इंटरनेट को साम्राज्यवाद का उपकरण कहना सही नहीं है। असल में हमें डिजिटल वर्ल्ड ने अभूतपूर्व अवसर प्रदान किया है जिसे गलत समझा जा रहा है। नेट हमारी भाषा का सम्मान करता है। नेट पर भाषा एक ही साथ स्थानीय और ग्लोबल होती है। यह सांस्कृतिक आदान-प्रदान का मीडियम है। आप इसमें ऐसी भाषाओं को देख सकते हैं जिनके बारे में कभी सुना तक नहीं है। उपनिवेशवाद केन्द्रीकृत शासन व्यवस्था का अंग था। किंतु आज के विकेन्द्रीकृत समाज में उपनिवेशवाद संभव नहीं है। नेट इंटरकनेक्टेड एवं स्वायत्त प्रोसेसर्स का कलेक्शन है। इनमें से किसी का भी नियंत्रण संभव नहीं है। इनमें से किसी का भी यूजर इस्तेमाल कर सकता है। इंटरनेट के लिए यह संभव नहीं है कि वह लोगों को अंग्रेजी का गुलाम बना ले। वह दुनिया का औपनिवेशिकरण नहीं कर सकता। नेट के साम्राज्यवादी नहीं बन पाने के पीछे तीन कारण हो सकते हैं। 1. इसका प्रवेश बहुत कम लोगों में हुआ है। इसकी कीमत कम से कम ढाई सौ रुपये प्रतिमाह है,साइबर कैफे में प्रति घंटा छह -बारह रुपये। नेट पर आप पसंदीदा भाषा में प्रकाशन कर सकते हैं। 2. इसे जनबहुल इलाकों में पहुँचा सकते हैं। इसके जरिए किसी विषय ,क्षेत्र और समुदाय को केन्द्र में रखकर सूचनाएं दी जा सकती हैं। 3. यह अंदर और बाहर दोनों ही स्तरों पर काम करने वाला मीडियम है। आप इसमें सूचनाएं दे सकते हैं और ले भी सकते हैं। आप नेट में भाषा विशेष की अंतर्वस्तु आसानी से पा सकते हैं। आपके दस्तावेज को स्वचालित तरीके से अन्य भाषा में अनुदित किया जा सकता है। हमें यह ध्यान रखना होगा कि अंग्रेजी सारी दुनिया में बोली जाने वाली भाषा नहीं है। किंतु यह सच है कि उसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। यदि कोई जर्मन ,ग्रीस जाता है तो उसे संपर्क भाषा के रूप में अंग्रेजी का इस्तेमाल करना होता है वैसे ही जैसे फ्रंासीसी जब जर्मनी आता है तो उसे ड्राइवर से अंग्रेजी में बोलना पड़ता है। ज्यादातर देशों में हवाई यात्रा नियंत्रण के मानक और संदेश अंग्रेजी में ही सम्प्रेषित करते हैं। अत: अंग्रेजी को दूसरी भाषा कहना सही होगा। भाषा को पहचान के साथ नहीं मिलाना चाहिए और नहीं इसे सांस्कृतिक युध्द की भाषा ही बनाया जा सकता है। अंग्रेजी उपयोग की भाषा है। जिससे हवाई जहाज सुरक्षित ढ़ंग से उतर सकें। नेट का इन्फ्रास्ट्रक्चर चलता रहे। नेट के यूजर अमेरिका के बाहर ज्यादा हैं उनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है। नेट पर विचार करते समय अंध राष्ट्रवाद और साम्राज्यवाद के साथ इसका घालमेल नहीं करना चाहिए। नेट सभी भाषाओं का सम्मान करता है। वह साम्राज्यवादी नहीं बहुलतावादी है।
नेट पर जो लोग काम करते रहते हैं उनके बारे में यह मिथ है कि वे सबसे कटे रहते हैं। वे अमानवीय हो गए हैं। उनके जीवन में आमने-सामने मिलने का अनुभव खत्म हो गया है। अभिभावकों के कहा जा रहा है कि उनके बच्चे अपाहिज हो गए हैं। सब समय ऑन लाइन पर ही रहते हैं। लेकिन सच्चाई का एक अन्य पहलू भी है जो लोग ऑन लाइन रहते हैं उनके शिक्षण के उपकरण बदल गए हैं।बच्चे और शिक्षक तरह-तरह का ज्ञान हासिल कर रहे हैं। दुनिया का फासला कम होता जा रहा है। आज दूरी उतनी ही रह गई है जितनी माउस को क्लिक करने में होती है। समाज के सभी पेशे और सामाजिक तबकों के लिए नेट ने ज्ञान प्राप्त करने ,अभिव्यक्ति और संपर्क की अनंत संभावनाएं खोली है। डेविड बलकॉम ने लिखा कि नेट स्वभावत: सववर्सिव है। ई-मेल के अनुभव के बारे में लिखा कि '' यह संदर्भहीन अनुभव है।'' यहां प्रस्तुत सामग्री स्वयं संदर्भ है। यहां लेखन और अनुभव एक ही साथ करते हैं।जबकि लेखन में पहले अनुभव करते थे बाद में लिखते थे। यहां लेखन ही अनुभव है। सिर्फ उसका आधार बदल गया है। अब यह कम्प्यूटर में है। एक जमाना था हमारे पीछे शब्द चल रहे थे। किन्तु अब सिर्फ भर्त्सना या प्रतिक्रिया चलती है। यह कैसे संभव हुआ हम नहीं जानते। यह भी ध्यान रखें कि किसी भी बात को कहने का कोई सरल तरीका नहीं है। हम यह नहीं कह सकते कि यही सरल तरीका है। हम ई-मेल आत्माभिव्यक्ति के लिए लिखते हैं।हम चाहते हैं कि लोग हमें जानें और पसंद करें।
दारलेनी कार्दिलो और किमवियरली केनयोन ने '' रिडिफाइनिंग लिटरेसी : हाइपर टेक्स्ट ऑन हाइपर टेक्स्ट'' में एक नई समस्या की ओर ध्यान खींचा है।उनका मानना है कि इस दौर में हमें साक्षरता को पुनर्परिभाषित करने की जरूरत है। यह कम्प्यूटर तकनीकी कृत सूचना युग है। खासकर 'इलैक्ट्रोनिक टेक्स्ट ' हमारे दैनंदिन जीवन का अंतर्गृथित हिस्सा बन गया है। इसका साक्षरता की परिभाषा पर भी असर हुआ है। नए युग की विधा है 'इलैक्ट्रोनिक साक्षरता'। इसे ही ग्रेगोरी अल्मेर ने 'इलेक्ट्रेसी' कहा था। उसने लिखा कि '' साक्षरता एक एपरेट्स (सामाजिक मशीन) है। इसमें लेखन की तकनीकी ,स्कूली शिक्षा के संस्थानगत अभ्यास, मानवीय अस्मिता निर्माण ,व्यक्तिगत आत्मनिर्भरता आदि के बीच संपर्क होता है। 'इलेक्ट्रेसी' वस्तुत 'न्यू लोगीज्म' है। यह नए एपरेट्स को परिभाषित करने में मदद करता है। यह साक्षरता के दौरान पैदा होता है। साथ ही वादा करता है कि स्थापित एपरेट्स के सभी संस्थानों को रूपान्तरित करेगा। '' इस परिभाषा को समझने के लिए हमें हाइपर टेक्स्ट के रचयिताओं के विचारों को गंभीरता से सझने की जरूरत है। इन सभी ने हाइपर टेक्स्ट को मीडियम के तौर पर पेश किया है। यह रीडिंग,राईटिंग और चिन्तन के क्षेत्र में काम करने वाला मीडियम है। यह नया सूचना मीडियम है। यह हमारी साक्षरता की समझ को बदल देगा। यह गैर-रेखीय प्रस्तुति है,जिसके अनेक मार्ग हैं,यह प्रत्येक पाठक को अनुमति देता है कि वह प्रत्येक पाठ के साथ भिन्न तरीके से संपर्क करे। हाइपर टेक्स्ट इंटरेक्टिव शिक्षण के लिए नए किस्म का रीडिंग और लेखन का माहौल भी बनाता है। 'इलेक्ट्रेसी' के तहत छात्र को अनेक किस्म के रूपों जैसे पाठ,ऑडियो,ग्राफिक,वीडियो आदि और ज्ञान की वेब को खोजने के काम को मिलाकर काम करना होता है। साथ ही इससे यह अहसास भी पैदा करना होता है कि लोग बदलते हुए इलैक्ट्रोनिक समाज में काम कर रह रहे हैं।
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशिष्ट पोस्ट
मेरा बचपन- माँ के दुख और हम
माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...
-
मथुरा के इतिहास की चर्चा चौबों के बिना संभव नहीं है। ऐतिहासिक तौर पर इस जाति ने यहां के माहौल,प...
-
लेव तोलस्तोय के अनुसार जीवन के प्रत्येक चरण में कुछ निश्चित विशेषताएं होती हैं,जो केवल उस चरण में पायी जाती हैं।जैसे बचपन में भावानाओ...
-
(जनकवि बाबा नागार्जुन) साहित्य के तुलनात्मक मूल्यांकन के पक्ष में जितनी भी दलीलें दी जाएं ,एक बात सच है कि मूल्यांकन की यह पद्धत...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें