हिन्दी के साहित्यिक और बौद्धिक कुभकर्ण सोए हुए हैं। उन पर कोई अंतर नहीं पड़ता कि दुनिया में क्या हो रहा है वे मस्त हैं, मोटी-मोटी तनख्वाहें उठा रहे हैं। जो लेखक और बुद्धिजीवी हैं उनकी खाल इतनी मोटी हे कि वे मोबाइल इस्तेमाल करना तक ठीक से नहीं सीख पाए हैं। उन्हें एसएमएस करना नहीं आता। ईमेल करना नहीं आता।वे चाहते हैं बगैर कुछ किए ही सब कुछ उन्हें मिल जाए। हिन्दी के बुद्धिजीवी का कुंभकर्णी भाव क्या उसके अवसान की सूचना है ? आखिरकार हिन्दी में यह कुंभकर्णी भाव आया कहां से। हिन्दी के विकास में साहित्य कुंभकर्ण सबसे बडी बाधा हैं। इससे हिन्दी पिछड़ गयी है। हिन्दी वाले स्वयं प्रयास करके यूनीकोड फॉण्ट में अभी तक पहुँच क्यों नहीं पाए हैं। यह फॉट मुफ्त में उपलब्ध है इसके बावजूद हिन्दी वाला उसका इस्तेमाल करने से गुरेज क्यों करता है ? क्या हिन्दी वाले नहीं जानते कि संचार तकनीक के इस्तेमाल के मामले में वे एक सिरे से पिछड़ गए हैं। क्या हिन्दी वालों को अपने तकनीकी पिछडेपन पर शर्मिंदगी का एहसास होता है ? वे इधर उधर की निंदा,व्यर्थ की आलोचना आदि में जितना समय अपव्यय करते हैं उसका यदि दस प्रतिशत समय भी आधुनिक संचार तकनीक को समझने और उसका इस्तेमाल करने पर खर्च कर पाते तो हिन्दी का मुख उज्ज्वल होता।
आने वाले समय में हमारे सामने और भी चुनौतियां आने वाली हैं हो सकता है हिन्दी के किसी शिक्षक की कक्षा के नोटस ज्यों के त्यों ब्लाग में या अन्य कहीं रीयल टाइम में पडे हों और शिक्षक को पता ही न हो। ऐसे में उसकी नौकरी जाने की पूरी संभावनाएं हैं। क्योंकि कक्षा में वे जो पढाते हैं उसे सिर्फ वे ही जानते हैं और उन्हीं के काम का होता है। कक्षा में जब छात्र लेपटॉप के साथ आएगा अथवा आवाज रिकॉर्डर के साथ आएगा और शिक्षक के व्याख्यान को वेब पर सुना देगा तो कैसा लगेगा ? अभी भी समय है हिन्दी के साहित्यिक,अकादमिक, और बौद्धिक कुंभकर्ण जगें और देखें कि संचार की दुनिया में क्या हो रहा है। वे जानें कि आखिरकार गुगल का सीईओ भविष्य के इंटरनेट के बारे में क्या कह रहा है,'ट्विटर' का क्या होगा, ब्लॉग का क्या होगा।
गुगल के सीईओ एरिक स्मिड ने भविष्यवाणी की है कि आगामी पांच सालों में इंटरनेट पर चीनी भाषा की अंतर्वस्तु का वर्चस्व होगा। साथ ही टीवी,रेडियो और वेब का अंतर खत्म हो जाएगा। एरिक का यह भी अनुमान है आज का युवा वेब का आदर्श मॉडल है। भविष्य में ये और भी आगे चले जाएंगे। भविष्य में ब्रॉडबैण्ड की क्षमता 100एमबी से भी ज्यादा की हो जाएगी। टीवी,रेडियो और वेब का अंतर खत्म हो जाएगा। हम ज्यादा से ज्यादा वीडियो की ओर जाएंगे। रीयल टाइम में सूचनाएं वैसे ही प्रासंगिक बनी रहेंगी जैसे आज हैं। आज भी गुगल पर आप जो भी करते हैं उसका पूरा लेखाजोखा रहता है। भविष्य में इसका प्राथमिकता के आधार पर क्रम भी मिलेगा। भविष्य में परंपरागत स्रोत से प्राप्त सूचनाओं को सुनने या पढने की बजाय यूजर के द्वारा दी जा रही सूचनाओं की महत्ता बढेगी।
हम भविष्य में जिस 'गुगल वेब' इस्तेमाल करेंगे वह व्यक्तिगत संचार और सम्मिश्रण का सबसे प्रभावशाली उपकरण होगा। इसके जरिए हमारी डिजिटल उपभोग क्षमता में क्रांतिकारी बदलाव आएंगे । गुगल वाले इंटरनेट संचार की समस्त प्रक्रियाओं को संचार प्रक्रिया को गुगलवेब के अंदर ले जाना चाहते हैं। इससे संचार की जटिलताएं घटेंगी।
गुगलवेब ने अपने इस प्रयोग के बारे में राय जानने के लिए एक लाख लोगों को चुनकर प्रिव्यू के लिए भेजा है। गुगल के इस प्रयोग के यदि सार्थक परिणाम आते हैं तो भविष्य में सारे संवाद,संपर्क गुगलवेब के माध्यम से ही होंगे। इससे आपके ब्राउजर की क्षमता बढ जाएगी। इसका सबसे आकर्षक फीचर है इसकी स्पीड। यह इंटरनेट के संचार को नए सिरे से परिभाषित करने की कोशिश भी है। अभी हम चालीस साल पुराने फार्मूले के आधार पर इंटरनेट पर काम वला रहे हैं। गुगलवेब में रीयलटाइम में ही आप अपने डाटा,फोटो,संदेश आदि को भेज पाएंगे। मसलन आप ज्योंही पत्र लिखेंगे लिखते ही वह ग्रहणकर्ता के पास रीयल टाइम में पहुँच जाएगा। यही हाल उसके संपादन और इमेजों का होगा। वे भी रीयल टाइम में भेज दी जाएंगी। ज्योंही गुगल का नया वेब फार्मेट व्यवहार में आएगा आप ये सारे परिवर्तन देख पाएंगे। नयी प्रणाली चालू होते ही आप किसी भी संदेश को संपादित कर सकते हैं, भेजने के साथ ही संपादित कर पाएंगे। अगर भेज दिया है तब भी संपादित कर पाएंगे।कोई जबाव मांगा जा रहा है तो साथ ही जबाव भी दे पाएंगे। आप किसी व्यक्ति को बाद में बुलाना चाहते हैं तो बाद में आकर वह सारी चीजें जानकर जा सकता है। यह कार्य प्लेबैक बटन के सहारे किया जाएगा। अब गुगल ने इस नए सिस्टम में गेम जोडने के बारे में भी सोचा है। आप चाहें तो अपने पेज गेटअप को भी बदल सकते हैं। गुगलवेव की खूबी है कि इसमें गेम थ्योरी के बहुत सारे नियमों और तकनीकों को मिलाकर बनाया गया है।
दूसरी ओर नया विधा रूप 'ट्विटर' आ गया है। 'ट्विटर' के खेल निराले हैं यह बेहद सरल,व्यंग्यात्मक और ईमानदार अभिव्यक्ति का विधा रूप है। 'ट्विटर' लेखन की शैली क्या है और इसके लिए किस कौशल की जरूरत है। इसे डॉम सागुल्ला और एडम जैक्सन ने '140 करेक्टर ,ए स्टायल गाइड फॅर दि शार्ट फार्म'' नामक किताब में सुदर ढंग से बताया है। इस किताब की समीक्षा करते हुए जेना वार्थम ने लिखा है कि इस किताब के आठ मूल सबक हैं। ये सबक 'ट्विटर' लेखन के लिए परमावश्यक हैं। इसके तीन लक्षण हैं पहला है सरल लेखन,दूसरा हैव्यंग्य, और तीसरा है ईमानदार अभिव्यक्ति।
अनेक बार यह भी देखा गया है ''ट्विटर' लेखक बोर हो जाते हैं। इस किताब के लेखक ने 'बाथरूम ट्विटस' अथवा शारीरिक भाव-भंगिमा को व्यक्त करने वाले संदेशों के बारे में भी लिखा है। सागुल्ला का मानना है '' यह साहित्य का नया रूप है।'' इसकी तुलना उन्हरेंने जापानी कविता हाइकू के फार्मेट के साथ की है। इस किताब का अच्छा खासा हिस्सा सागुल्ला के संस्मरणों से भरा हुआ है। सागुल्ला स्वयं 'ट्विटर' के निर्माण की प्रक्रिया का हिस्सा रहे हैं। इन दिनों एडोव सिस्टम में इंजीनियर के रूप में काम कर रहे हैं। वे 'ट्विटर' की एक डिक्शनरी भी बनाने की सोच रहे हैं। इससे सटीक ढंग से 140 अक्षरों के संदेश बनाने में मदद मिलेगी। यह किताब आने की भी मजेदार कहानी है। सागुल्ला और जैकसन 'आई फोन' डवलपर की एक कॉंफ्रेंस में मिले और वहां पर कुछ आरंभिक बातें हुईं। आरंभ में यही तय हुआ कि इस पुस्तक को 'आई फोन' पर डाउनलोड करके दे दिया जाएगा, बादमें इस किताब को प्रिंट रूप में लाने का विचार आया। असल में 'ट्विटर' विधा 140 अक्षरों वाले फार्मेट का निर्माण 'आईफोन' के लिए किया गया था। 'ट्विटर' पर यह कोई पहली किताब नहीं है। इसके अलावा भी किताबें हैं जैसे '' ट्विटर रिवोल्यूशन' , '' ट्विटर मीन बिजनेस'', और '' ट्विटर फॉर डमीज'' ।ये सभी किताबें इस विधा के जरिए कैसे व्यापार करें और धन कमाएं, के नजरिए से लिखी गयी हैं। लेकिन सागुल्ला की किताब ''140 करेक्टर्स'' में सभी किस्म की सोशल नैटवर्किंग के नियमों को सरलतम रूप में प्रस्तुत किया है। यह किताब 'ट्विटर' के सभी किस्म के प्रयोगों को ध्यान में रखकर लिखी गयी है।
' ट्विटर' मूलत: सोशल नेटवर्किंग का हिस्सा है इसके दो और अंग हैं, 'यू टयूब' और ' फेसबुक' ये तीनों रूप मिलकर सोशल नेटवर्किंग का पूरा स्वरूप उभरकर सामने आता है। 'ट्विटर' का नया उपहार यह है कि इसके यूजर की पूरी सूची अब उपलब्ध है। अब तक हम नहीं जानते थे कि इस विधा के यूजर कौन हैं। अब जानते हैं इसके यूजर कौन हैं और उनका वर्गीकरण भी किया गया है। ट्विटर' के यूजरों की सूची जारी होते ही 50 फीसद यूजरों ने तुरंत इसे खोलकर देखा। आप इसमें जाकर पता कर सकते हैं आखिरकार आपको कहां शामिल किया गया है।
बहुत सारगर्भित जानकारी पूर्ण पोस्ट...शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंनीरज
सही है। नयी तकनीक हिन्दी को नया जीवन दे सकती है। इसलिये सभी हिन्दी प्रेमियों को उपलब्ध भाषा-प्रद्योगिकी का भरपूर उपयोग करना चाहिये और जो तकनीक अपनी भाषा के लिये उपलब्ध नहीं है उसकी माँग की जानी चाहिये या खुद तैयार करनी चाहिये (यदि करना सम्भव हो)।
जवाब देंहटाएंअत्यंत सामयिक महत्त्व और उद्बोधन पूर्ण आलेख| अपने याहू समूह हिन्दी-भारत
जवाब देंहटाएंhttp://groups.yahoo.com/group/HINDI-BHARAT/
तथा कई मित्रों को भेज रही हूँ| .. कि सचेत हो जाना चाहिए अब तो ...
मुझे याद नहीं, वर्षों पहले हरिशंकर परसाई या शरद जोशी का एक व्यंग्य पढा था, जिसमे रचनाकार बखूबी कहते हैं कि पठन पाठन की माध्यम अंग्रेजी इसलिए है कि अध्यापकों ने अपने नोट्स अंग्रेजी में बनाये हैं, और वे मेहनत करना नहीं जानते, बस उसी को साल दर साल दुहराते रहते हैं | अगर भारत की शिक्षा व्यवस्था देखनी हो तो बहुत हद तक ये बातें सच भी है| जो इमानदार होता है, उसे तो विद्वान भगा देते हैं, नहीं, तो सबको पता चल जायेगा कि कौन कितना नंगा है | घूम फिर कर वही किताबें, वही सिलेबस, और वही रटे रटाये डायलोग, और वही सवाल | यह हिंदी ही नहीं, बहुत हद तक भारतीय शिक्षण व्यवस्था पर लिखा गया एक सुन्दर लेख है |
जवाब देंहटाएंजिसे भी स्थाई नौकरी मिलती है, वह छाती ठोंक कर कहता है, "मुझे जितना पढ़ना था, पढ़ लिया और अब मुझे अमुक की टांग खींचनी है, अमुक से इस बात का बदला लेना है|" और "प्रोफेसर" साहब विश्वविद्यालय की दलगत राजनीती में शामिल हो जाते हैं|
उनमे से कई भ्रष्ट हो जाते हैं, कई प्रांतवाद, क्षेत्रवाद, या वैचारिक (मार्क्सवाद, कांग्रेस, या भाजपाई ) राजनीती में शामिल हो जाते हैं, और अपनी कक्षाओं में १५ मिनट देर से आना, १० मिनट पढाना, और १५ मिनट पहले जाना अपनी आदत में शामिल कर लेते हैं, क्योंकि, "उनके पास आज बहुत काम है, फलां मीटिंग है, स्टाफ काउंसिल में जाना है, आदि, इत्यादि |" तो जब वे इतना "काम" करेंगे तो नयी तकनीक के लिए उनके पास समय कहाँ से होगा, क्योंकि उसमे तो पढना पड़ेगा, सीखना पड़ेगा, जिसकी आदत एम्, ए के दौरान छूट गयी थी | नेट के लिए किसी ने मदद कर दी, या सवाल बता दिए या सच में पढ़ लिया | तो, बीच में NET को ही गैर वाजिब कर दिया गया था |
बस इसलिए हम कहीं भी साथ काम नहीं कर सकते, नोबेल वैगरह तो बहुत दूर की बाते हैं |
कुंभकर्ण की नींद में खलल डालने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंऩई तकनीक को हिंदी लेखकों ने समझना जरुरी है। पुणे विश्वविद्यालय में हिंदी अध्ययन मंडल का नामित सदस्य होने पर मैंने भी सूचना प्रौद्योगिकी के बारे पाठ शामिल करने का अनुरोध किया था तव भी विरोध हुआ था। बाद में यूजीसी की सूचना के अनुसार अब विश्वविद्यालय को सूचना प्रौद्योगिकी तथा हिंदी के बारे में पाठ शामिल करने पड़ रहे है।