टेलीविजन जनमाध्यम है। सबका माध्यम है। यह धर्म और सम्प्रदाय की सीमाओं को अस्वीकार करता है।इसके बावजूद धर्म के बगैर इसका जिंदा रहना असंभव है।ज्यादा से ज्यादा श्रोता जुटाने के चक्कर में टेलीविजन समाज की अविवेकवादी परंपराओं का इस्तेमाल करता है। अविवेकवादी परंपराएं सहज स्वीकार्य होती हैं।जो सहज स्वीकार्य है वह टेलीविजन का अंग बन सकता है।जटिल और विवेकपूर्ण सहज स्वीकार्य नहीं होता और इस तरह के कार्यक्रमों को प्रायोजक भी जल्दी नहीं मिलते।साथ ही सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि फलित ज्योतिषशास्त्र सामाजिक जीवन में यथास्थिति बनाए रखने का सबसे प्रभावी औजार है।इसे सामाजिक परिवर्तन से घृणा है।इस परिप्रेक्ष्य में सीटीवीएन, अल्फा,एटीएन वर्ल्ड आदि बांग्ला चैनलों और संस्कार,आस्था आदि हिन्दी चैनलों से प्रसारित ज्योतिष कार्यक्रमों पर विचार करने से कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं।पहली बात यह कि ये चैनल टेलीविजन के माध्यम से हिंदुओं को गोलबंद कर रहे हैं।यह साम्प्रदायिक कार्य है। इस कारण इस तरह के प्रसारणों पर तुरंत पाबंदी लगायी जानी चाहिए। टेलीविजन से फलित ज्योतिष का प्रसारण सामाजिक विभाजन और असुरक्षा को बढ़ाता है।
फलित ज्योतिषशास्त्र हमेशा से जनप्रिय रहा है।इसकी जनप्रियता का प्रधान कारण है इसका यथास्थितिवादी होना। ज्योतिषशास्त्र की प्रत्येक देश और धर्म में अलग-अलग परंपराएं हैं। ज्योतिष के इस वैविध्यमय स्वरूप के बावजूद ज्योतिष की हिन्दूवादी परंपरा का टेलीविजन प्रसारण स्वभावत: हिंदुओं को गोलबंद कर रहा है।टेलीविजन चैनलों से ज्योतिष के जिन फार्मूलों,पध्दतियों ,उपायों और भाषा का प्रयोग हो रहा है।वे सभी हिन्दू धर्म के तहत प्रचलित फलित ज्योतिषशास्त्र की देन हैं।यह हमारी अविवेकवादी सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा है।
टेलीविजन की खूबी है कि वह अपने दर्शकों की सामाजिक अवस्था को हमेशा ध्यान में रखता है। यही खूबी फलित ज्योतिषशास्त्र की भी है।फलादेश की प्रकृति से पाठक की प्रकृति का अंदाजा लगाया जा सकता है।चूंकि केबल टेलीविजन के ग्राहक घोषित हैं और उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि भी घोषित है अत: ज्योतिषी को अपने मुहावरे और सलाह तय करने में समय नहीं लगता।साथ ही उसे फुसलाने में भी मदद मिलती है।टेलीविजन पर पूछे जाने वाले सवालों के जबाव पुंसवादी दृष्टिकोण से दिए जाते हैं।सवाल करने वाले सिर्फ हिन्दू होते हैं।टेलीविजन वालों से सवाल किया जाना चाहिए कि क्या उनके चैनल को मुसलमान और ईसाई नहीं देखते? अथवा सवाल प्रायोजित होते हैं ?यदि मुसलमान और ईसाई देखते हैं तो उनके लिए एक जैसी समस्याओं पर उनकी परंपरा के मुताबिक उत्तर क्यों नहीं दिए जाते ?
टेलीविजन से प्रसारित फलित ज्योतिषशास्त्र के सीधा प्रसारण कार्यक्रमों के दर्शकों में सवाल पूछने वालों में ज्यादातर महिलाएं होती हैं।कभी-कभार पुरूषों की संख्या ज्यादा होती है।यह भी देखा गया है कि महिला और पुरूषों की संख्या बराबर होती है।ज्योतिषी का औरतों के प्रति जो व्यवहार होता है वही पुरूषों के प्रति होता है।इसके कारण स्त्रियां ज्यादा आकर्षित होती हैं। क्योंकि ज्योतिषी उनसे समान व्यवहार करता है।साथ ही घरेलू औरतें इससे यह भी महसूस करती हैं कि उनसे वीआईपी की तरह व्यवहार किया जा रहा है।ज्यादातर सवालों के व्यवहारिक उत्तर दिए जाते हैं। ज्योतिषी यह संदेश देता है कि जो बताया जा रहा है उसका पालन करो। पालन कराने वाले की छबि पुरूष की ही होती है।वही समाज में फैसले लेता है।ज्योतिष के पुंसवाद के कारण महिला ज्योतिषी भी मर्दभाषा में ही बोलती हैं। ज्यादातर औरतें सामाजिक जीवन में फैसले के लिए पुरूषों पर निर्भर होती हैं।अत: उन्हे समाधान इसी चीज को ध्यान रखकर सुझाए जाते हैं।जब किसी युवा (30साल तक)को सलाह दी जाती है तो उसमें आनंद और रोमांस के तत्व पर ज्यादा जोर रहता है।जो औरत नौकरी की तलाश में है या नौकरी कर रही है उसे पेशेवर रिश्तों और रवैयये में इजाफा करने की सलाह दी जाती है।युवा नौकरीपेशा लोगों को पेशेवर कौशल में वृध्दि करने की सलाह दी जाती है।जब तय है कि सवाल करने वाला हिन्दू है तो उसके हिन्दू कर्मकाण्ड के मुताबिक समाधान भी तय हैं।यही वह जगह है जहां टेलीविजन विशेष रूप से हिन्दुओं को सम्बोधित करता है।मसलन् एक ही जैसी समस्या से हिन्दू परेशान है और मुसलमान भी परेशान है।या यह भी संभव है कि सवाल करने वाला मुसलमान हो तब क्या ज्योतिषी उसे हिन्दू समाधान देगा या इस्लामिक समाधान देगा।मसलन् किसी मुस्लिम युवक की नौकरी नहीं लगी है या वह गंभीर बीमारी का शिकार है।तब ज्योतिषी क्या समाधान देगा ?जाहिरा तौर पर हमारे टेलीविजन ज्योतिषियों को इस्लामिक परंपरा का ज्ञान ही नहीं है।फर्ज कीजिए जो मुस्लिम युवक गंभीर बीमारी का शिकार है और उसका मारकेश ग्रह का समय चल रहा है।ऐसे में क्या किया जाय ?ज्योतिष में ऐसी स्थितियों के लिए जितने भी उपाय सुझाए गए हैं उनमें से किसी को भी मुसलमान को मानना संभव नहीं है।मसलन् आप उसे महामृत्युंजय का जप करने को बोलें या मारकेश ग्रह का मंत्र जप करने के लिए कहें यह सब इस्लामिक परंपरा में नहीं है।तब क्या मुस्लिम युवक को मरने के लिए छोड़ दें ?यह बात रखने का प्रमुख उद्देश्य है ज्योतिष में निहित साम्प्रदायिकबोध को सामने लाना। ध्यान रहे अधिनायकवादी,सर्वसत्तावादी और फासीवादी ताकतें अपने जनाधार का विस्तार करने के लिए ज्योतिष रूपी अविवेकवादी सांस्कृतिक परंपरा का जमकर इस्तेमाल करती हैं।साथ ही यह भी ध्यान रहे कि ज्योतिषी के द्वारा बताए गए समाधान हमेशा सामान्य और आनंद के समय धार्मिक उपायों पर जोर देते हैं।अथवा यह कोशिश होती है कि किसी अन्य के बहाने उपाय करा दिया जाय।
अमूमन प्रश्र्नकत्ता से यह सवाल किया जाता है कि वह क्या करता है,कितना पढ़ा - लिखा है, कितनी उम्र है। इस सबकी पध्दति पर गौर करें तो फलित ज्योतिष और मनोविज्ञान के बीच के रिश्ते को बखूबी समझ सकते हैं।ज्योतिषी किसी भी व्यक्ति को निराश नहीं करता।वह आशा बनाए रखता है।साथ ही वह यह जानता है कि सवाल करने वाले मध्यवर्ग-निम्नमध्यवर्ग से हैं और इनमें ज्यादा से ज्यादा पाने की लालसा होती है।सब कुछ शॉर्टकट रास्ते से पाना चाहते हैं।इसके लिए वह रत्नधारण करने,ताबीज पहनने और मंत्र जप करने के उपाय सुझाता है।यह सारे उपाय मध्यवर्ग के शॉर्टकट को रास आते हैं।इसमें सफलता प्रमुख है चाहे वह किसी भी तरीके से हासिल की जाय।यह मानसिकता राजनीतिक तौर पर अजनतांत्रिक व्यक्तित्व का निर्माण करती है जिससे अधिनायकवादी और फासीवादी ताकतें लाभ उठाती हैं।
ज्योतिषी फलादेश करते समय हमेशा देश,काल और पात्र का ख्याल रखता है।इसके आधार पर वह सामान्य फार्मूलों के जरिए समाधान देने की कोशिश करता है।ज्योतिषी के लिए भ्रम बनाए रखना जरूरी होता है।साथ व्यक्ति की स्वायत्तता का भी ख्याल करता है।भ्रमों को बनाए रखकर यह आभास देता है कि फलां-फलां आकांक्षाएं हैं जो अभी पूरी होनी बाकी हैं।यदि इन्हें हासिल करना है तो किसी अन्य की मदद लेनी होगी।अन्य में अपने से बड़े की मदद हो सकती है ,ज्योतिषी के द्वारा किया गया अनुष्ठान या उपाय हो सकता है या स्वयं के द्वारा किया गया मंत्र,पूजा आदि हो सकती है।इस सबमें मूल में है अन्य।यह बड़ा होगा या अदृश्य होगा।ज्योतिषी अन्य की सलाह देते समय प्रश्र्नकत्ता के अहं का ख्याल रखता है।वह ऐसा कोई समाधान नहीं देता जो अहं को ठेस पहुँचाए अथवा नीचा दिखाए।यही वजह है कि वह ज्यादातर व्यक्तिगत उपाय सुझाता है।दूसरी बात यह ध्यान में रखता है कि समाज की हायरार्की को व्यक्ति माने।मसलन् किसी व्यक्ति ने पूछा कि मेरा अपने ऑफिस में काम सही ढ़ंग से नहीं चल रहा या मेरा प्रमोशन होगा या नहीं तो ज्योतिषी का सीधा उत्तर होता है कि अपने से बड़े अधिकारी से सामंजस्य बनाकर रखो।
फलादेश की संरचना हमेशा जिज्ञासु की सामाजिक हैसियत और अवस्था को ध्यान रखकर तैयार की जाती है।इसमें सामाजिक और मानसिक तौर पर कमजोर और परनिर्भर व्यक्ति की इमेज होती है।किन्तु यह व्यक्ति कभी अपनी कमजोरी स्वीकार नहीं करता और न ज्योतिषी कभी इसे सीधे इस रूप में पेश भी नहीं करता।बल्कि संरचना इस तरह तैयार की जाती है जिसमें साफ तौर पर दिखाई देता है कि व्यक्ति सामाजिक ढ़ांचे में कमजोर है।फलादेश में उसकी सामाजिक कमजोरियों के चारित्रिक गुणों को समाहित कर लिया जाता है।फलादेश के ढ़ांचे में इन कमजोरियों को शामिल करने से व्यक्ति अपने को मजबूत महसूस करता है।यहां सब कुछ भाषा के खेल में व्यक्त होता है।मसलन् जब कोई व्यक्ति यह पूछता है कि मेरा मुकदमा चल रहा है।मैं जीतूँगा या हारूँगा।ज्योतिषी बड़े कौशल के साथ जबाव देता है कि समय थोड़ा खराब चल रहा है।कुण्डली में फलां-फलां ग्रह कमजोर है।इसके लिए फलां मंत्र जप करो, फलां रत्न पहनो,फलां देवता की किसी दिन विशेष को पूजा करो।इससे स्थिति में सुधार होगा।इस तरह के उत्तर आम हैं।असल में ग्रह की कमजोर या खराब स्थिति के बहाने व्यक्ति की कमजोर और परनिर्भर अवस्था की ओर ही ध्यान खींचा जाता है।इससे उबरने का वास्तव तरीका सुझाने की बजाय ज्योतिषी 'छद्म भूमिका' के लिए मजबूर करता है।मंत्र,तंत्र,रत्न आदि 'छद्म भूमिकाएं' हैं।इस क्रम में व्यक्ति के अहं और बौध्दिक कमजोरी को छिपाने में मदद मिलती है। सामाजिक अहं को संतुष्टि मिलती है। ज्यादातर समय हम छद्म गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं।ज्योतिषी इस छद्म वातावरण का बड़े कौशल के साथ इस्तेमाल करता है।साथ ही छद्म गतिविधियों के लिए माहौल तैयार करता है।
फलादेश में जितनी कमजोरियां बतायी जाती हैं ।वे व्यक्ति की स्वभावगत कमजोरियां हैं। असल में ये बुध्दि या विवेक या व्यक्तित्व की कमियां हैं।इनको सुधारा जा सकता है।फलादेश में आमतौर पर मध्यवर्ग की मनोदशा को ध्यान में रखा जाता है।मध्यवर्गीय चरित्र की विशेषता है कि यह सर्वसंग्रही होता है।किन्तु फलादेश में उसके सर्वसंग्रही भाव के अनेक मुख्य तत्वों की अनदेखी की जाती है।जैसे परपीडक आनंद,कृपणता आदि को छिपाया जाता है। पण्डित नियमों के पालन पर जोर देता है।ये नियम ही हैं जिनके माध्यम से वह सवालों के जबाव देता है।यह 'अंधभक्ति' है,आज्ञापालन है।इसी के जरिए ज्योतिषी अपनी शक्ति का प्रदर्शन करता है।अथवा अदृश्य शक्ति के ऊपर अपना नियंत्रण दर्शाता है। वह बताता है कि यह करो और यह न करो।यह एक तरह से बाध्यकारी व्यवस्था को आरोपित करना हुआ।
ज्योतिषियों के द्वारा ग्रहों के बहाने दी गई सलाह जातक के अंदर अविवेकवादी अधिनायकवादी परनिर्भरता और समर्पण के भावबोध की सृष्टि करती है।इस भावबोध को निर्मित करने में जातक की बाध्यतामूलक संभावनाओं को उभारा जाता है।ज्योतिषी इस प्रसंग में अनेक ऐसी सलाह और उपचार बताता है जिनका जातक के जीवन के यथार्थ और भविष्य से कोई संबंध नहीं होता।
मसलन् किसी आदमी का अपनी नौकरी में मन नहीं लगता अथवा मालिक परेशान करता है या किसी लड़की की शादी में बिलंव हो रहा है या किसी का कारोबार मंदा चल रहा है आदि सवालों के जबाव और समाधान इस तरह दिए जाते हैं जिससे जातक विपरीत परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बनाने की कोशिश कर और आत्महीनता से मुक्त हो जाए।ऐसा करते समय ज्योतिषी जातक को और भी ज्यादा आज्ञाकारी बनाता है।आज्ञाकारी बनाने का तरीका यह है ,ज्योतिषी कहता है तुम्हारा शादी में सूर्य के कारण विलंव हो रहा है अत: सूर्य की पूजा करो और मंत्र जाप करो।जातक मजबूर होता है और आज्ञापालन करता है।यह एक तरह से अविवेकवादी ढ़ंग से आज्ञाकारी बनाने का तरीका है।जातक से कहा जाता है कि वह उपाय करे और कष्ट मुक्त हो वरना दु:ख भोगे।जब इस तरह के परनिर्भरता को उभारने वाले उपाय बताए जाते हैं तो यथार्थवादी तत्वों का पूरा तरह लोप नहीं होता।बल्कि ज्योतिषी यही समझाने की कोशिश करता है कि जातक आत्मनिर्भर है।किन्तु ज्योतिषी हमेशा जातक की परनिर्भर अवस्था का इस्तेमाल करता है।प्रस्तुति में ज्योतिष इस तरह के मुहावरों और भाषायी रूपों का इस्तेमाल करता है जिससे ज्योतिष में निहित अविवेक छिप जाता है।वह ज्योतिष के बारे में सोचना बंद कर देता है।वह जातक की यथार्थ जिन्दगी और ज्योतिष के बीच इस तरह संबंध बनाता है जिससे बाध्यतामूलक भावबोध छिप जाता है।
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि ज्योतिषी की कोशिश यह होती है कि लोगों में परंपरागत,यथास्थितिवादी और अड़ियल रवैयया बना रहे।इससे यथार्थ के नकारात्मक पक्ष को नियंत्रण में रखने और यह समझाने में मदद मिलती है कि जो भी कुछ होगा वह व्यक्ति के नियंत्रण में है न कि वस्तुगत परिस्थितियों के नियंत्रण में है।इस क्रम में व्यक्ति से वायदा किया जाता है कि यदि वह फलां-फलां उपाय करे और फलां-फलां चीजों से परहेज करे तो उसकी समस्या का समाधान हो जाएगा।व्यक्ति को इस तरह उन परिस्थितियों के ज्ञान से दूर रखने की कोशिश की जाती है जिनके कारण वह ज्योतिष की शरण में जाता है।ज्योतिष जानता है कि जीवन की वास्तव परिस्थितियां इस कदर कठिन और चुनौतीपूण्र्
ा हैं कि उनकी पूरी तरह उपेक्षा संभव नहीं है।यही वजह है कि ज्योतिषी अंतर्विरोधपूर्ण स्थितियों और संभावनाओं की ओर ध्यान देता है।
मसलन् एक बेरोजगार इंजीनियर युवक को नौकरी नहीं मिल रही है।ज्योतिष के उपाय के बावजूद नौकरी नहीं मिल रही है।ऐसी स्थिति में ज्योतिषी कुछ इसतरह का तंत्र फैलाएगा कि लगे कहीं न कहीं कुछ बड़ी गड़बड़ी है।इस क्रम में बेकार युवक परेशान होगा और ज्योतिषी इसके लिए उसे मानसिक तौर पर तैयार करता है।वह बेकारी के वास्तव कारणों को अपने बयान में शामिल करता है,उन वास्तव अंतर्विरोधों को शामिल करता है जिन्हें जातक जानता है।जिससे जातक उसके आदेश को माने।इस प्रसंग में ज्योतिषी जिस तत्व का सबसे प्रभावी ढ़ंग से इस्तेमाल करता है वह है समय का तत्व।जितने भी फलादेश टेलीविजन और पत्र-पत्रिकाओं के कॉलम में छपते हैं उनमें समय की सर्वोच्च सत्ता पर जोर होता है।समय की सत्ता पर जोर देते समय अंतर्विरोधपूर्ण तत्वों को छोड़ दिया जाता है।ज्योतिषी यहां समय का
मीडियम के तौर पर इस्तेमाल करता है।ज्योतिष यह आभास देता है कि जो कुछ भी हो रहा है और होने वाला है वह सब ग्रहों के प्रभाव का परिणाम है।इस क्रम मेंवह पल-पलकी जानकारी देने का पाखण्ड रचता है।यह कार्य वह कुण्डली,राशिफल,जन्म लग्न या अंक ज्योतिष के बहाने करता है।फलादेश इस तरह लिखा या बताया जाता है जिससे सारी संभावनाएं समय के ऊपर छोड़ दी जाती हैं।अब समय ही अंतत: निर्णायक शक्ति बनकर सामने आता है।और प्रकारान्तर से समय का नियंता स्वयं ज्योतिषी बन जाता है।यही ज्योतिष में निहित अविवेकवाद है।
समस्या यह है कि जीवन की अंतर्विरोधपूर्ण परिस्थितियों और जरूरतों का ज्योतिषी कैसे विकेन्द्रीकरण करता है,समाधान करता है।वह जरूरतों को विभिन्न काल खण्डों में विभक्त कर देता है।यहां तक कि उन्हें एक ही दिन में विभिन्न समयों में विभक्त कर देता है।इस क्रम में वह कोशिश करता है कि व्यक्ति की दो अन्तर्विरोधी इच्छाएं एक साथ न रहें।मसलन् किसी बच्चे के बारे में यह सवाल नहीं किया जा सकता कि उसकी शादी कब होगी ?क्योंकि वह अभी बच्चा है और बच्चे की एकमात्र इच्छा है कि वह पढे यदि बच्चा पढ़ता नहीं है और खेलता है या सब समय परेशान करता है तो इसके साथ पढ़ाई संभव नहीं है।इस तरह के अंतर्विरोधों को हल करने के लिए ज्योतिषी वास्तव समाधान सुझाता है।समय की सत्ता पर विश्वास के बारे में यही कहा जा सकता है कि यह ईगो की कमजोरी को सामने लाता है।
एरिक फ्रॉम ने ''दि फिलिंग ऑफ ऑफ इम्पोटेंस'' नामक कृति में लिखा कि समय पर आस्था अचानक घटित परिवर्तन के बोध के अभाव को व्यक्त करती है।इसे 'संभावित समय' में घटित उम्मीद के विकल्प में बदल दिया जाता है।संभावित समय में घटित होने वाली प्रत्येक घटना ठीक है।जो अंतर्विरोध आएंगे वे भी समय पर बगैर जोखिम उठाए स्वयं हल हो जाएंगे।समय पर बार-बार आस्था स्वयं की उपलब्धियों में शामिल कर ली जाती है।इसके माध्यम से व्यक्ति अपने नकारापन पर संतोष करने लगता है।वह यह भी सोचता है कि अपनी भूमिका अदा करने के लिए उसके पास काफी समय होगा और उसे जल्दबाजी करने की कोई जरूरत नहीं है।
असल में एरिक फ्रॉम बच्चे की मनोदशा के तत्वों का इस्तेमाल कर रहे हैं।बच्चा सोचता है कि जब वह बड़ा होगा तो क्या होगा ?यह बच्चे की फैण्टेसी वाली दुनिया है।बच्चा जब बड़ा होता है तो महसूस करता है कि अब वह बड़ा हो गया है तब वह महसूस करता है कि उसकी संभावित क्षमताओं के बारे में वह न तो स्वायत्त है और न निजी तौर पर फैसले लेने का उसे अधिकार है।जब वह वयस्क जीवन व्यतीत करता है तो मनोरोगी की अवस्था में होता है।
जिन लोगों का अहं कमजोर होता है,वस्तुगत तौर पर अपने भविष्य को मोड़ने में असमर्थ या कमजोर होते हैं।वे ही अपनी जिम्मेदारी और असफलताओं को र्अमूत्त समय के कारणों को सौंप देते हैं।बार-बार कहते हैं समय खराब था इसलिए ऐसा हुआ।समय पर जिम्मेदारी सौंपने के कारण उनके अंदर आशा का संचार होता है।इस आशा के माध्यम से वे अपनी समस्त कमजोरियों और असफलताओं से राहत पाने की कोशिश करते हैं।यहां तक कि जीवन के सबसे बड़े कष्टों को भी भूल जाते हैं।क्योंकि हमारी स्मृतियों का गहरा संबंध हमारे अहं से है।मनुष्य की इस तरह की मनोशक्ति का ज्योतिषी इस्तेमाल करता है।जो फलादेश समय के प्रति आस्था बनाते हैं वे समय को रहस्यमय भी बनाते हैं।जबकि समय रहस्यमय नहीं होता।
समय के बारे में दुविधापूर्ण स्थिति को हमें मनोशास्त्र के जरिए गहराई में जाकर जांचना चाहिए।यह प्रक्रिया इस प्रकार से घटित होती है,जब प्रतिक्रिया का निर्माण होता है तो एटीट्यूट्स मूल का खंडन करते हैं।इससे एक कदम आगे जाकर उसके अनुपालन का निषेध करते हैं।कुछ सकारात्मक हो जाने पर ,चाहे वह वास्तव में हो या रहस्यमय ढ़ंग से हो,यदि वह वास्तव या कल्पना के विपरीत है तो यह मान लिया जाता है कि ऐसा तो पहले भी हुआ था।यह मान लिया जाता है कि यह जो कुछ हुआ है वह भगवान या ग्रहों के द्वारा हुआ है।इसे मनोशास्त्र में बाध्यता कहते हैं।कुछ बाध्यताएं विकृत रूप में सामने आती हैं।इन्हें हम सहजजात मांग भी कह सकते हैं।कुछ गैर-सहजजात मांग होती हैं।ये पराअहं को चुनौती देती हैं।इन दोनों में संघर्ष भी हो सकता है।ज्योतषी इन दोनों स्थितियों का कौशलपूर्ण इस्तेमालकरता है और हमें यह समझाने में सफल होजाता है कि सब कुछ भाग्य और ग्रहों का खेल है।सच्चाई यह है कि हमारेजीवन के कार्य कलापों का भाग्य या भगवान से कोई वास्ता नहीं है और न यह ग्रहों का खेल है।बेहतर होगा हम ज्योतिष के खेल से मुक्ति पाएं।
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
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