प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कल अपनी भारतीय गरिमा और सभ्यता का प्रदर्शन करते हुए अमेरिका के नीति निर्धारकों के मुँह पर अफगान चमाचा जड़ा है। इस तमाचे के गंभीर अर्थ निहितार्थ हैं। कुछ देर के लिए मनमोहन विरोधी तटस्थ भाव से देखें तो उन्हें यह तमाचा साफ दिखाई देगा। मनमोहन सिंह ने कल वाशिंगटन में अमेरिकी रणनीतिज्ञों के सामने बोलते हुए कहा अफगानिस्तान जैसे प्राचीन देश में लोकतंत्र को अपनी जड़ें मजबूत करने में कुछ समय लगेगा। इस देश के इतिहास और जनजातियों की परंपरा की संगति में आने में लोकतंत्र को कुछ समय लगेगा। इस प्रसंग में मनमोहन सिंह ने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई का समर्थन करते हुए कहा कि सभी क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों को करजई का खुलकर समर्थन करना चाहिए।
यह बयान कई दिशाओं में जाकर खुलता है। कुछ आलोचकों की नजर में प्रधानमंत्री सीधे ओबामा और अमेरिकी प्रशासन की अफगाननीति का समर्थन कर रहे हैं। दूसरा आयाम यह है कि उन्हें क्षेत्रीय शांति की चिन्ता ज्यादा है और वे चाहते हैं कि अफगानिस्तान में स्थिरता आए। इस स्थिरता को लाने में अफगानिस्तान की गैर आतंकी शक्तियॉं और अफगानिस्तान की जनता के बीच में किया गया मानवीय विकास कार्य प्रभावी मदद करेगा। भारत का सरोकार इस पहलू से ज्यादा है। भारत की नजर में अफगानिस्तान की जनता और उसके हित में चल रहे मानवीय विकास कार्य सर्वोच्च प्राथमिकता पर हैं। उल्लेखनीय है प्रधानमंत्री के इस भाषण के तत्काल बाद ही अमेरिकी प्रशासन हरकत में आ गया और अफगानिस्तान-पाक में अमेरिकी राजदूत रिचर्ड हॉलब्रुक ने मात्र 90 मिनट के नोटिस पर अपनी प्रेस कॉंफ्रेस बुलायी और कैमरे में कैद करके प्रेस कॉंफ्रेंस की।
प्रधानमंत्री के भाषण में कूटनीतिक भाषा में अफगानिस्तान में अमेरिका जो कर रहा है उसकी अप्रत्यक्ष तीखी आलोचना व्यक्त की गई है। प्रधानमंत्री ने कहा सारी दुनिया के देशों को अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई के पीछे गोलबंद होना चाहिए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यह नहीं कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की अफगाननीति के पीछे गोलबंद होना चाहिए।
उल्लेखनीय है भारत की अफगानिस्तान में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रही है, भारत जो काम कर रहा है उसे अमेरिकी सैन्य अधिकारी फूटी आंख देखना पसंद नहीं करते। कई बार भारत के राजदूत के ऑफिस पर आईएसआई के सहयोग से तालिबानी हमले संगठित किए गए हैं और इन हमलों के संदर्भ में अमेरिका ने कोई भी नेट जासूसी वाली सामग्री या पूर्व सूचना भारत को मुहैयया नहीं करायी है। यहां तक कि अमेरिका ने आईएसआई की इन हमलों में हिस्सेदारी की निंदा तक नहीं की। जबकि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति ने साफ कहा था कि भारत के राजदूत के दफतर पर हुए हमले में आईएसआई का हाथ था। अमेरिका ने पाक पर इसके लिए दबाव तक नहीं ड़ाला कि वह उन लोगों के नाम बताए जो हमले के पीछे थे। सच यह है कि अमेरिका जानता है कि यह हमला क्यों कराया गया और किसने कराया।
इस प्रसंग में भारत की अफगान जनता के कल्याणकार्यों के लिए की गई पहलकदमी और प्रधानमंत्री का अफगानिस्तान के राष्ट्रपति के पक्ष का दो टूक समर्थन बेहद महत्वपूर्ण कदम है। उल्लेखनीय है अफगानिस्तान के राष्ट्रपति ने कईबार कहा है कि नाटो की सेनाएं अफगानिस्तान से चली जाएं हम देश संभाल लेंगे। लेकिन अमेरिका और नाटो इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। ये बातें ध्यान रखें तो हमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का अमेरिकी राष्ट्रपति की बजाय अफगानिस्तान के राष्ट्रपति का समर्थन करना सही परिप्रेक्ष्य में समझ आएगा।
बहुत बढ़ियां आलेख पढ़कर अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंभारत की अफगानिस्तान में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रही है, भारत जो काम कर रहा है उसे अमेरिकी सैन्य अधिकारी फूटी आंख देखना पसंद नहीं करते।
जवाब देंहटाएंबंदूक और कबूतर में कोई दोस्ती हुई है भला। हम शांति का रास्ता अपना रहे हैं और वो गोली का!!
nice
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