आज मुक्तिबोध सप्ताह का अंतिम दिन है 'नया जमाना' और देश काल डॉट कॉम पर यह कार्यक्रम एक सप्ताह से चल रहा है ,इसे नेट पाठकों और लेखकों का व्यापक समर्थन मिला है, इस दौरान मुक्तिबोध को हजारों लोगों ने पढ़ा है।यह मुक्तिबोध की जनप्रियता और विचारों की प्रासंगिकता का नया प्रमाण है।यह हिन्दी साहित्य के लिए सबसे बड़ी शुभ खबर है। यह इस बात का भी संकेत है कि हिन्दी के नेट लेखकों को भविष्य में क्या करना है।
इंटरनेट आधुनिक युग की लाइफलाइन है। वैसे ही मुक्तिबोध आधुनिक साहित्य की लाइफलाइन है। आधुनिक युग की धड़कनों को सुनना,देखना और महसूस करना है तो आप नेट पर जाइए आपको सामयिक यथार्थ ठोस रूप में नजर आएगा। लोकतांत्रिक संचार की सर्वोत्तम सृष्टि है नेट और आधुनिक हिन्दी साहित्य के सर्वोत्तम कृतिकार हैं मुक्तिबोध। दोनों ही (नेट और मुक्तिबोध) स्वभावत: लोकतांत्रिक हैं। दोनों को नई दुनिया,नए विचार,नया यथार्थ ,नई तकनीक पसंद है।दोनों के यहॉं लेखक और पाठक में भेद नहीं है। दोनों के लिए लेखक और पाठक एक है।दोनों की महत्ता है। यही वह प्रस्थान बिंदु था जब मेरे दिमाग में अचानक यह विचार आया कि हमें नेट पर मुक्तिबोध सप्ताह मनाना चाहिए। मैंने तुरंत 'देशकाल डॉट कॉम' के संपादक मुकेश कुमार जी को मेल किया और कहा क्या मुक्तिबोध नेट सप्ताह मनाएंगे, उनका कुछ देर बाद जबाव आया मैं राजी हूँ। बस मुझे बहाना मिल गया और इस तरह मुक्तिबोध सप्ताह का काम शुरू हो गया। इसके बाद मैंने अपने कोलकाता में दोस्त और पुराने नेट लेखक प्रियंकर पालीवाल से मुक्तिबोध सप्ताह का जिक्र किया और उन्हें भी यह विचार पसंद आया और उन्होंने भी पूरे सहयोग का वायदा किया।
देशकाल डॉट कॉम ने 13 -19 नबम्वर 2009 के सप्ताह को मुक्तिबोध जन्मदिन नेट सप्ताह मनाने की घोषणा कर दी। यह अपने किस्म की किसी हिन्दी लेखक पर पहली बड़ी इंटरनेट पहल थी, जिसमें हिन्दी के श्रेष्ठ और वरिष्ठ आलोचकों सर्वश्री शिवकुमार मिश्र,मैनेजर पांडेय,सुधीश पचौरी मुरलीमनोहर प्रसाद सिंह,विश्वनाथ त्रिपाठी,नित्यानंद तिवारी, अशोक बाजपेयी,चंचल चौहान,अरूण माहेश्वरी,शिवराम,महेन्द्र 'नेह', प्रियंकर पालीवाल और दिल्ली विश्वविद्यालय की शोधछात्रा भावना घुत्याल ने नेट की तेज गति के साथ ताल मिलाते हुए हमें सहयोग दिया।हम इन सबके आभारी हैं। उल्लेखनीय है ये सभी बड़े आलोचक हैं और इन सबके लेख एक ही जगह वह भी मुक्तिबोध पर हिन्दी में किसी भी पत्रिका में एक जगह कभी नहीं छपे। इन सभी को एक जगह लाने में नेट के कारण ही सफलता मिली। नेट के कारण ही इन लोगों ने बहुत कम समय के नोटिस पर मुक्तिबोध के बारे में अपने विचार व्यक्त किए। यह काम डा.सुधा सिंह ने बड़े कौशल के साथ सम्पन्न किया। उल्लेखनीय है युवा आलोचकों में बेहतरीन आलोचिका के रूप में सुधाजी को सभी आलोचक जानते और मानते हैं। सुधाजी ने इस कार्य में जो मदद की वह मूल्यवान है,उनकी मूल्यवान मदद के कारण ही नेट पर मुक्तिबोध पर वरिष्ठ आलोचकों के मौलिक विचारों को सम्प्रेषित कर पाए।
जब पहले दिन नेट पर सामग्री आई तो प्रियंकर पालीवाल को मैंने फोन किया वे बीमार थे, दूसरे दिन सुबह उन्होंने नेट देखा और फोन करके बेहद खुशी का इजहार किया,मुझे अच्छा लगा। उन्होंने इस दौरान अपने ब्लाग 'अनहद नाद ' पर वायदे के मुताबिक मुक्तिबोध पर लिखा भी। उन्होंने अपनी पहल पर ब्लागवाणी के संचालक महोदय को मेल किया कि नेट पर मुक्तिबोध सप्ताह का 'नया जमाना' ब्लॉग और देशकाल डॉट कॉम पर आयोजन शुरू हो चुका है और आप मदद करें। ब्लागवाणी वालों ने शानदार मदद की,उन्होंने 'ब्लागवाणी' एग्रीगेटर पर मुक्तिबोध की स्वतंत्र चौकी सजा दी और नेट सप्ताह की घोषणा कर दी इस तरह हिन्दी का सबसे बड़ा ब्लाग एग्रीगेटर ब्लागवाणी भी मुक्तिबोध जन्मदिन नेट सप्ताह का हिस्सा बन गया। विश्व के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी भी लेखक पर सात दिन तक ब्लागरों ने इस तरह साहित्यिक आनंद लिया हो। हिन्दी और भारतीय भाषाओं के लिए 'ब्लागवाणी' ने मुक्तिबोध नेट सप्ताह पर जो मदद की है मैं उसके लिए उनका ऋणी हूँ। 'ब्लागवाणी' की वजह से मुक्तिबोध नेट सप्ताह को हजारों लेखकों और पाठकों तक पहुँचाने में सफलता मिली है। मैं यह भी चाहता था गुरूदेव नामवर सिंह भी नेट पर आएं और मुक्तिबोध पर अपने नए पुराने विचार रखें, सुधाजी ने कोशिश भी की थी,नामवरजी से बातें भी हुईं। उन्होंने समय भी दिया लेकिन उनसे मुक्तिबोध के बारे में बुलवाना संभव नहीं हो पाया, उनका मानना था मुक्तिबोध पर हल्के फुल्के ढंग से बातें नहीं की जा सकतीं। अपनी व्यक्तिगत व्यस्तताओं के कारण नामवरजी मुक्तिबोध पर गंभीर बातें करने का समय नहीं निकाल पाए। नामवरजी पर मुक्तिबोध का यह नेट ऋण बाकी है हम चाहेंगे कि वे इसे जरूर चुकाएं। नामवरजी हमारी सबसे कीमती संपत्ति हैं। उन्हें मुक्तिबोध पर बोलना होगा चाहे वे देर से ही बोलें। अंत में नेट के पाठकों का भी शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ, कि उन्होंने दिलचस्पी के साथ मुक्तिबोध के बारे में पढ़ा और अनेक लोगों ने अपनी टिप्पणियां भी भेजी हैं। खासकर देशकाल डॉट कॉम पर प्रसिद्ध अर्थशास्त्री गिरीश मिश्र की टिप्पणी बेहद विचारोत्तेजक आयी है।हम इन सबके आभारी हैं।
नामवर सिंह क्या ऋण चुकाएंगे। कलम पकड़ना छोड़ दिया है की-बोर्ड क्या खाक चला पाएंगे।
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