हिन्दी 'ई' लेखकों की बहुत बडी तादाद है। इतनी बडी संख्या में कभी हिन्दी में लेखक नहीं थे। तकरीबन 11 हजार से ज्यादा ब्लॉग लेखकों के कई लाख सुंदर लेख नेट पर देखे जा सकते हैं। ये जल्दी पढ़ते हैं और तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। हिन्दी गद्य के वैविध्य का यह सुंदर नमूना है। मैंने अपने एक लेख में हिन्दी के ई लेखन की तरफ कुछ आलोचनात्मक बातें लिखीं तो अनेक 'ई' लेखक नाराज हो गए। मैं उनकी नाराजगी से सहमत हूँ। उनके पास अपनी बात के पक्ष में सुंदर तर्क हैं। उनके सुंदर तर्कों से असहमत होना असंभव है। लेकिन 'ई' लेखन की कमियों को हम यदि आलोचनात्मक ढ़ंग से नहीं देखेंगे तो कैसे आगे अपना विकास करेंगे ? यह सच है लेखक प्रशंसा चाहता है। ब्लॉग लेखक भी प्रशंसा चाहते हैं। यह एक स्वाभाविक बात है। मुझे भी प्रशंसा अच्छी लगती है । प्रशंसा से मन को संतोष मिलता है। लेकिन इससे 'ई' लेखन की समस्याएं खत्म नहीं होतीं।
हिन्दी के 'ई' लेखकों की सबसे बडी चुनौती है 'ई' लेखन। 'ई' लेखन आज ग्लोबल रूप में सहज ही उपलब्ध है। यह ग्लोबल कम्युनिकेशन है। पहले लेखन स्थानीय था। अब ग्लोबल है। पहले लेखक को स्थानीय लोग पढते थे। आज लिखते ही ग्लोबल पाठे पढ़ते हैं। पहले हम अपनी कमजोरियां अपने घर तक सीमित रखते थे, आत वे तुरंत ही विश्वव्यापी हो जाती हैं। इस अर्थ में 'ई' लेखन ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। ग्लोबल लेखन की प्रक्रिया में जाएंगे तो हमें ग्लोबल लेखन से निरंतर संवाद,संपर्क रखना होगा। हमें थोड़ा समय निकालकर ग्लोबल 'ई' लेखन में भी झांक लेना चाहिए। उसके साथ संपर्क करना चाहिए। पढ़ना चाहिए।
जिस तरह कविता ,नाटक या साहित्य लिखने के लिए अन्य का साहित्य पढ़ना जरूरी है वैसे ही 'ई' लेखन के लिए भी अन्य का 'ई' लेखन देखना जरूरी है। हम सिर्फ अपने जैसे 'ई' लेखन को ही पढ़ने में अपने को व्यस्त क्यों रखना चाहते हैं। हमें अन्य भाषा,खासकर अंग्रेजी में लिखे जा रहे 'ई' लेखन को भी सप्ताह में एक-दो बार देख लेना चाहिए। इससे हिन्दी 'ई' लेखन का स्तर सुधरेगा।
'ई' लेखन हिन्दी की सर्जनात्मक उपलब्धि है। यह लेखन का मूल्यवान रूप है। इसमें थोड़ा सा इतिहास,थोड़ी सी प्रकृति, थोड़ी सी वास्तविकता,थोड़ा सा सामाजिक परिवेश खूब आ रहा है। यह हमारे 'ई'सर्जक की अभिव्यक्ति का श्रेष्ठतम रूप है। हमारे 'ई' लेखकों ने 'ई' पाठकों तक बहुत कुछ ऐसी जानकारियां दी हैं जिसे लोग पहले नहीं जानते थे। हिन्दी के अनेक ब्लॉगर हैं जो अपने क्षेत्र,शहर,गांव और प्रान्त का हाल चाल लिख रहे हैं। सामयिक समस्याओं से लेकर प्राचीन और मध्यकालीन रचनाओं तक अपने 'ई' लेखन का विस्तार कर रहे हैं। 'ई' लेखक सीधे 'ई' पाठक के ज्ञानजगत और अनुभव जगत के साथ संवाद कर रहे हैं। इनके पास जो पाठक हैं वे तुलनात्मक तौर पर ज्यादा शिक्षित है।
हिन्दी के 'ई' लेखक जिस सामाजिक यथार्थ को अपने लेखन के जरिए सामने ला रहे हैं उसमें से अधिकांश ऐसा है जिसके बारे में कम से कम मैं नहीं जानता था। मैं सोचता हूँ, ऐसी दशा अन्य 'ई' पाठकों की भी होगी। हिन्दी के 'ई' लेखक इस अर्थ में भिन्न हैं कि वे व्यक्तिगत सुख-दुख का ब्यौरा नहीं देते। वे सामाजिक प्राणी की तरह देश दुनिया की खबर ले दे रहे हैं।
bahut hi badhiya likha.......'E' lekhan ke anek pahluon koujagar kiya......aabhar.
जवाब देंहटाएंsamsya sahee hai ki E lekhak kee gunvatta par koee doosare kaa niyantran nahee Hai.kintu ham jab bhee likheN gambheertaa se likhen jo tikaoon ho to isse statr sudharega. aaj bahut se acchhe sahityakaar net par likh kar print meediya par kabzaa jamaae sahityakaaron ko lalkar rahen hain.
जवाब देंहटाएंनिसंदेह एक संतुलित लेख है ....मेरा मानना है की हिंदी साहित्य की समग्र सामग्री ज्यू ज्यू नेट पर जुटाई जायेगी ओर कंप्यूटर पर उपलध होगी तभी इ लेखन का स्तर ओर बढेगा ... एक अच्छा पाठक ही अपनी अभिव्यक्ति को एक चुस्त भाषा दे सकता है ...अपने हाथो में मौजूद प्रिंट का बटन किसी को भी उत्साहित तो कर सकता है पर सार्वजनिक होने पर कोई भी चीज़ गुणवत्ता की मांग करेगी ही....आपका उद्देश्य इ -लेखन का क्या है...ये भी दिमाग में क्लियर होना चाहिए ..
जवाब देंहटाएं