अमेरिका के लेखक गिल्ड का मुकदमा इन दिनों न्यूयार्क जिले के दक्षिण में स्थित एक अदालत में चल रहा है,यह मुकदमा किताब का भविष्य तय करने वाला है। भविष्य में किताब किसकी होगी खासकर नेट पर उपलब्ध होने वाली डिजिटल किताब का अंतत: मालिक कौन होगा,उसका विश्व जनमत और लेखक के कॉपीराइट पर क्या असर होगा। आज सभी बौद्धिकों के सामने यह गंभीर समस्या आ खडी हुई है। यह सुनवाई 7 अक्टूबर 2009 को होने वाली थी जिसे लेखक संघ के अनुरोध पर स्थगित कर दिया गया था अब यह सुनवाई आगामी 6 नबम्वर 2009 को होने जा रही है। जिला जज डेनी चिन से डिजिटल किताब समझौते के विरोधियों ने मांग की है कि इस समझौते को रद्द किया जाए। उल्लेखनीय है यह केस सन्2005 से चल रहा है और इसमें प्रकाशकों,लेखकों और गुगल के बीच में एक समझौता भी हो गया है जिसे कई लोगों ने अदालत में जनहित का मामला बनाकर चुनौती दी है। सुनवाई में अब तक जो भी बाधा आई है उसमें गुगल वालों की भी सहमति रही है। गुगल वालों का कहना है न्याय मंत्रालय और अन्य लोगों ने जो मुद्दे उठाए हैं उन पर वह खुले मन से विचार करने को तैयार है। डिजिटल किताब समझौते के आलोचकों में 'ओपन बुक एलायंस' , इंटरनेट लाइब्रेरी और माइक्रोसाफ्ट भी शामिल है।इनका मानना है कि इस केस की सुनवाई स्थगित होने से वे खुश हैं । क्योंकि इससे गुगल का व्यापक नुकसान हुआ है।
कुछ अर्सा पहले तक गुगल वाले यही कह रहे थे कि वे समझौते में कोई बदलाव करने की स्थित में नहीं हैं। अब वे यह कह रहे हैं कि वे परिवर्तनों को राजी हैं। आलोचकों का दावा है कि गुगल का किताब समझौता असल में खत्म हो गया है। उल्लेखनीय है अमेरिका के न्याय विभाग के इस समझौते के खिलाफ मैदान में कूछ पड़ने के कारण स्थितियां ज्यादा जटिल बन गयी हैं। गुगल वाले चाहते हैं मुकदमे की सुनवाई के दौरान न्याय विभाग इस समझौते का विरोध नहीं करे। अथवा कम से कम वह तटस्थ हो जाए। जिससे इस समझौते को अदालत से स्वीकृति दिलाई जा सके। न्याय विभाग चाहता है कि विवाद में शामिल विभिन्न पार्टियां इस समझौते के संदर्भ में जो भी नए बिंदु समझौते में शामिल करना चाहती है वे अपने सुझाव दें। ये सुझाव कॉपीराइट कानून और इजारेदार विरोधी कानूनों को मद्देनजर रखकर दिए जाने चाहिए। न्याय विभाग ने कहा है कि इस समझौते से यह बात उभरकर आती है पुस्तक प्रकाशकों के पास किताब के मूल्य निर्धारण का अधिकार रहेगा। इसमें गुगल की कोई भूमिका नहीं होगी। जबकि अनाथ किताबों के बारे में निर्णय लेने का हक गुगल को दिया गया है। मसलन् कोई किताब है जो कॉपीराइट कानून के दायरे में आती है किंतु उसके लेखक या कॉपीराइट मालिक का पता नहीं है तो ऐसी किताब के वितरण का हक गुगल को दिया गया है। इस समझौते के तहत गुगल 125 मिलियन डालर का 'बुक राइटस रजिस्ट्री' विभाग खोलेगा जो ऑन लाइन किताबों के अधिकार अनुबंध तैयार करेगा। इसके तहत ऑनलाइन इस्तेमाल होने वाली किताब की रॉयल्टी प्रकाशक और लेखक को दी जाएगी।
"खोलेगा तो देखेंगे"
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