आधुनिकतावाद ने बिना किसी अवज्ञा के व्यक्ति के लिए स्वायत्त एवं मुक्त ' स्पेश ' प्रदान किया। इस क्रम में उसने निष्क्रिय विस्तार पर जोर दिया। 'अन्य' से अलग, यही व्यक्ति सार्वभौम सामाजिक का प्रतिनिधि बनकर उभरा। उत्तर-आधुनिकता ने 'अन्य' से व्यक्ति की स्वतंत्रता को खत्म कर दिया। इसकी विशेषता है दूसरे की निष्क्रियता के आधार पर अपनी सक्रियता को बनाए रखना। इस स्थिति को ध्यान में रखकर विचार करें कि क्या हिन्दी जातीय समाज में आधुनिकता प्रवेश कर पायी है ? क्या हम 'व्यक्ति को मुक्त 'स्पेश' दे पाए हैं ? सच यह है कि हम व्यक्ति को अभी तक मुक्त स्पेश नहीं दे पाए हैं। हमारे घर में व्यक्ति का कमरा सबका होता है। मुखिया का उसमें हस्तक्षेप होता है। कमरा वस्तुत : गाँव की सामुदायिक जीवन शैली का लघु संस्करण होता है।
एक विचित्र स्थिति घट रही है। घर लोकप्रिय संस्कृति के प्रतीकों से भर गए हैं। आज हमारे घरों की बनावट ,सजावट और स्थापत्य के क्षेत्र में ऐसे रुपों की बाढ़ आई हुई है जो ' लोकप्रिय' और 'अभिजन' कला रुपों के सम्मिश्रण से निर्मित किए गए हैं।यह 'लोकप्रिय अभिजात्य ' है, इसके कोड्स , प्रतीक ,भाषा ,विचारधारा आदि हमारे घरों और व्यवहार का हिस्सा बनते जा रहे हैं।
उत्तर-आधुनिक स्थापत्य बंद लिफाफे की तरह होता है। इसमें 'स्पेश' का एक के साथ एक पर आरोपण होता है। साथ ही एक - दूसरे में स्पेश घुसा रहता है। यानी एक ही कमरे में बैठने,खाने, मनोरंजन आदि की व्यवस्था मिलेगी। यह स्थापत्य की एकाधिकारवादी स्थिति है। इसके 'फॉर्म' में सामूहिकता और निजता की एक साथ्ज्ञ अभिव्यक्ति होती है।
यहां उपभोक्ता के परिवेश पर लोकतांत्रिक नियंत्रण और शिरकत पर जोर रहता है। यह ऐसे परिवेश की सृष्टि है जहां वस्तुएं पृथक् अस्तित्व खो देती हैं। और जीवन शैली का अंग बन जाती है। यह उत्तर - आधुनिकता की अंतराष्ट्रीय शैली है। उत्तर-आधुनिकों का यह मानना है हमें लोगों को पुनर्स्थापित करने की बजाय घरों को पुनर्स्थापित करना चाहिए। सामूहिक कॉपरेटिव इमारतों या 'फ्लैट्स' के निर्माण पर जोर देना चाहिए। समूह की रिहाइश पर जोर देना चाहिए।समूह के स्वप्न पर जोर देना चाहिए। थियोडोर एडोर्नो के मुताबिक यह आन्तरिक स्वतंत्रता की ओर प्रस्थान है। किन्तु उत्तर- आधुनिक स्थापत्य में एक ऐसी प्रवृत्ति भी है जो सहमतिपरकता का निषेध करता है। यह 'प्लॉट' केन्द्रित स्थापत्य है। अब 'फ्लैट' हैं या 'प्लॉट' हैं। बहुमंजिला इमारतों में 'फ्लैट' के रुप में घरों का निर्माण इसलिए किया जाता है क्यों कि मकानों का संकट है।
'फ्लैट' वस्तुत: स्थान के तार्किक नियोजन का परिणाम है।यह व्यक्ति की भूमिका को अस्वीकार करता है। यह वास्तुकार के सीधे हस्तक्षेप पर निर्भर है।वास्तुकार का सभी प्रक्रियाओं में सीधा हस्तक्षेप होता है। यह ऐसा स्थापत्य है जो परिवर्तनों की हिमायत करता है। यह आभास देता है कि घर किसी 'वर्ग' या 'वर्ग प्रभुत्व' की अभिव्यक्ति नहीं है। प्रश्न उठता है आधुनिकतावाद या उत्तर- आधुनिकतावादी परिप्रेक्ष्य से क्या आवास-समस्या हल कर सकते हैं ? सच यह है इन दोनों के पास आम जनता की आवास -समस्या का समाधान नहीं है। ये सिर्फ मध्यवर्ग और उच्च वर्ग की आवास -समस्या को उठाते हैं।मजदूरों,किसानों एवं गरीब तबके की आवास - समस्या को स्पर्श तक नहीं करते। ये मांग और पूर्त्ति के आधार पर इस समस्या का समाधान प्रस्तुत करते हैं। दोनों गांव और शहर के बीच के वैषम्य को बढ़ावा देते हैं। ज्यादा से ज्यादा महानगरों के निर्माण पर जोर देते हैं। यदि आम जनता की आवास-समस्या हल करनी है तो गांव और शहर के वैषम्य को घटाना होगा।महानगरों के निर्माण की प्रक्रिया को रोकना होगा। पूंजीवादी उत्पादन पध्दति के रहते हुए यह संभव ही नहीं है। क्योंकि पूंजीवादी व्यवस्था को बनाए रखने में ये दोनों कारक मदद करते हैं। यही वजह है कि हमें पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष के साथ आवास-समस्या की लड़ाई को जोड़ना होगा।
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
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