साइबर स्पेस- साइबर स्पेस वैकल्पिक चेतना है।यह दूसरी प्रकृति है। अब लोग 'साइबोर्ग' होते जा रहे हैं। साइबर स्पेस में खोजते हैं,विचरण करते हैं, पढ़ते हैं ,आनंद लेते हैं,अपनी इच्छित इमेज बनाते रहते हैं। आज व्यक्ति के अस्तित्व के लिए अनंत विकल्प साइबर स्पेस दे रहा है। ये विकल्प मनुष्य को प्रत्येक क्षेत्र में उदार बना रहे हैं। साइबर स्पेस में विचरण करने का अर्थ है संकीर्णता की मौत। यहां निर्मिति पर जोर है। एक जमाना था जब निर्मिति को मनुष्य के लिए औपचारिकता के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। साइबर स्पेस में इसे अनौपचारिक प्रतिक्रिया के अर्थ में इस्तेमाल किया जा रहा है। आज हम देख रहे हैं कि कम्प्यूटर व्यक्ति की अस्मिता के निर्माण के महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में उभरकर सामने आया है। कुछ लोग मानते हैं कि यह व्यक्ति की अस्मिता का मर्म भी तय कर रहा है। साइबर स्पेस के बारे में मारकोस नोवाक का मानना है कि यह ग्लोबल सूचना प्रोसेसिंग सिस्टम की सभी सूचनाओं का विशिष्ट दृश्यांकन है। वर्तमान और भविष्य का संचार नेटवर्क है। यह बहुस्तरीय यूजरों की एक साथ मौजूदगी और संपर्क का केन्द्र है। यहां सामग्री जोड़ी या घटायी जा सकती है। यह वास्तव जगत की नकल है।वर्चुअल रियलिटी है। इसमें दूर से डाटा संकलन किया जा सकता है।दूरसंचार के जरिए दूर से ही नियंत्रण किया जा सकता है।चीजों को अन्तर्गृथित करता है।बौध्दिकतापूर्ण मालों और माहौल को रीयल स्पेस में पहुँचाता है। साइबर स्पेस मौजूदा संपर्क रूपों के एकदम विपरीत है। यह कम्प्यूटरीकृत सूचना से युक्त है। सामान्य तौर पर हम सूचना के बाहर होते हैं। किन्तु साइबर स्पेस में हम सूचना के अंदर होते हैं। ऐसा करने के लिए हमें वाइट्स में अपना रूपान्तरण करना होता है। वाइट्स में रूपान्तरण करते ही व्यक्ति स्वयं सूचना बन जाता है। आज तक वह सूचना के बाहर था किन्तु इंटरनेट आने के बाद वह सूचना के अंदर आ जाता है। व्यक्ति का सूचना में रूपान्तरण विलक्षण परिघटना है। वाइट्स में रूपान्तरित सूचना की रक्षा के लिए ही प्राइवेसी कानूनों की जरूरत होती है। बाइट्स में रूपान्तरित होने के बाद सूचना स्वायत्त हो जाती है। यदि वह सुरक्षा के घेरे में कैद नहीं है तो उसके दुरूपयोग की अनंत संभावनाएं हैं। सुरक्षा घेरे में रहने के कारण वह बंद रहती है। किन्तु सुरक्षा घेरा हटते ही सूचना का अन्य वस्तुओं में रूपान्तरण हो सकता है। साइबर स्पेस में सूचना की स्वायत्तता तर्क को अतर्क और अतर्क को तर्क बना देती है। यहां औपचारिकता का अनौपचारिकता में और अनौपचारिकता का औपचारिकता में रूपान्तरण हो जाता है। समय की धारणा खत्म हो जाती है।सब कुछ रीयल टाइम या यथार्थ समय में घटित होता है। अब जो सिस्टम का प्रतिनिधित्व करता है वह बाइट्स बन जाता है।
साइबर स्पेस डाटा, सूचना, एवं फॉर्म आदि को डिजिटल तकनीकी में विस्तार देता है। समृध्द करता है। पृथक् करता है। अनंत संभावनाओं के द्वार खोलता है। अब हम प्रतिनिधित्व के युग में पहुँच चुके हैं। यह भी कह सकते हैं कि साइबर स्पेस कल्पना का स्वर्ग है। चरमोत्कर्ष है। यह कविता के तत्वों को भी आत्मसात् कर लेता है। रेखीय चिन्तन कविता की बुनियाद है। उसका क्रमिक स्मृति से संबंध है। इसमें प्रत्येक चीज संचित की जा सकती है। किन्तु इसे खोजने के लिए समय की जरूरत होगी। अत: इसके लिए चिर-परिचित रणनीति अपनायी जाती है। जिससे सूचना हासिल की जा सके। साइबर स्पेस वह जगह है जहां सचेत स्वप्न और अचेत स्वप्न की मुलाकात होती रहती है। यह तर्कपूर्ण जादू की दुनिया है। रहस्य का तर्क है। यह दरिद्रता के ऊपर कविता की विजय है।
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
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बहुत अच्छा लिखा है सर . निश्चय ही साइबर स्पेस ने साहित्य को सम्रिधय किया है . साइबर स्पेस के कारन साहित्य फिर से जिन्दा हो उठा है .
जवाब देंहटाएंनिरंजन स्टुडेंट ऑफ़ डॉ. रामप्रकाश द्विवेदी