बाबरी मस्जिद का गिराया जाना। उसमें संघ और उससे जुड़े संगठनों की घृणित भूमिका के घाव अभी भरे नहीं थे कि इन घावों को हरा करते हुए लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट को कल इण्डियन एक्सप्रेस अखबार ने 'लीक' कर दिया। हम विगत 25 सालों से राममंदिर का राजनीतिक नरक भोग रहे हैं। देश में इस मसले पर जितने बड़े पैमाने पर जानोमाल की क्षति हुई है वैसी किसी अन्य मसले पर नहीं हुई है। यह मसला जब तक रहेगा तब तक खूंरेजी,दंगे,लूट,आगजनी आदि होते रहेंगे। अब फिर से लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट के संसद में पेश किए जाने के बाद से सारा साम्प्रदायिक वातावरण गरमाने की कोशिश की जा रही है।
लिब्रहान कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में जिन्हें दोषी पाया है उनके खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई करने की सिफारिश नहीं की है। ठीक उसी तर्ज पर भारत सरकार ने भी कार्रवाई रिपोर्ट पेश में दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई करने का संकेत नहीं दिया है। यहां तक चीजें बेहद साफ हैं। लिब्रहान कमीशन ने जिन्हें दोषी पाया उनको रेखांकित कर दिया है। समस्या यह है कि अब क्या करें।
बाबरी मस्जिद विध्वंस साधारण घटना नहीं है। यह अक्षम्य अपराध है। राष्ट्रीय कलंक है। इसके बावजूद इस समूचे प्रकरण पर समग्रता में राष्ट्रीय नजरिऐ से सोचने की जरूरत है। देश के सौहार्दपूर्ण तानेबाने को बनाए रखकर दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य में सोचने की जरूरत है। अल्पकालिक राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में यही बात मन में आती है कि दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य में हमारी सरकार को 'भूलो और माफ करो' की नीति के आधार पर इस रिपोर्ट को अब अलमारी में बंद करके रख देना चाहिए। लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट पर यदि कार्रवाई होती है तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। यह कयास नहीं है बल्कि ठोस संभावना है। जो लोग बाबरी मस्जिद के मसले पर आहत हैं उन्हें भी समझना होगा कि स्थायी सामाजिक और साम्प्रदायिक विभाजन रखकर हम देश को एकजुट नहीं रख सकते। अनेकबार राष्ट्रीय हितों को, जनता के जीवन की सुरक्षा और शांति के लक्ष्य को सर्वोपरि स्थान देकर सोचना होता है। लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट एक ऐसा ही मसला है जिस पर पार्टीजान तरीके से अथवा कानूनी नजरिए से सोचेंगे तो भयावह परिस्थितियों से दो-चार होना पड़ेगा। हमें इस संदर्भ में दक्षिण अफ्रीका के राजनीतिक दलों से सीखना चाहिए वहां पर गोरे लोगों के भयानक और अक्षम्य अपराधों को भी 'भूलो और माफ करो' की नीति के आधार पर क्षमा कर दिया गया। हमें भी यही कदम उठाना चाहिए। हमारे यहां लिब्रहान कमीशन ने दोषियों को रेखांकित कर दिया है। आगे क्या करें इस पर कमीशन और सरकार चुप हैं। यह इन दोनों की राजनीतिक परिपक्वता का परिचायक है। इसे राजनीतिक कमजोरी नहीं समझना चाहिए। हमें लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट को मानकर ,भूल जाना चाहिए। यही हमारे देश का मंगलमय रास्ता होगा। यही हमें आगे विकास करने का अवसर देगा।
जगदीश्वर जी आप की इस बात से पुर्णतः सहमत हूँ .लेकिन कौन क्या भूलना चाहता है ?
जवाब देंहटाएंलोग तो भूल हीं चुके हैं चाहे हिन्दू हो या मुस्लमान . एक तरफ नेता दूसरी ओर मीडिया डटी हुई है भूलने नहीं देंगे ! जब भी कोई आतंकी हमला हुआ और देशी आतंकियों के हाथ होने की बात आई तो नेताओं का एक वर्ग इसे विवादित धार्मिक ढांचा यानि बाबरी मस्जिद विध्वंश का परिणाम बताती है और मीडिया इसे चटकारे ले ले कर दिखाता है . कौन है जिम्मेदार ? सत्रह सालों में आखिर क्या ढूंढ़ रहे थे लिब्राहन साहब जो आज अचानक मिल गया और अखबारों में लीक हो गयी बात ?
फिर, भी जो उम्मीद थी लीक करने और करवाने वालों को उन्हें कोई लाभ नहीं मिला . मीडिया वाले बेकार में गला फाड़ रहे हैं जबकि जनता में इस बात को लेकर तनिक भी उत्साह नहीं रहा . अब , भाजपा हो या उसका वोट बेंक मदिर से कहीं आगे निकल आया है . और कौन से मंदिर निर्माण की बात होगी मंदिर तो वहां है ही जब मस्जिद था तब भी सदियों से चली आ रही रामजन्मभूमि की प्रक्रम अनवरत रूप से चली आई है और आज भी चल रही है . अब हर बार बाबरी मस्जिद का सवाल बिलकुल बेमानी है .
Bhulne aur maaf krne ka vikalp auchityapurn hai.Kintu janomaal ki bhishan haani,17saal bad aayi Librahan Aayog ki report aur uske bad bhulne aur maaf krne ki kawayad hume antatah kaha khada krti hai? Shantipurn bhavishya ke liye MAAF krna aavshyak hai parantu yah kahi se v tathakthit netao k charitra sudhar w rajniti ke sampradayik khel se mukti nhi deta.
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