अमेरिकी गुप्तचर संस्था एफबीआई ने अपनी ताजा तथाकथित आतंकी सूची बनायी है जिसमें तकरीबन चार लाख लोगों पर नजरदारी चल रही है। यह बात स्वयं फेडरल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टीगेशन (एफबीआई) के निदेशक रॉबर्ट एस.मूलर ने सीनेट की न्यायिक समिति के सदस्यों को बतायी है।इन चार लाख लोगों के विशेष नाम भी हैं।
एफबीआई की इस सूची में प्रतिदिन 1,600 लोगों के नए नाम जुड़ रहे हैं। इस सूची में पांच प्रतिशत अमरीकी नागरिक हैं। बाकी बाहरी हैं। यह वस्तुत: आतंकी नजरदारी सूची है। इसमें 9 प्रतिशत के नाम ऐसे भी हैं जो सरकारी सूची में ' नो फ्लाई' केटेगरी में दर्ज हैं। ये वे लोग हैं जिन्हें एयर लाइन की यात्राओं की वैध अनुमति नहीं है। इन्हें इस सूची में ड़ालने का कोई वैध तर्क नहीं है।
मूलर रिपोर्ट के अनुसार 1,600 लोगों के रोज नए नाम दर्ज किए जा रहे हैं तो प्रतिदिन 600 लोगों के नाम सूची से निकाले भी जा रहे हैं। इसके अलावा प्रतिदिन 4,800 लोगों के रिकॉर्ड में संशोधन किया जा रहा है। यह रिपोर्ट सीनेट कमेटी को सितम्बर में दी गयी और बाद में इसे www.fas.org/blog/secrecy पर हाल ही में सार्वजनिक किया गया। उल्लेखनीय है कि हाल के दिनों में एफबीआई ने अपनी तहकीकात के काम को काफी तेज कर दिया है। घरेलू स्तर पर जांच सख्ती के साथ चल रही है साथ ही बाहरी तत्वों पर भी नजरदारी चल रही है।
उल्लेखनीय है दिसम्बर 2008 में बनाए गए नए जांच कानूनों के बारे में जब तीखी आलोचना हुई और अदालत में फ्रीडम ऑफ इनफॉरमेशन एक्ट के तहत मुकदमा दायर किया तो एफबीआई की गतिविधियां नरम पड़ी हैं। एफबीआई का मानना है यदि किसी व्यक्ति का नाम उसकी सूची में है तो यही पर्याप्त है उसे आतकी सूची में डालने के लिए। अदालत ने यह तर्क खारिज कर दिया है। अब एफबीआई को बताना होगा कि संबंधित व्यक्ति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए क्यों खतरा है, महज सूची में नाम देने मात्र से नहीं मान लिया जाएगा कि वह व्यक्ति खतरनाक है।
अब नए संशोधनों के मुताबिक किसी भी व्यक्ति को निराधार बातों के आधार पर आतंकी सूची में नही ड़ाला जा सकता है। लेकिन किस मानक के आधार पर आतंकी को परिभाषित किया जाता है यह स्वयं में मुश्किल चीज है। अभी तक धार्मिक और जातीय आधार पर सूची बनायी जा रही थी, उसमें परिवर्तन करके विशिष्ट जातीय और धार्मिक व्यवहार को आधार बना दिया गया है। इस तथ्य पर भी नजर रखी जा रही है कि किसी जातीयता विशेष के लोगों का सबसे ज्यादा जमावड़ा कहॉं होता है। इस बहाने मस्जिदों पर भी नजदारी हो रही है।
अमां चचा कहां-कहां से ये डरावनी खबरें खोज-निकाल लाते हो।
जवाब देंहटाएं