मणिपुरी औरत को मीडिया ने पहेली बनाया है। मीडिया ने उत्तर पूर्व के लोगों के प्रति एक खास किस्म का स्टीरियोटाईप विकसित किया है। यह मिथ है उत्तर पूर्व की आदिवासी औरतें चालू होती हैं,धंधेखोर होती है। यह सच नहीं है। सवाल उठता है मणिपुर की औरत को देह के धंधे में किसने उतारा ? उत्तर पूर्व के बाशिंदों को हम कभी सही नाम से क्यों नहीं पुकारते ? हमेशा स्टीरियोटाईप नाम से ही क्यों पुकारते हैं । मीडिया में उन्हें 'चिंकी','यप्पी' आदि नामों से पुकारते हैं।
असल में उत्तर पूर्व की जनजातियों के प्रति हमारे मन में भेदभाव ने कब्जा जमा लिया है। यह भेदभावपूर्ण रवैयया आया कहां से? मणिपुर में औरत सबसे ज्यादा पीड़ित है और औरतें ही सबसे ज्यादा प्रतिवाद कर रही हैं। वे दोनों किस्म के आतंक ( आतंकी गिरोहों का आतंक और सेना का आतंक) का प्रतिवाद शांतिपूर्ण तरीकों कर रही हैं। मणिपुर में जो इलाके आतंकी गिरोहों के वर्चस्व हैं वहां औरतों की दशा सबसे खराब है। यही हाल कश्मीर के आतंकी प्रभावित इलाकों का भी है। आतंकियों का सबसे ज्यादा उत्पीड़न औरतों को झेलना पड़ रहा है। दूसरी ओर मणिपुर में जिन इलाकों में सेना का दखल है वहां पर भी औरतों को सबसे पहले निशाना बनाया गया है। आतंकी और सेना इन दोनों का आतंक औरत की शांति और सम्मान का शत्रु है। इनके आतंक के निशाने पर औरत का शरीर है। औरत के शरीर पर व्यापक हमला बृहत्तर पैमाने पर चल रहे मानवाधिकार हनन का ही हिस्सा है। जिन इलाकों में आतंकी संगठन सक्रिय हैं । वहां पर आए दिन आतंकियों के हमले होते रहते हैं। भूमिगत आतंकी गिरोहों के हमलों ने गरीबों की जिंदगी पूरी तरह बर्बाद कर दी है। खासकर औरतों को सबसे ज्यादा यंत्रणाएं झेलनी पड़ रही हैं।
हथियारबंद गिरोहों के साथ सेना की मुठभेड़ वाले इलाकों में साधारण नागरिकों के पास अपनी आजीविका का कोई रास्ता नहीं बचा है। मणिपुर के अशांत इलाकों से व्यापक पैमाने पर विस्थापन हुआ है। इसके कारण औरतें जिस्म की तिजारत के धंधे में जाने को मजबूर हुई हैं। पूरे समाज में नशीले पदार्थों की आंधी चल रही है।
उल्लेखनीय है सन् 1997 के आदिवासी संघर्ष से हजारों लोग प्रभावित हुए थे उन्हें अपना घर बगैरह सब छोड़ना पडा था। इस साल हुए जातीय दंगों में लोगों का सब कुछ नष्ट हो गया था,उनके पास न रहने की जगह थी न खाने के लिए ही कुछ बचा था। इस अवस्था में औरतों के पास एक ही चीज बची थी वह था उनका शरीर। जातीय दंगों के अलावा मणिपुर में अनेक ऐसे विकास प्रकल्प लगाए गए हैं जिनके कारण हजारों लोगों को विस्थापन का सामना करना पड़ा है।
मणिपुर के जनजातीय दंगों में नागा-कुकी के दंगे,कुकी -पाइटी के बीच के दंगे,माइती-पंगल के बीच के दंगे हजारों लोगों को विस्थापित कर चुके हैं। इन दंगों के समय राज्य सरकार की तरफ से कुछ समय के लिए कुछ सहायता पीडितों को मिली थी लेकिन बाद में पीडितों को शिविरों को छोडना पडा। दंगों से प्रभावित परिवारों के पास अपने को बचाने का कोई रास्त नहीं था फलत: एक ही झटके में हजारों मणिपुरी औरतें जिस्मफरोशी के बाजार में आ गयी। उल्लेखनीय है 1990 के बाद अनेक जनजातीय दंगे के हुए हैं। और इसके बाद ही वेश्यावृत्ति के पेशे में मणिपुरी औरतें ज्यादा आई हैं।
अशांति के वातावरण ने मणिपुरी समाज में दो सबसे खतरनाक बीमारियों को संक्रामक रोग की तरह फैला दिया है ये हैं वेश्यावृत्ति और नशीलेपदार्थों की तस्करी और सेवन। वेश्यावृत्ति और नशीले पदार्थों के बढ़ते चलन के बारे में कराए सर्वे बताते हैं कि वेश्यावृत्ति में आयी तेजी का प्रधान कारण है विकास के नाम पर विस्थापन और जनजातीय खूनी झगड़े। इस इलाके में जिस्मफरोशी का धंधा बडे ही कौशल के साथ चल रहा है यहां पर वेश्याओं के खुले अड्डे कम हैं वे गैर अड्डों पर धंधा ज्यादा करती हैं। वेश्यावृत्ति के बढने का एक दुष्परिणाम यह भी निकला है कि इस इलाके में एचआईवी और एड्स के केस अचानक बढ़ गए हैं। इसकी शिकार वही औरतें हैं जो वेश्यावृत्ति में लिप्त हैं। सवाल उठता है औरतों के पुनर्वास के काम को, जनजातीय आतंक प्रभावित इलाकों में आर्थिक निर्माण के काम को केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च प्राथमिकता क्यों नहीं दी ?
जनजातीय इलाकों में आतंकी भूमिगत गिरोह अपने काल्पनिक हीरोज्म के नशे में चूर हैं और अपने अस्तित्व की रक्षा के नाम पर उनके पास नशीले पदार्थों की तस्करी, औरतों की खरीद-फरोख्त और फिरौती वसूली के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा है। हिन्दुस्तान में अपहरण और फिरौती का जिन राज्यों में व्यापक नेटवर्क काम कर रहा है उनमें उत्तर पूर्व के राज्य सबसे आगे हैं। मणिपुर में जनजातीय हीरोज्म क्षेत्रीय उपेक्षा, जनजातीय अस्मिता की रक्षा, और जातीय उत्पीड़न से मुक्ति के बहाने शुरू हुआ था उसका आज पूरी तरह अपराधकर्म में रूपान्तरण हो चुका है। आज भी मणिपुरी जनता के लोकतांत्रिकबोध और शांतिप्रिय स्वभाव की एकमात्र प्रतीक औरतें हैं। वे प्रतिवाद की भी प्रतीक हैं। मणिपुर में हीरोइज्म के प्रतीक लोग बर्बर अपराधी बन गए हैं। ये गिरोह अब जनजातीय अस्मिता के संरक्षक और हितैषी नहीं हैं। जनजातीय अस्मिता की प्रतीक अब औरतें हैं। शांतिप्रिय बागी भी वही हें।
भूमिगत आतंकी गिरोहों ने जनजातीय मुक्ति के नाम पर शांत इलाकों को स्थायी अशांति में धकेला है। आतंकी गिरोहों को बाहरी ताकतों से पैसा,हथियार आदि की सप्लाई निरंतर बनी हुई है। युवाओं में जबर्दस्त बेकारी और निराशा छायी हुई है।इसका ये गिरोह अपनी तथाकथित सेना के लिए भर्ती में इस्तेमाल कर रहे हैं। केन्द्र सरकार ने युवाओं और औरतों को पूरी तरह आतंकी गिरोहों एवं माफियाओं के रहमो-करम पर छोड दिया है। केन्द्र ने पिछले साठ सालों में औरतों और युवाओं के विकास के कोई खास कदम नहीं उठाया। इससे मणिपुरी जनता के जीवन में तबाही आई है। आए दिन बंद होते रहते हैं। स्थानीय स्तर पर अपराधी गिरोहों की समानान्तर सत्ता चल रही है,समानान्तर सत्ता के तंत्र को सेना नहीं तोडा है बल्कि उसे बनाए हुए है।इससे समूचा दैनन्दिन जीवन प्रभावित हुआ है।मानवाधिकार पूरी तरह खत्म हो गए हैं।
मणिपुरी औरतों के स्वयंसेवी संगठनों ने इस बर्बादी और तबाही के दौर में भी अहिंसा का रास्ता नहीं छोडा है। लोकतांत्रिक प्रतिवाद का रास्ता नहीं छोडा है । औरतों ने कभी सैन्यबलों पर हमले नहीं किए। किसी सरकारी कर्मचारी को नहीं मारा,किसी का अपहरण नहीं किया। इसके बावजूद औरतों की आवाज को केन्द्र सरकार अनसुनी करती रही है। शायद केन्द्र सरकार चाहती ही नहीं है कि मणिपुर में शांति लौटे।
मणिपुर में शांति लौटने का एक ही उपाय है कि सेना को विशेषाधिकार देने वाले 1958 के विशेष कानून को तुरंत वापस लिया जाए। औरतों और युवाओं के पुनर्वास के लिए व्यापक पैमाने पर नयी योजनाएं घोषित की जाएं। जो निर्दोष लोग जेलों में बंद हैं उन्हें तुरंत रिहा किया जाए। औरतें क्या चाहती हैं और वे क्यों आंदोलन कर रही हैं इस पर कार्रवाई करने के मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पहल करे और मणिपुर में शांति स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करे।
मणिपुर के आतंकी वातावरण के दो प्रधान क्षेत्र हैं पहला है भूमिगत हथियारबंद संगठन, दूसरी ओर है सेना। ये दोनों ही अपने -अपने तरीके से मणिपुरी जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन कर रहे हैं। मणिपुर में शांति स्थापित करने के लिए इन दोनों के दायरे के बाहर मणिपुर के समूचे वातावरण को ले जाना होगा। इस मामले में केन्द्र सरकार को पहल करनी चाहिए और सैन्यबल विशेषाधिकार कानून को तुरंत हटाकर समूचे राज्य में शांति बहाली का काम करना चाहिए। मणिपुरी जनता का विश्वास जीतने के लिए औरतों के संगठनों को एकजुट करके राजनीतिक और सामाजिक विकास के काम में आगे आकर भूमिका निभाने के लिए मदद करनी चाहिए।
केन्द्र सरकार में बैठे अफसरानों का यह तर्क हो सकता है कि जिन इलाकों में सेना गश्त लगा रही है वहां पर देखो बलात्कार की कोई घटना नहीं हुई। ये अफसर भूल जाते हैं सेना ने इस इलाके में स्थायी अशांति की व्यवस्था करके समूचे सामान्य जीवन को अस्तव्यस्त कर दिया है और इसका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव औरतों पर पडा है। सामान्य घरों में कमाई का कोई जरिया नहीं बचा है। आम लोगों के अस्तित्व रक्षा का एक ही रास्ता बचा है शरीर बेचो। यही वह प्रधान बिंदु है जहां से देखने की जरूरत है अब सेना या आतंकी गिरोह बलात्कार करें या न करें इससे कोई अंतर नहीं पड़ता औरतें बाजार में वेश्यावृत्ति अपनाने के लिए ठेल दी गयी हैं। अब उनके साथ रोज बलात्कार हो रहा है। आंकडे बताते हैं कि जनजातीय आतंकी गिरोहों और सेना के दखल देने के बाद मणिपुरी औरतों का एक बड़ा हिस्सा देह के धंधे में चला गया है।
आतंकी गिरोहों और सेना दोनों के लिए देह का धंधा सबसे ज्यादा लाभ कमाने का एकमात्र रास्ता है। मणिपुरी जाति और जनजाति की संप्रभुता की रक्षा के नाम पर जो विषवृक्ष बोया गया था उसके घातक परिणाम हम अब देख रहे हैं। अभी भी समय है कि मणिपुरी समाज और मणिपुरी औरत को सम्मान दिलाने के लिए आगे आएं। केन्द्र सरकार पर दबाव डालें कि वह विशेष सैन्य अधिकार कानून वापस ले। राज्य में मानवाधिकारों की स्थापना करे। सभी किस्म की पाबंदियां उठाए। औरतों के सम्मान और मर्यादा की रक्षा के लिए स्थानीय महिला संगठनों की सलाह से विकास योजनाएं तैयार करे।
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