृत्ति है।खासकर मास कम्युनिकेशन के क्षेत्र में छिपे हुए अर्थ को खोजने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।किन्तु छिपा हुआ अर्थ वास्तव अर्थ में अवचेतन नहीं है। अवचेतन वह हिस्सा है जो न तो दिखाई देता है और न दमित है।बल्कि परोक्ष संकेत देता है।
मास कम्युनिकेशन की सामग्री का कृत्रिम तौर पर निर्माता की मानसिकता से संबंध होता है। किन्तु यह कहा जाता है कि यह समूह विशेष की अभिरूचि है।हम तो वही दिखाते हैं जो आडिएंस मांग करती है।इस तरह सामग्री की जिम्मेदारी दूसरे के मत्थे मड़ दी जाती है।यही बात हमें फलित ज्योतिष पर विचार करते समय ध्यान रखनी होगी।ज्योतिषी अपने विचारों को अन्य के मत्थे मड़ देता है।उनका जिज्ञासु की अवस्था से कोई संबंध नहीं होता।वह व्यक्ति को ग्रहों के हवाले कर देता है।
फलादेश में ज्योतिषी की मंशा महत्वपूर्ण होती है। फलादेश की भाषा किसी एक तत्व से बंधी नहीं होती।बल्कि समग्र पैटर्न से बंधी होती है।मसलन् ज्योतिषी हमेशा जिज्ञासु की पारिवारिक पृष्ठभूमि एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का इस्तेमाल करता है।इस तरह का प्रयोग उसे भविष्यफल में मदद करता है।साथ ही वह देश या जातीयता और समसामयिक परिस्थितियों को भी जेहन में रखता है।ये सब बातें जिज्ञासु की क्षति नहीं करतीं अत: उसे इनके इस्तेमाल से किसी तरह की शिकायत भी नहीं होती।भविष्यफल में किसी दिन विशेष या तिथि विशेष को भी ज्योतिषी महत्व देता है।
ज्योतिषी यह मानकर चलता है कि ग्रहों के प्रभाव को खारिज नहीं किया जा सकता।क्योंकि इनका संबंध व्यक्ति के जीवन की समस्याओं से होता है। इसी अर्थ में यह धर्म से भिन्न है।इस तरह की मान्यता में निहित विवेकहीनता व्यक्ति को स्रोत से दूर रखती है। ज्योतिषी व्यक्ति की तर्कहीनता के साथ सद्भाव पैदा करता है।विभिन्न सामाजिक और तकनीकी स्रोतों से पैदा हुई असुविधाओं के साथ सद्भाव पैदा करता है।वह यह भी संप्रेषित करता है कि सामाजिक व्यवस्था की तरह मनुष्य का 'भाग्य' उसकी इच्छा और रूचि से स्वतंत्र है।वह ग्रहों के द्वारा उच्चस्तरीय गरिमा एवं शिरकत की उम्मीद पैदा करता है जिससे व्यक्ति अपने से उच्च धरातल पर बेहतर ढ़ंग से शिरकत कर सके।मसलन् एक व्यक्ति लोक संघ सेवा आयोग की परीक्षा में बैठना चाहता है किन्तु उसमें आत्मविश्वास कम है।ऐसे में यदि उसे किसी ज्योतिषी के द्वारा यह बता दिया जाय कि वह परीक्षा में पास हो जाएगा और आईएएस हो जाएगा तो उसका हौसला बुलंद हो जाता है और वह अपनी कमजोरी या कुण्ठा से मुक्त हो जाता है। असल में ज्योतिष मनोबल बढ़ाने का यह आदिम शास्त्र है।
जनप्रिय मिथ है यदि ग्रहों का सही ढ़ंग से फलादेश हो तो सामाजिक जीवन में आनेवाली बाधाओं को सहज ही संभाला जा सकता है।इस मिथ के आधार पर ज्योतिष को 'रेशनल' बनाने की कोशिश की जाती है। अवचेतन के आदिम आयाम निर्णायक होते हैं। किन्तु फलादेश में उनका उद्धाटन नहीं किया जाता।बल्कि अवचेतन के उन्हीं आदिम आयामों को व्यक्त किया जाता है जो संतोष और पेसिव प्रकृति के होते हैं। इन तत्वों के बहाने ज्योतिषी व्यक्ति को अज्ञात शक्ति के प्रति समर्पित कर देता है।अज्ञात शक्ति के प्रति समर्पण का राजनीतिक अर्थ है अधिनायकवादी ताकत के प्रति समर्पण।इसी तरह भाग्य के लिए ऊर्जा जिन ताकतों से आती है उन्हें एकसिरे से निर्वैयक्तिक रूप में रखा जाता है।ग्रहों का संप्रेषण अमूर्त रूप में होता है। इसकी कोई ठोस शक्ल नहीं होती। यही कारण है व्यक्ति इसके साथ सामंजस्य बिठा लेता है।
फलादेश में बुनियादी तौर पर आधुनिक मासकल्चर की पध्दति का प्रयोग किया जाता है। आधुनिक मासकल्चर की विशेषता है व्यक्तिवाद और इच्छाशक्ति की स्वतंत्रता का प्रतिरोध। इसके कारण वास्तव स्वतंत्रता खत्म हो जाती है। यही पैटर्न फलादेश में भी मिलेगा। फलादेश में यह निहित रहता है कि व्यक्ति जो कुछ भी करता है वह उसके ग्रहों के प्रभाव की देन है।यहां तक कि व्यक्ति का चरित्र और व्यक्तित्व भी ग्रहों की देन है।किन्तु यह व्यक्ति के ऊपर निर्भर करता है कि वह क्या चुने ? सिर्फ एक छोटा सा उपाय करने की जरूरत है।इस पध्दति के माध्यम से व्यक्ति को निजी फैसले लेने के लिए उत्साहित किया जाता है।चाहे निजी फैसले का कुछ भी परिणाम निकले।ऐसा करके ज्योतिषशास्त्र व्यक्ति को ग्रहों के तथाकथित नियंत्रण के बाहर एक्शन में ले जाता है।साथ ही यह बोध बनाए रखता है कि ज्योतिषशास्त्र का कार्य है सलाह देना और व्यक्ति यदि न चाहे तो सलाह को ठुकरा भी सकता है। यदि फलादेश के साथ सामंजस्य बिठा लेते हैं तो ठीक है यदि फलादेश को नहीं मानते तो अनहोनी हो सकती है।परिणाम कुछ भी हो सकते हैं।इसका अर्थ यह भी है कि व्यक्ति की स्वतंत्रता अवांछित परिणामों की ओर ले जा सकती है।अत: इसका इस्तेमाल ही न करो।यानी स्वतंत्रता खोखली धारणा है।यदि फलादेश के अनुसार चलोगे तो सही दिशा में जाओगे यदि व्यक्तिगत फैसले लोगे तो गलत दिशा में जाओगे। इस तरह वह स्वतंत्रता की धारणा को ही अप्रासंगिक बना देता है। यही ज्योतिषशास्त्र की राजनीति है।
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
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