आतंकवाद के विभिन्न गुट विभिन्न देशों में राष्ट्र-राज्य की सत्ता को खुली चुनौती दे रहे हैं। आतंकवाद का जनतांत्रिक राष्ट्र से सीधा अंतर्विरोध शुरु हुआ है।यह एकदम नया फिनोमिना है। आधुनिक राष्ट्र के साथ जिन ताकतों का अन्तर्विरोध है उनमें साम्राज्यवाद सबसे आगे है।यही वजह है कि आतंकवाद का वह अपने क्षुद्र स्वार्थों के लिए विश्वस्तर पर इस्तेमाल करता रहा है।साम्राज्यवाद को अमरीका के बाहर प्रत्येक राष्ट्र-राज्य में अस्थिरता और असुरक्षा पसंद है और इस कार्य को आतंकवाद अपने आक्रामक तरीकों से अंजाम देता है।यही वजह है कि आज विश्व स्तर पर आतंकवाद के सहजिया सम्प्रदाय का निर्माण हो चुका है।इन संगठनों के नाम और रुप भले ही अलग-अलग दिखाई दें किन्तु इनका सामान्य लक्ष्य है राष्ट्र को तोड़ना और जनता की एकता को भंग करना। बी.क्रोजियर ने ''ए थ्योरी ऑफ कन्फलिक्ट''(1975) में आतंकवाद पर अमेरिकी प्रशासन की एक रिपोर्ट को उध्दृत करते हुए लिखा है कि आतंक और हिंसा कमजोरों का अस्त्र है। ये लोग संख्या में कम होते हैं और सत्ताहीन होते हैं;ये ऐसे लोग हैं जो परंपरागत तरीकों से सत्ता प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं। हकीकत यह है कि हिंसा और आतंक की खबरें अंतत: आतंकवादियों के लक्ष्य की पूर्त्ति करती हैं। इस परिप्रेक्ष्य में यदि 11सितम्बर से जारी आतंक की खबरों को देखेंगे तो पाएंगे कि इससे आतंकवादियों को ही लाभ पहुँचा है। आतंकवादी कार्रवाई के तीन लक्ष्य होते हैं-पहला,सुचिंतित ढ़ंग से कुछ प्रमुख केंद्रों या संस्थानों पर हमला।
दूसरा,आतंक और हिंसा की कार्रवाई की बढ़-चढ़कर जिम्मेदारी लेना। तीसरा, सत्ता से लाभ प्राप्त करना। पहला चरण कार्यनीतिक है। दूसरा चरण रणनीतिक है और तीसरा चरण मूल अभीप्सित लक्ष्य है। कार्यनीतिक स्तर पर लोगों को डराना,धमकाना,आतंकित करना और हमला करना होता है। रणनीतिक चरण के दौरान अतिनाटकीय ढ़ंग से आतंक और हिंसा की कार्रवाई सम्पन्न करना। परिणामत: माध्यमों का अपनी बात की तरफ ध्यान खींचा जाय। वासीउनी का मानना है कि आतंकवादियों की कार्यनीति,रणनीति और लक्ष्य एक-दूसरे से अंतर्गृथित हैं।इसमें माध्यमों के ज्यादा से ज्यादा मेनीपुलेशन पर जोर रहता है।साथ ही सरकार की नपुंसकता पर भी जोर रहता है। अपने हमलों के लिए ऐसे निशानों को चुना जाता है जिनसे सहानुभूति पैदा करने और आतंकवादी कार्रवाई को तार्किक ठहराया जा सके।साथ ही जनता को अलग-अलग खेमों में गोलबंद किया जा सके। परिणामत: सरकार द्वारा उठाए गए दमनात्मक कदमों के प्रति घृणा पैदा हो और आतंकवादियों की हिंसा को शहीदाना कार्रवाई सिध्द किया जाय। वासीउनी के दृष्टिकोण के परिप्रेक्ष्य में अमरीका में 11 सितम्बर को हुई हिंसा का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि आतंकवादियों ने सचेत रुप से निशानों के लिए वे ही इमारतें चुनीं जो अमरीकी राजसत्ता की प्रतीक मानी जाती थीं।जिन्हें बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और अमरीकी राजसत्ता का प्रतीक कहा जा सकता है। इन हमलों में मारे गए लोगों के प्रति सारी दुनिया की सहानुभूति है,जबकि अमेरिका के प्रति विश्व जनमत बंटा हुआ है। इस हमले में जो जनहानि हुई है उसका सही अंदाजा लगाना कठिन है किन्तु भूमंडलीय माध्यमों ने इस हमले में मारे गए गैर- अमरीकी लोगों के प्रति जो उपेक्षा भाव दिखाया है जिस तरह एकतरफा ढ़ंग से अमरीकी हितों एवं वर्चस्ववादी कार्रवाईयों के प्रति वैचारिक परिवेश निर्मित किया है और विश्व जनमत की उपेक्षा की है वह सबके लिए चिन्ता की बात है।
सीएनएन के प्रसारणों में तालिबान और बिन लादेन को सीधे-सीधे अपराधी करार दे दिया गया। जिन लोगों को पूछताछ के बहाने एफबीआई ने गिरफतार किया उन्हें सीधे तालिबान का आदमी घोषित कर दिया गया। जबकि सच्चाई यह है कि मात्र दो लोगों की गिरफ्तारी के वारंट जारी किए गए। 'स्टार न्यूज' की संवाददाता माया मीरचंदानी ने 14सितम्बर को खबर दी कि 14तारीख तक जितने लोग पकड़े गए वे सब निर्दोष पाए गए और किसी का भी तालिबान से सम्बन्ध नहीं पाया गया।किन्तु सीएनएन ने इस तथ्य को छिपाया।यहां तक कि जो सफेद कार पहले दिन एफबीआई ने पकड़ी थी और कार के मालिक होने के कारण बुखारी बंधुओं को तालिबान का आदमी घोषित करने भूमंडलीय माध्यमों ने इड़ी-चोटी का पसीना एक कर दिया,बार-बार तीन दिनों तक सीएनएन के खबरों के कैपसूल से सफेद कार हटी नहीं और सीएनएन के किसी रिपोर्टर कार के मालिक की प्रतिक्रिया जाननी जरुरी तक नहीं समझी और वगैर सच्चाई का पता किए बुखारी बंधुओं को बिनलादेन के नैटवर्क से जुड़ा घोषित कर दिया।जबकि सच्चाई यह है कि एफबीआई ने आतंवादी हमलों में शामिल होने के संदेह में जिन दो बुखरी बंधुओं का हाथ होने की बात कही थी उनमें से एक अमीर बुखारी की एक साल पहले ही मौत हो चुकी थी। दूसरे अदनान बुखारी को लाई डिटेक्टर परीक्षण के दौरान निर्दोष पाया गया और तुरंत छोड़ दिया गया।यह तथ्य 14 सितम्बर की रात को 'स्टारन्यूज' की रिपोर्टर के भेजे संवाद में शामिल था जबकि सीएनएन ने इसे अपने दर्शकों को बताया तक नहीं।
सीएनएन ने इस घटना का कवरेज प्रस्तुत करते समय जब भी तालिबान पर रिपोर्ट पेश की तो यह तो बताया कि तालिबान के निर्माण में आईएसआई का हाथ है किन्तु इस तथ्य को छिपाया कि तालिबान की फौज गठित करने में सीआईए की केन्द्रीय भूमिका थी और अमरीकी सीनेट ने 3 विलियन डॉलर धन दिया,सैन्य प्रशिक्षण,अस्त्र निर्माण, हवाई जहाज चलाने आदि के कार्यों में सक्रिय भूमिका अदा की।सीएनएन के कवरेज में बार-बार अनेक विशेषज्ञों ने आतंकवादी कार्रवाई को फिलिस्तीन-इजराइल संघर्ष से जोड़ने, अमरीकी जीवन शैली पर हमले और इस्लाम से जोड़ने की कोशिश की,बार-बार बताया गया कि फिलिस्तीन एवं लेबनान में इस हमले से खुश होकर जश्न मनाया गया।इस सन्दर्भ में दो फोटो बार-बार दिखाए गए। इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ने की कोशिश की गयी।
फिलीस्तीनियों एवं लेबनानियों ने जश्न मनाया यह बात सामान्य तर्कों की रोशनी में गले नहीं उतरती।पूरे दस दिन के कवरेज में सीएनएन ने कभी भी फिलीस्तीनियों एवं लेबनानियों से यह जानने की कोशिश नहीं की कि वे लोग इस हमले पर क्या सोच रहे हैं।जबकि फिलीस्तीन के प्रमुख यासिर अराफात का इस हमले की तीव्र भर्त्सना करते हुए बयान आ चुका था जिसे सीएनएन ने भी प्रसारित किया।सीएनएन ने जश्न की तस्वीरें कहाँ से प्राप्त कीं ? यह तथ्य गायब था जबकि 'इकोनॉमिक टाइम्स' ने 12 सितम्बर को एपी का भेजा फोटो छापा जिसमें कुछ बच्चे विश्व व्यापार केन्द्र पर हमले पर विजयोल्लास मनाते दिखाए गए।जबकि खबरों में जश्न की खबर गायब थी किन्तु भीतर के पेज पर शीर्षक था''पैलेस्तीनियन्स,लेबनीज गनमैन सेलीवरेट ऑन न्यूज ऑफ अटैक''। ध्यान देने वाली बात यह है कि फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन, हमास और डेमोक्रेटिक फ्रन्ट जैसे महत्वपूर्ण संगठनों ने इस हमले की खुली भर्त्सना की उसे प्रमुखता से दिखाने की बजाय एक अप्रामाणिक फोटोग्राफ को बार-बार दिखाकर फिलिस्तीनियों एवं लेबनानियों के प्रति घृणा पैदा करने की कोशिश की।
भूमंडलीय माध्यम फिलिस्तीन-लेबनान के प्रति शुरु से ही पूर्वाग्रह ग्रस्त रहे हैं और इजरायल आतंक एवं हिंसा की गतिविधियों की हिमायत करते रहे हैं।'हिन्दू'(16सितम्बर) में सेवन्ती नीनन ने लिखा कि मंगलवार को जब लाखों बच्चे एवं युवा जब उस भयानक हादसे को सीधे देख रहे थे जिसमें कम से कम 20,000 लोगों के मारे जाने की सम्भावना है। इस घटना के चंद घटों के अन्दर जिस तरह नाचते,जश्न मनाते और वी फॉर विकट्री के प्रतीक को दर्शाते अरबों की यरुसलम से जश्न की तस्वीर प्रस्तुत की गई ,इन दोनों के पीछे निहित संदर्भ और अर्थ को समझने की जरुरत है।वे पूरी दुनिया को बताना चाहते हैं कि अरब और फिलिस्तीनियन कितने संवेदनहीन हैं ?यह बताते हुए भूमंडलीय माध्यम यह बताना भूल जाते हैं कि अमरीका की मध्य-पूर्व में क्या भूमिका रही है। कहने का मतलब यह कि माध्यम प्रस्तुतियों को प्ढ़ते समय संदर्भ और उपेक्षित संदर्भ इन दोनों का ख्याल रखा जाना चाहिए। फिलिस्तीनियों और अरबों पर इजरायली हमलों प्रतिदिन दसियों निर्दोष नागरिक मारे जा रहे हैं किन्तु इसके बावजूद सीएनएन को इजरायल मानव नजर आता है और फिलिस्तीनी जानवर नजर आते हैं।लाखों फिलिस्तीनी और अरब नागरिक विगत 50 वर्षों में इजरायल के बर्बर हमलों के शिकार हुए हैं किन्तु इजरायल को पशु कहने का साहस अभी तक कोई सीएनएन रिपोर्टर साहस नहीं जुगाड़ कर पाया।
फिलिस्तीन के साथ भूमंडलीय माध्यमों का रिश्ता बेहद जटिल एवं शत्रुतापूर्ण रहा है।कुछ महत्वपूर्ण तथ्य हैं जिन पर ध्यान देने से शायद बात ज्यादा सफ़ाई से समझ में आ सकती है।ये तथ्य इजरायली माध्यम शोर्धकत्ताओं ने नबम्वर 2000 में प्रकाशित किए थे। शोधकर्त्ताओं ने इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष की खबर भेजने वाले संवाददाताओं का अध्ययन करने के बाद बताया कि इजरायल में 300 माध्यम संगठनों के प्रतिनिधि इस संघर्ष की खबर देने के लिए नियुक्त किए गए हैं। इतनी बड़ी संख्या में संवाददाता किसी मध्य-पूर्व में अन्य जगह नियुक्त नहीं हैं। मिस्र में 120 विदेशी संवाददाता हैं।इनमें से दो-तिहाई पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका से आते हैं। इनमें ज्यादातर संवाददाता वैस्ट बैंक और गाजा पट्टी से अंग्रेजी में खबर देते हैं।चूंकि खबर देने वाले संवादाता इजरायल में रहकर खबर देते हैं यही वजह है कि इनकी खबरें इजरायली दृष्टिकोण से भरी होती हैं।इनमें अधिकांश संवाददाता यहूदी हैं।ये वर्षों से इजरायल में रह रहे हैं।औसतन प्रत्येक संवाददाता 10 वर्षों से इजरायल में रह रहा है।अनेक की इजरायली बीबियां हैं।अनेक स्थायी तौर पर ये काम कर रहे हैं।चूंकि इन संवाददाताओं की मानसिकता पश्चिमी है अत: इन्हें इजरायल से अपने को सहज में जोड़ने में परेशानी नहीं होती। 91प्रतिशत संवाददाताओं का मानना है कि उनकी इजरायल के बारे में 'अच्छी'(गुड) समझ है।जबकि इसके विपरीत 41 प्रतिशत का मानना है कि अरब देशों के बारे में उनकी 'अच्छी' (गुड) समझ है।35 प्रतिशत का मानना है कि उनकी 'मीडियम' समझ है।ये जूडिज्म के बारे में ज्यादा जानते हैं, 57 प्रतिशत ने कहा कि वे जूडीज्म के बारे में 'अच्छा' जानते हैं।जबकि मात्र 10 फीसदी ने कहा कि वे इस्लाम के बारे में 'अच्छा' जानते हैं।ये संवाददाता अरबी की तुलना में हिब्रू अच्छी जानते हैं:54 फीसदी को हिब्रू की अच्छी जानकारी है जबकि 20 फीसदी को काम लायक ज्ञान है।इसके विपरीत मात्र 6 प्रतिशत को अरबी का अच्छा ज्ञान है।मात्र 42 फीसदी संवाददाताओं को अरबी थोड़ा सा ज्ञान है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अंग्रेजी समाचार एजेन्सियों केलिए चंद इजरायली संवाददाता लिखते हैं। फिलिस्तीन के बारे छठे-छमाहे खबर दी जाती है।फिलिस्तीन के बारे में उनके इलाकों में गए वगैर खबर देदी जाती है।सबसे बुरी बात यह कि इस इलाके में होने वाली घटना के बारे फिलिस्तीनियों की राय जानने की कोशिश तक नहीं की जाती।ऐसी स्थिति में प्रश्न उठता है कि क्या फिलिस्तीन-इजरायल संघर्ष की वस्तुगत प्रस्तुति संभव है।
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