आज इंटरनेट पर विज्ञापन देना ज्यादा अपील कर रहा है। इसके कारण विज्ञापना से होने वाली प्रेस की आय में गिरावट दर्ज की गयी है। इंटरनेट पर विज्ञापनों के आने का सीधा लाभ एओएल,डबल क्लिक एड एक्सचेंज, याहू और गूगल को पहुँचा है। इनके पास ही खरीदने -बेचने के लिए अतिरिक्त जगह है। ताजा आंकड़ों के अनुसार याहू के डिसप्ले विज्ञापनों में तीसरी तिमाही में दो प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी। याहू की यह आमदनी विगत वर्ष इस दौर में हुई आय से कम है। जबकि गूगल की आय में इसी अवधि में पिछले साल की तुलना में बढोत्तरी हुई है।
विश्व में एकमात्र अमेरिका में ही इंटरनेट का इस साल विज्ञापन के क्षेत्र में विकास देखा गया है। जेनिथ ऑप्ट मीडिया के अनुसार अमेरिका में इस साल नेट विज्ञापनों का कारोबार बढ़कर 9.2 प्रतिशत यानी 54.1 बिलियन डॉलर का हो जाने की संभावना है। यह भी देखा गया है कि अखबारों की वेबसाइट पर ज्यादा विज्ञापन नहीं आए हैं। मसलन् न्यूयार्क टाइम्स के वेब विज्ञापनों में गिरावट दर्ज की गई है। अकेले इस साल की तीसरी तिमाही में विगत वर्ष की इसी तिमाही की तुलना में 18.5 प्रतिशत की गिरावट आयी।
टाइम के वेब विज्ञापनों की आय में भी कमी आयी है, खासकर वर्गीकृत विज्ञापनों के गायब हो जाने से। नेट पर वर्गीकृत विज्ञापनों में आयी गिरावट का एक बड़ा कारण है डिसप्ले विज्ञापनों का नेट पर बढ़ता चलन। अब नेट पर डिसप्ले विज्ञापनों की बहार है। उनसे आय भी बढ गयी है। खुदरा विज्ञापनों में 58 प्रतिशत का इजाफा हुआ,यानी 5.4 मिलियन डॉलर का धंधा किया।
यह भी देखा जा रहा है कि नेट पर स्थानीय विज्ञापन ज्यादा आ रहे हैं राष्ट्रीय विज्ञापन कम आ रहे हैं। अखबार की वेब पर विज्ञापन कम होने का एक कारण यह भी है कि नेट पर विज्ञापन देने वाले सस्ती जगह खोजते हैं और इस चक्कर में अखबारों को घाटा उठाना पड़ रहा है। डिसप्ले विज्ञापनों की प्रति हजार बार प्रस्तुति की कीमत और प्रभाव ज्यादा अच्छा रहा है। लागत के लिहाज से ये सस्ते होते हैं। नेट पर विज्ञापन देने वाले यह भी देखते हैं कि आखिरकार नेट पर कौन लोग जाते हैं ।
नेट का यूजर विशिष्ट होता है। अखबार के पाठक जैसे सभी किस्म के लोग होते हैं नेट के यूजर सभी किस्म के लोग नहीं होते। मसलन् गरीबों में नेट यूजर नहीं हैं। चूंकि बाजार में मुनाफा कम है अत: कंपनियां सस्ता प्रचार चाहती हैं।नेट इस मामले में उनकी मदद कर रहा है।
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