कहा जाता है व्यक्ति को फलादेश मानना चाहिए और उसके साथ सामंजस्य बिठाना चाहिए। मसलन् मंगली से शादी नहीं करनी चाहिए। मूल नक्षत्रों में पैदा होने वाला भारी होता है।कहने का तात्पर्य यह कि ज्योतिष में दैनंदिन जीवन के प्रति सामंजस्य बिठाने पर जोर होता है।
फलित ज्योतिषशास्त्र में अर्ध्द-शिक्षित या नक्षत्रसूची पंडितों का बोलवाला है।क्योंकि इस विषय में आदिम भोलापन है।इसके कारण जो मौजूद नहीं है उसे स्वीकार कराने में सफलता मिलती है।ये ऐसी बातें होती हैं जिनके बारे में साधारण आदमी में सोचने की क्षमता नहीं होती और न इन बातों में दम होता है।साथ ही इनके बारे में सकारात्मक ज्ञान नहीं होता।और न इन्हें विकसित ही किया जा सकता है।
अर्ध्द सरल लोग भोलेपन से अपने जीवन के जटिलतम सवालों के समाधान जानने की कोशिश करते हैं।किन्तु इन सवालों के समाधान ज्योतिषी की बुध्दि के परे होते हैं।वह इनसे अपरिचित होता है।वह साधारण लोगों के भोलेपन का फायदा उठाता है और नस्लवादियों की तरह जीवन की जटिल समस्याओं के शॉर्टकट समाधान सुझाता है।इन समाधानों के जरिए भाग्य के प्रति आशाएं पैदा करने की कोशिश करता है।
फलित ज्योतिषशास्त्र की विशेषता है कि इसमें मत भिन्नता सबसे ज्यादा है।एक ही मसले पर ज्योतिषियों में अलग-अलग राय है।इसके कारण उन्हें ज्योतिषशास्त्र की भविष्यवाणियों में निहित अनिश्चितता से मुक्ति मिल जाती है।साथ ही इससे जिज्ञासु की अनेक मांगों को पूरा करने में मदद मिलती है।इससे उम्मीद बनाए रखने में मदद मिलती है।ज्योतिषी की आय बढ़ाने में मदद मिलती है।
फलादेश में यथार्थवाद और उन्माद पैदा करने वाली फैंटेसी के बीच का रास्ता तलाश करने की कोशिश की जाती है।इनमें जिज्ञासु की विध्वंसक इच्छाओं और मौजूदा सभ्यता से होनेवाली असुविधाओं साथ ही इसके प्रति लड़ाकू भावबोध को पैदा करता है।इसमें भारतीय सभ्यता के अनुसार कॉमनसेंस और यथार्थवाद का सहमेल रहता है।
फलादेश में दो किस्म की प्रवृत्तियां दिखाई देती हैं।पहला इनमें व्यावहारिकता का ख्याल रखा जाता है।दूसरा मानवता के व्यापक भविष्य से जुड़ी समस्याओं पर भविष्यवाणियों का एकसिरे से अभाव।मसलन् ज्योतिषी यह नहीं बताते कि भारत में गरीबी का खात्मा कब होगा ?बेकारी कब खत्म होगी ?वगैरह-वगैरह।इसका अर्थ यह भी है कि ज्योतिषी व्यक्ति और विश्व के बीच के रिश्ते को एकसिरे से अस्वीकार करके चलता है।मजेदार बात यह है कि ज्योतिषी छोटी-छोटी समस्याओं के समाधान देता रहता है।किन्तु बृहत्तर सामाजिक तनावों और समस्याओं के समाधान देने से गुरेज करता है।यह स्थिति सीधे-सीधे ज्योतिष की अर्थहीनता और दोहरे चरित्र की ओर ध्यान खींचती है।राजनीतिक शब्दावलि में यह व्यक्ति को उसके सामूहिक से अलग करने की अधिनायकवादी कोशिश है।साथ ही यह खास किस्म के सामूहिकीकरण का प्रयास है।
ज्योतिषी व्यक्तिगत तौर पर निजी समस्या के समाधान के लिए कल्पनात्मक गतिशील सुझाव देता है और इच्छाओं में आक्रामक भाव पैदा करता है।दूसरी ओर व्यक्ति को वास्तव जीवन की सामान्य कार्य प्रणाली में हस्तक्षेप नहीं करने देता।मसलन् कोई व्यक्ति परेशान है कि उसे नौकरी क्यों नहीं मिल रही ?इसके बारे में ज्योतिषी तरह-तरह के उपाय सुझाव देगा किन्तु व्यक्ति को बेकारी के वास्तव कारण की ओर ध्यान नहीं देने देगा।ज्योतिषी कोशिश करता है कि व्यक्ति अपनी वास्तविकता से दूर जाए और सतही तौर पर उसकी क्षमता को बढ़ाने वाले उपाय सुझाता है।बेकारी दूर करने के लिए अंगूठी पहने,ताबीज पहने,हनुमान की पूजा करे।इन सब उपायों के जरिए ज्योतिषी सपने पैदा करता है।ये सपने सोए हुए व्यक्ति के सपने हैं जो उसे गतिशील बनाए रखते हैं।संरक्षण प्रदान करते हैं।इन सपनों के माध्यम से व्यक्ति की आकांक्षाओं को जिंदा रखने की कोशिश की जाती है।
इसी संदर्भ में फ्रॉयड का ख्याल आता है उसने इसी तरह की परिस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए लिखा था कि सपने सोए हुए व्यक्ति की चेतन और अवचेतन आकांक्षाओ को संरक्षित करने का काम करते हैं। जिन आकांक्षाओं को वास्तव जीवन में हासिल करना संभव नहीं होता।उन्हें वह सपनों में हासिल करता है,संरक्षित करता है।ज्योतिषी अपने तरीके से व्यक्ति के सपनों को बनाए रखता है और व्यक्ति को यथार्थ के साथ सामंजस्य न बिठा पाने के कारण्ा होने वाली मनोव्याधियों से बचाता है।इस संदर्भ में ज्योतिषी अविवेक और सपने,विवेक और दिवास्वप्न में फ़र्क पैदा करता है।इसके कारण वह व्यक्ति को सामान्य जीवन जीने के लिए तैयार करता है।ज्योतिषी अपने तरीकों से व्यक्ति के अहं से जुड़े खतरनाक भावों को दिशा देता है और उन्हें तटस्थ बनाता है।व्यक्ति का ज्योतिष के प्रति विश्वास उसकी मनोदशा की स्वर्त:स्फूत्त अभिव्यक्ति नहीं है।अपितु वह विवेकहीनता की रेडीमेड निर्मिति है।सिनेमा को सपनों का कारखाना कहा जाता है।यही बात ज्योतिष पर भी लागू होती है।इसीलिए ज्योतिष हमें स्वाभाविक और सामाजिक तौर पर स्वीकृत नजर आता है।इसके कारण विवेक और अविवेक का फ़र्क नजर नहीं आता।इस फ़र्क को धुंधला करने में स्वप्न और दिवास्वप्न की बड़ी भूमिका होती है।यह एक तरह से संस्कृति उद्योग की तरह है।संस्कृति उद्योग की तरह ज्योतिष में भी तथ्य और फिक्शन का अंतर खत्म हो जाता है।इसकी अंतर्वस्तु अधिकांश समय अतियथार्थवादी होती है।वह जिन एटीट्यूट्स को सुझाता है वे पूर्णत:अविवेकपूर्ण स्रोत पर टिके होते हैं।मसलन् कोई ज्योतिषी जब यह कहता है कि फलां तिथि या वार को अपना व्यवसाय शुरू करो तो अच्छा होगा तो वह अविवेकपूर्ण स्रोत की ओर ले जाता है।
फलित ज्योतिष का कृत्रिम चरित्र व्यक्ति के अहं को परेशान किए वगैर यथार्थ के साथ मिथ्या संबंध बनाने की ओर ठेलता है।इस क्रम में अविवेक को बड़ी ही चालाकी से छिपा लिया जाता है।ज्योतिष की ओर आम लोगों के बढ़ते हुए रूझान का बड़ा कारण है बौध्दिक ईमानदारी का अभाव।इस अभाव का एक कारण मौजूदा सामाजिक परिस्थितियां हैं,जिसके कारण बौध्दिक शॉर्टकट पैदा हो रहा है और दूसरा कारण अर्ध्द पांडित्य का बढ़ता हुआ प्रभाव।
ज्योतिष व्यक्ति के अहं के अलगाव को व्यक्त करता है।व्यक्ति के द्वारा जो मनोवैज्ञानिक तरीके अपनाए जाते हैं।कुछ हद तक ज्योतिष में वे सब शामिल हैं।मनोवैज्ञानिक तौर पर परेशान व्यक्ति उस व्यक्ति के पास जाता है जो उसकी सभी परेशानियों को दूर करता है,संतोष और आत्मविश्वास देता है।ज्योतिषी समस्त व्याधियों के समाधान का दावा करता है इसके कारण सहज तौर पर व्यक्ति उसकी ओर आकर्षित होता है।ज्योतिषी उसकी परेशानियों को दिशा देता है।दिशा देने के क्रम में वह तरह-तरह के प्रयोग करता है।जिससे व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक संतोष प्राप्त होता है।व्यावसायिक ज्योतिषी यह कार्य बड़े कौशल के साथ करते हैं।इससे जहां एक ओर व्यक्ति को संतोष मिलता है वहीं दूसरी ओर ज्योतिष का सामाजिक आधार विस्तृत होता है।
टेलीविजन में सीधे प्रसारण के समय आने वाले ज्योतिषियों की मुश्किल यह है कि इनके पास जिज्ञासु की प्रत्यक्ष जानकारी नहीं होती।साथ ही वैविध्यपूर्ण ऑडिएंस का सामना करना होता है। ऐसे में ये लोग किसी समस्या विशेष के बारे में सलाह नहीं देते हैं।बल्कि जिज्ञासु से प्रत्यक्ष संपर्क करने के लिए कहते हैं।कभी -कभी यह भी होता है कि ज्योतिषी प्रामाणिक ढ़ंग से समस्या के समाधान हेतु रत्न धारण करने या किसी मंत्र का जप करने की सलाह दे देता है।अथवा किसी समस्या का संतोषजनक उत्तर भी दे देता है।प्रत्यक्ष प्रसारण में ज्योतिषी कभी भी जिज्ञासु को निराश नहीं करता,अपनी चमत्कारी हैसियत से समझौता करने की कोशिश नहीं करता बल्कि दो टूक उत्तर देता है।ऐसा करते हुए वह अपने मूल्यों की बिक्री करता है और बेधड़क झूठ बोलता है।ज्योतिषी अपने उत्तर से यह आभास देता है कि उसे समस्या की ठोस सामयिक जानकारी है।वह समस्या के बारे में कम से कम बोलता है।जिससे उसकी साख खतरे में न पड़ जाए।उसके उत्तर में संदर्भ इतने व्यापक कैनवास में फैला होता है कि उसे किसी भी समस्या और समय के साथ फिट किया जा सकता है।मसलन् किसी ने पूछा कि मेरी नौकरी नहीं लगी है क्या करूँ ?जबाव होता है मूंगा नामक रत्न पहनो।किसी ने पूछा जमीन का मुकदमा चल रहा है क्या मैं जीत जाऊँगा ?जबाव देता है कि मूंगा पहनो सफलता जरूर मिलेगी।यानी समस्या है तो समाधान भी है और वह है रत्न धारण करो या मंत्र जप करो या जप कराओ।इस तरह के समाधान जिज्ञासु को आशा और जीत की उम्मीद बंधाते हैं।खासकर अर्ध्द-शिक्षित को इससे संतोष मिलता है।वह यह मानने लगता है कि ज्योतिषी गंभीरता से भविष्य देख रहा है।इस तरह की पध्दति छद्म व्यक्तिवाद को बनाए रखती है और उसके समाधान देती है।प्रत्यक्ष प्रसारण में पूछे जाने वाली समस्याओं के सामयिक परिदृश्य की ज्योतिषी को बेहतर जानकारी होती है।वह अच्छी तरह से जानता है कि पूछी गई समस्या का जल्दी समाधान संभव नहीं है और जानता है कि जिज्ञासु इसका समाधान नहीं कर सकता,ज्योतिषी यह भी अच्छी तरह जानता है कि वह समस्या का विवेकपूर्ण ढ़ंग से समाधान नहीं कर सकता।फलत:वह विवेकहीन रास्ता अख्तियार करता है वहीं दूसरी ओर जिज्ञासु किसी अदृश्य शक्ति की मदद की उम्मीद करता है और ऐसी स्थिति में ज्योतिषी तरह-तरह के ताबीज,जड़ी-बूटी,रत्न,मंत्र आदि सुझाता है।
ज्योतिषी यह बताता है कि जिज्ञासु की जिन्दगी में विपत्ति या मुश्किल आनेवाली है या आ चुकी है।इससे रक्षा की जानी चाहिए।विपत्ति और उससे रक्षा की पध्दति का इस तरह इस्तेमाल किया जाता है कि लगे मानसिक द्वंद्व या अव्यवस्था से मुक्ति मिल सकती है।ज्योतिषी की भविष्यवाणियों के पैटर्न को देखें तो पाएंगे कि ज्यादातर लोगों की जिन्दगी खतरे में है।यह पैटर्न सीधे मनोवैज्ञानिक चिकित्सा से लिया गया है।खतरा भी हमेशा हल्का सा होता है।ऐसा होता है जिससे जिज्ञासु को शॉक न लगे।यही वजह है कि जिज्ञासु बार-बार भविष्यवाणी सुनता है या पढ़ता है।ज्योतिषी जब खतरों की बात करता है तो यथार्थपरक खतरों की बात करता है।मसलन् वह कहता है कि इस सप्ताह या इस साल ऐक्सीडेंट हो सकता है या चोट लग सकती है।वह यह नहीं कहता कि किससे ऐक्सीडेंट होगा या चोट लग सकती है।यदि बोलना ही पड़े तो कहता है गिर सकते हो या किसी वाहन से टक्कर हो सकती है।या जल सकते हो।इन सबसे जिज्ञासु दुखी नहीं होता।ज्योतिषी यह नहीं कहता कि हवाई जहाज से गिर सकते हो या पहाड़ से गिर सकते हो।या अग्निकांड में जल सकते हो।यदि ऐसा कहेगा तो जिज्ञासु कभी फलादेश जानने नहीं आएगा।इस तरह की विपत्तियां आज की स्थितियों में कभी भी आ सकती हैं।इस तरह की भविष्यवाणियों से जिज्ञासु के मन में बैठे नार्सीज्म को कोई क्षति नहीं पहुँचती बल्कि वह इस तरह की भविष्यवाणियों को आत्मसात् कर लेता है।ज्योतिषी जब सड़क पर ऐक्सीडेंट की बात कहता है तो वह जानता है कि आज के दौर में सड़क दुर्घटना को अपराध नहीं माना जाता।सड़क दुर्घटना करने वाले को अपराधी नहीं माना जाता।बल्कि ज्योतिषी सड़क पर लगे साइनबोर्ड की तरह कहता है ''सावधानी से गाड़ी चलाएं।''
ज्योतिषी जब खतरों की बात करता है तो यह भाव पैदा करता है कि व्यक्ति विपत्ति या खतरे से स्वयं लड़ नहीं सकता बल्कि उसे किसी अन्य की मदद की जरूरत है।इस तरह वह आत्मनिर्भरता खत्म करके 'परनिर्भरता' पैदा करता है।इसके लिए व्यक्ति किसी भगवान की मदद की ओर जाता है।फलत: निजी तौर पर कुछ करने की बजाय उसमें किनाराकशी का भाव पैदा हो जाता है।वह अपनी विपत्ति के समाधान का दायित्व किसी और के ऊपर ड़ाल देता है।इस तरह वह अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाता है।इस प्रक्रिया में यह बात साफ तौर पर उभरकर सामने आती है कि उसका अहं भाव कमजोर है,हीनताबोध से ग्रस्त है।इससे मुक्ति पाने के लिए वह तंत्र,मंत्र और रत्नधारण पर जोर देता है।उल्लेखनीय है कि विपत्ति और मदद की पध्दति का आधुनिक मासकल्चर भी इस्तेमाल करती है।यदि दोपहर में महिलाओं के लिए प्रसारित धारावाहिकों का गौर से अध्ययन करें तो पाएंगे कि वहां पर ''मुश्किल में फंसो और निकलो'' के फार्मूले का बड़े कौशल के साथ इस्तेमाल किया जाता है।ज्योतिष की भविष्यवाणियों में लगातार मुश्किलों और नाखुशी की बातें रहती हैं।इसका अर्थ यह भी है कि जो इनसे गुजरते हैं वे यह भी जानते हैं कि इनसे कैसे मुक्ति पाएं।अंत में ''सब कुछ ठीक हो जाएगा।''के फार्मूले के तहत जादुई प्रभाव छोड़ा जाता है।यानी ज्योतिषी सुखांत पर जोर देता है।यह सारा पैटर्न मासकल्चर के पैटर्न से मिलता-जुलता है।
यहां पर हमें मासकम्युनिकेशन और ज्योतिष के बीच के फ़र्क को समझना होगा। सीरियल, टेलीविजन शो अथवा फिल्मों में अभिनेता और अभिनेत्रियों के माध्यम से सकारात्मक या नकारात्मक ढ़ंग से अपनी समस्याओं का समाधान करते हैं।इसी क्रम में दर्शक उनके साथ अपने को रखकर देखने लगता है।यानी दर्शक अपनी समस्याओं को हीरो या हीरोइन के साथ जोड़कर देखता है।अपने वास्तव जीवन में जिस शक्ति का अभाव महसूस करता है अथवा जिन चीजों से वंचित होता है उन्हें वह हीरो वगैरह के माध्यम से कल्पना जगत में प्राप्त करता है।ज्योतिषी का फलादेश इसी पध्दति का अनुकरण करता है।किन्तु इस काम को भिन्न रूप में करता है।फलादेश में कोई हीरो वगैरह नहीं होता।बड़े कौशल के साथ किसी अदृश्य ग्रह या देवता या मंत्र या ताबीज आदि के जरिए किसी शक्तिशाली ताकत की स्थापना कर दी जाती है जिसके माध्यम से व्यक्ति की समस्या के समाधान का आश्वासन दिया जाता है।साधारण लोग इस ताकत को जैसा बताया जाता है वैसा ही स्वीकार कर लेते हैं।ज्योतिषी इस कार्य को मासमीडिया की तुलना में ज्यादा यथार्थपरक ढ़ंग से करता है।ज्योतिषी के फलादेश में हीरो की जगह कोई प्रतीक होता है या स्वयं ज्योतिषी होता है।फलादेश में घटनाक्रम पहले से ही तय होता है यानी क्या घटेगा।अत: उसको लेकर किसी भी किस्म के बोध से व्यक्ति वंचित होता है और हीरो की पूजा में उसकी आस्था बरकरार होती है।ज्योतिषी को उसे भुनाने में खास परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता।ज्योतिषी की बतायी समस्या या तो स्वत: हल हो जाती है या अन्य की मदद से सुलझा ली जाती है।खासकर किसी ग्रह के उपाय के द्वारा या किसी ताबीज या मंत्र के द्वारा।निरपेक्ष सत्ता तब ही मदद करती है जब ग्रहों पर विश्वास हो।ज्योतिषी अपने फलादेश के द्वारा व्यक्ति के जीवन में पैदा हुए मनोवैज्ञानिक दबाव को कम करने की कोशिश करता है और इसके लिए अवास्तव तत्वों की मदद लेता है।
ज्योतिषी फलादेश के जरिए यह संदेश देता है कि अपने को कमजोर महसूस मत समझो।अंतत: सब कुछ ठीक हो जाएगा।सिर्फ़ जो उपाय बताया जाए उसे अच्छे बालक की तरह मान लो।अच्छा बालक/ बालिका वह है जो तयशुदा मानकों का पालन करे,उपाय माने।उपाय मानने से वास्तव समस्याओं के सामने टूटने का खतरा टल जाता है।इस तरह के रवैयये के पीछे मूल धारणा यह होती है कि परिस्थितियां व्यक्ति को पूरी तरह टूटने नहीं देतीं।उसके पास कुछ न कुछ बच जाता है।ज्योतिषी इस सबको यथास्थिति बनाए रखने की दिशा में मोड़ देता है।वह वायदा करता है कि वह सबका ख्याल रखता है।सबके भले के लिए काम करता है।इस वायदे के जरिए वह यथास्थिति बनाए रखने के विचार को गंभीरता से मन में उतार देता है। पत्र-पत्रिकाओं में छपने वाले राशिफल में समस्याओं के लिए वस्तुगत स्थितियों को जिम्मेदार माना जाता है।खासकर आर्थिक मुश्किलों को व्यक्तिगत प्रयासों के द्वारा ठीक किया जा सकता है।जनप्रिय मनोविज्ञान की विशेषता है कि स्वयं की आलोचना करो,स्वयं को दोषी मानो । इस दृष्टिकोण का महिमामंडन किया जाता है।यहां मूल फार्मूला है ''सब कुछ आदमी पर निर्भर करता है।''इस फार्मूले के तहत व्यक्ति के जीवन की वस्तुगत तस्वीर बनाने की कोशिश की जाती है।साथ ही यह भी आभास दिया जाता है कि व्यक्ति यदि अपने को ठीक कर ले तो मुश्किलों से निजात संभव है।इस प्रक्रिया में एक ओर व्यक्ति को यह बताया जाता है कि वस्तुगत शक्तियां उसके दायरे से बाहर हैं।यदि व्यक्ति ज्योतिषी द्वारा बताए रास्ते का अनुकरण करे तो कुछ भी असंभव नहीं है,किसी भी खतरे से घबड़ाने की जरूरत नहीं है।यह भी संप्रेषित करने की कोशिश की जाती है कि शक्तिहीन व्यक्ति के पास खतरे से मुक्त होने की शक्ति है।इससे व्यक्ति के पराअहं को संतुष्ट करने की कोशिश की जाती है।भविष्यवाणियों में गलती के लिए परिस्थितियों की बजाय व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराया जाता है।इस क्रम में बार-बार व्यक्ति को परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बिठाने के लिए दबाव डाला जाता है।क्योंकि व्यक्ति पर ग्रहों का प्रभाव चल रहा है।राशिफल में किसी न किसी समस्या का जिक्र होता है और इसके समाधान के रूप में पहले से स्थापित व्यवस्था को ही पुन:स्थापित करने की कोशिश की जाती है।साथ ही पूर्वआस्थाओं के प्रति आस्था बनाए रखने के सुझाव दिए जाते हैं।ज्योतिषी फलादेश के माध्यम से भाग्य रूपी अविवेकवाद पर जोर देता है,उसके जरिए समस्त निर्देश देता है साथ ही अविवेकपूर्ण स्रोतों का समस्याओं के समाधान के लिए इस्तेमाल करता है।इस समाधान में यथास्थिति बनाए रखने पर जोर होता है।
फ्रायड का मानना था कि मनोवैज्ञानिक रक्षाकवच हमेशा पराधीन प्रकृति का निर्माण करता है।यदि सहजजात वृत्तियों को समाधान से संतुष्टि नहीं मिलती या देर से मिलती है तब उसे शायद ही नियंत्रण में रख पाएं।किन्तु अधिकांश समय मौका मिलने पर इसमें संतुष्टि भी मिल जाती है।चांस के चक्कर में व्यक्ति अपने सुखमय वर्तमान को भी भविष्य के सुख के लिए त्याग देता है।विवेक हमेशा विवेकपूर्ण नहीं होता।इसी तरह जब आम जनता के मन पर उन बातों को बार-बार प्रक्षेपित किया जाता है जो अविवेकपूर्ण हैं या जिन पर उसका विश्वास नहीं है। तो वह भी उन पर विश्वास करने लगता है।उसका अपने विवेक और विवेक की समूची व्यवस्था पर से भरोसा उठ जाता है।ज्योतिष यही कार्य करता है।
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
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