ब्लॉग वार्ता : ट्विटर पर छंद का जमाना
रवीश कुमार दैनिक हिन्दुस्तान 10अक्टूबर 2009
कल तक व्याकरण और छंद की मौत के फरमान पढ़े जा रहे थे। अब ट्विटर ने छंद और व्याकरण को पुनर्जन्म दे दिया है। इंटरनेट पर सामाजिक नेटवर्किंग के साथ नई विधा ट्विटर के जन्म ने व्याकरण के सीखने की संभावनाओं के नए रास्ते खोले हैं। ट्विटर के इस लाभ पर किसी की नज़र नहीं पड़ी। कोलकाता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी इंटरनेट पर आ रहे नए जमाने पर खूब लिख पढ़ रहे हैं।
http://jagadishwarchaturvedi.blogspot.com क्लिक करते ही नया जमाना खुलता है। प्रो. जगदीश्वर ट्विटर पर लिखते हुए बढ़ रहे हैं। ट्विटर विधा असमान्य विधा है। इसमें आपको मात्र अक्षरों में ही अपनी बात कहती है, इतनी संक्षिप्त चर्चा, इतने छोटे वाक्य हमने सिर्फ औरत के मुंह से सुने थे। छोटे वाक्य औरत की भाषिक संरचना का अभिन्न हिस्सा है। छोटे वाक्यों में लिखने की कला स्त्री की कला है। स्त्री के छोटे वाक्य छंदमय ध्वनि व्यक्त करते हैं।
इंटरनेट हमें नए संस्कार दे रहा है। इसकी सामाजिकता पर नज़र डालने का वक्त आ गया है। प्रो. जगदीश्वर ने समय रहते शुरू किया है तो उम्मीद है कि और भी लोग आयेंगे। इंटरनेट पर पसर रहे आंदोलनों का विश्लेषण करते हुए लिखते हैं कि इंटरनेट ने सामाजिक-राजनीतिक गोलबंदी की अनंत संभावनाओं को पैदा किया है। राष्ट्र-राज्य के अप्रासंगिक होने के क्रम में कम्युनिकेशन के क्षेत्र में गहरी अनास्था पैदा हुई।
साधारण लोगों का विश्वास डिगा। किंतु इंटरनेट ने इस कमजोर स्थिति में प्रभावी हस्तक्षेप की संभावनाओं को पैदा करके हमें नए सिरे से अपने विचारों के आदान-प्रदान को प्रेरित किया है। जनतंत्र के संबंध में कमजोर पड़ती जा रही धारणा को कमजोर किया है। जितने भी नए आंदोलन उठकर सामने आ रहे हैं, वे सब राष्ट्र-राज्य की सीमा का अतिक्रमण कर रहे हैं।
प्रो. जगदीश्वर के शोधपरक लेख हमारे सामने से गुजर रही इंटरनेट क्रांति के प्रभावों को समझने की दिशा देते हैं। वे साइबर स्पेस के मनोभाव से लेकर तनोभाव तक का विश्वेषण कर रहे हैं। लिखते हैं कि वेब के जनप्रिय होते ही और ब्राडबैण्ड पाथ बनने के साथ ही टेलीफोन का धंधा बैठ सकता है। भविष्य में जितने ब्राडबैण्ड बनते जायेंगे, प्रतिस्पर्धा बढ़ती जाएगी। संचार की आज की प्रवृत्ति पूरी तरह बदल जाएगी। अब हम बातचीत आरंभ करते समय हलो नहीं कहते। आज हमारे पास डिजिटल नौकर हैं। जो हमारा सारा काम कर देते हैं। पहले टेलीफोन एक्सचेंज में बैठी हुई लड़की से नम्बर मिलवाना होता था। वह फोन उठाती थी, हलो बोलती थी, हम भी हलो बोलते थे। हलो इसलिए बोलते थे कि हम सामने वाले को नहीं जानते थे।
आजकल टेलीफोन एक्सचेंज का ग्राहक सेवाओं का सारा काम डिजिटल लड़की करती है। सारे सवालों का जवाब देती है। आप सिर्फ बटन दबाते जाइये और आगे बढ़ते जाइये। वे इंटरनेट पर डाले जा रही पोर्न सामग्रियों का भी अध्ययन कर रहे हैं। बता रहे हैं कि सबसे ज्यादा यूजर बच्चों हैं। कच्ची उम्र के बच्चों बड़ी आसानी से पोर्न वेबसाइट खोज लेते हैं और बाद में इसी के नशे में मदहोश रहते हैं। यह बच्चों का दोहरा शोषण है।
पहले पोर्नोग्राफी तैयार करने के लिए शोषण किया जाता है। बाद में बच्चों में इसे देखने की लत पैदा करने के क्रम में शोषण किया जाता है। कामुकता के बारे में बात करते समय यह ध्यान रखें कि कामुकता एक तरह का शोषण है। शोषण से भिन्न इसके किसी भी रूप की कल्पना करना बेमानी है। यह शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शोषण है। विषमता इसका आधार है। इंटरनेट पर पोर्न या कामुक सामग्री में स्त्री और बच्चों के ऊपर केंद्रित सामग्री का वर्चस्व है।
इंटरनेट का सामाजिक आर्थिक विश्लेषण हिंदी में कम हो रहा है। हो भी रहा है तो वो अभी सार्वजनिक मंचों तक नहीं पहुंचा है। प्रो. चतुर्वेदी ने अच्छा किया कि ब्लॉग जगत में आ गए। जिस दुनिया की घटना है पहले उस दुनिया के साथ तो बात होनी ही चाहिए। जो इंटरनेट पर नहीं है उनके लिए यह एक एलियन की कल्पना जैसा है।
पत्रकारिता की पढ़ाई आज की पत्रकारिता से भी बुरी है। अच्छे शिक्षक नहीं हैं। लुटेरे संस्थान ज्यादा हैं। प्रो. जगदीश्वर मीडिया के छात्रों के लिए काफी कुछ लिख रहे हैं। वे मीडिया को माध्यम के भीतर के बदलावों की नज़र से समझ रहे हैं। एक पाठक और दर्शक के तौर पर नहीं। हिंदी ब्लॉगरों ने जनसत्ता के संस्थापक संपादक प्रभाष जोशी के निधन पर खूब लिखा है। चलते चलते- ब्लॉग वार्ता की तरफ से भी प्रभाष जोशी को श्रद्धांजलि।
ravish@ndtv.com
लेखक का ब्लॉग है naisadak.blogspot.com
रवीश कुमार दैनिक हिन्दुस्तान 10अक्टूबर 2009
कल तक व्याकरण और छंद की मौत के फरमान पढ़े जा रहे थे। अब ट्विटर ने छंद और व्याकरण को पुनर्जन्म दे दिया है। इंटरनेट पर सामाजिक नेटवर्किंग के साथ नई विधा ट्विटर के जन्म ने व्याकरण के सीखने की संभावनाओं के नए रास्ते खोले हैं। ट्विटर के इस लाभ पर किसी की नज़र नहीं पड़ी। कोलकाता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी इंटरनेट पर आ रहे नए जमाने पर खूब लिख पढ़ रहे हैं।
http://jagadishwarchaturvedi.blogspot.com क्लिक करते ही नया जमाना खुलता है। प्रो. जगदीश्वर ट्विटर पर लिखते हुए बढ़ रहे हैं। ट्विटर विधा असमान्य विधा है। इसमें आपको मात्र अक्षरों में ही अपनी बात कहती है, इतनी संक्षिप्त चर्चा, इतने छोटे वाक्य हमने सिर्फ औरत के मुंह से सुने थे। छोटे वाक्य औरत की भाषिक संरचना का अभिन्न हिस्सा है। छोटे वाक्यों में लिखने की कला स्त्री की कला है। स्त्री के छोटे वाक्य छंदमय ध्वनि व्यक्त करते हैं।
इंटरनेट हमें नए संस्कार दे रहा है। इसकी सामाजिकता पर नज़र डालने का वक्त आ गया है। प्रो. जगदीश्वर ने समय रहते शुरू किया है तो उम्मीद है कि और भी लोग आयेंगे। इंटरनेट पर पसर रहे आंदोलनों का विश्लेषण करते हुए लिखते हैं कि इंटरनेट ने सामाजिक-राजनीतिक गोलबंदी की अनंत संभावनाओं को पैदा किया है। राष्ट्र-राज्य के अप्रासंगिक होने के क्रम में कम्युनिकेशन के क्षेत्र में गहरी अनास्था पैदा हुई।
साधारण लोगों का विश्वास डिगा। किंतु इंटरनेट ने इस कमजोर स्थिति में प्रभावी हस्तक्षेप की संभावनाओं को पैदा करके हमें नए सिरे से अपने विचारों के आदान-प्रदान को प्रेरित किया है। जनतंत्र के संबंध में कमजोर पड़ती जा रही धारणा को कमजोर किया है। जितने भी नए आंदोलन उठकर सामने आ रहे हैं, वे सब राष्ट्र-राज्य की सीमा का अतिक्रमण कर रहे हैं।
प्रो. जगदीश्वर के शोधपरक लेख हमारे सामने से गुजर रही इंटरनेट क्रांति के प्रभावों को समझने की दिशा देते हैं। वे साइबर स्पेस के मनोभाव से लेकर तनोभाव तक का विश्वेषण कर रहे हैं। लिखते हैं कि वेब के जनप्रिय होते ही और ब्राडबैण्ड पाथ बनने के साथ ही टेलीफोन का धंधा बैठ सकता है। भविष्य में जितने ब्राडबैण्ड बनते जायेंगे, प्रतिस्पर्धा बढ़ती जाएगी। संचार की आज की प्रवृत्ति पूरी तरह बदल जाएगी। अब हम बातचीत आरंभ करते समय हलो नहीं कहते। आज हमारे पास डिजिटल नौकर हैं। जो हमारा सारा काम कर देते हैं। पहले टेलीफोन एक्सचेंज में बैठी हुई लड़की से नम्बर मिलवाना होता था। वह फोन उठाती थी, हलो बोलती थी, हम भी हलो बोलते थे। हलो इसलिए बोलते थे कि हम सामने वाले को नहीं जानते थे।
आजकल टेलीफोन एक्सचेंज का ग्राहक सेवाओं का सारा काम डिजिटल लड़की करती है। सारे सवालों का जवाब देती है। आप सिर्फ बटन दबाते जाइये और आगे बढ़ते जाइये। वे इंटरनेट पर डाले जा रही पोर्न सामग्रियों का भी अध्ययन कर रहे हैं। बता रहे हैं कि सबसे ज्यादा यूजर बच्चों हैं। कच्ची उम्र के बच्चों बड़ी आसानी से पोर्न वेबसाइट खोज लेते हैं और बाद में इसी के नशे में मदहोश रहते हैं। यह बच्चों का दोहरा शोषण है।
पहले पोर्नोग्राफी तैयार करने के लिए शोषण किया जाता है। बाद में बच्चों में इसे देखने की लत पैदा करने के क्रम में शोषण किया जाता है। कामुकता के बारे में बात करते समय यह ध्यान रखें कि कामुकता एक तरह का शोषण है। शोषण से भिन्न इसके किसी भी रूप की कल्पना करना बेमानी है। यह शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शोषण है। विषमता इसका आधार है। इंटरनेट पर पोर्न या कामुक सामग्री में स्त्री और बच्चों के ऊपर केंद्रित सामग्री का वर्चस्व है।
इंटरनेट का सामाजिक आर्थिक विश्लेषण हिंदी में कम हो रहा है। हो भी रहा है तो वो अभी सार्वजनिक मंचों तक नहीं पहुंचा है। प्रो. चतुर्वेदी ने अच्छा किया कि ब्लॉग जगत में आ गए। जिस दुनिया की घटना है पहले उस दुनिया के साथ तो बात होनी ही चाहिए। जो इंटरनेट पर नहीं है उनके लिए यह एक एलियन की कल्पना जैसा है।
पत्रकारिता की पढ़ाई आज की पत्रकारिता से भी बुरी है। अच्छे शिक्षक नहीं हैं। लुटेरे संस्थान ज्यादा हैं। प्रो. जगदीश्वर मीडिया के छात्रों के लिए काफी कुछ लिख रहे हैं। वे मीडिया को माध्यम के भीतर के बदलावों की नज़र से समझ रहे हैं। एक पाठक और दर्शक के तौर पर नहीं। हिंदी ब्लॉगरों ने जनसत्ता के संस्थापक संपादक प्रभाष जोशी के निधन पर खूब लिखा है। चलते चलते- ब्लॉग वार्ता की तरफ से भी प्रभाष जोशी को श्रद्धांजलि।
ravish@ndtv.com
लेखक का ब्लॉग है naisadak.blogspot.com
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