रविवार, 15 नवंबर 2009

मुक्‍ति‍बोध जन्‍मदि‍न नेट सप्‍ताह पर वि‍शेष:साम्‍प्रदायिकता से नफरत थी मुक्‍ति‍बोध को



     भारत की सबसे बड़ी समस्‍या है साम्‍प्रदायि‍कता। मुक्‍ति‍बोध हि‍न्‍दी का पहला लेखक है जो साम्‍प्रदायि‍क स्‍टीरि‍योटाइप को चुनौती देता है। हि‍न्‍दी में साम्‍प्रदायि‍क स्‍टीरि‍योटाइप को मुक्‍ति‍बोध के पहले कि‍सी ने गंभीरता से नहीं लि‍या था। मुक्‍ति‍बोध की प्रसि‍द्ध कि‍ताब इस्‍लाम और मुसलमान के साथ इति‍हास के प्रति‍ साम्‍प्रदायि‍क नजरि‍ए का ठोस वैज्ञानि‍क आधार पर खंडन करती है। मुक्‍ति‍बोध की कि‍ताब '' भारत: इति‍हास और संस्‍कृति‍'' सन् 1962 में लि‍खी गयी।
     सन् 1962 कई अर्थ में महत्‍वपूर्ण है,इसी साल भारत-चीन युद्ध होता है। यही वह साल है जब व्‍यापक पैमाने पर सारे देश में चीन के खि‍लाफ राष्‍ट्रोन्‍माद पैदा कि‍या जाता है। राष्‍ट्रोन्‍माद की इस वि‍पद की घड़ी में सारे देश में कम्‍युनि‍स्‍टों के एक समूह पर तरह-तरह के हमले होते हैं। उल्‍लेखनीय है 20 अक्‍टूबर 1962 को भारत पर चीन ने हमला कि‍या था और 20 नबम्‍बर 1962 को युद्ध थमा। 19 सि‍तम्‍बर 1962 को यह कि‍ताब प्रति‍बंधि‍त की गई । सतह पर इस कि‍ताब की पाबंदी का भारत-चीन युद्ध से कोई संबंध नहीं है,लेकि‍न राष्‍ट्रोन्‍माद और साम्‍प्रदायि‍क उन्‍माद से गहरा संबंध है। यही वह समय है जब संघ के साथ कांग्रेस के सबसे अच्‍छे संबंध थे। कांग्रेस के केन्‍द्रीय नेतृत्‍व से लेकर राज्‍यस्‍तरीय नेतृत्‍व का संघ के प्रति‍ नरम रूख था। यही वह पृष्‍ठभूमि‍ है जि‍समें यह कि‍ताब पुस्‍तक प्रकाशकों से लेकर संघ परि‍वार तक सबके नि‍शाने पर आ गयी।
         मुक्‍ति‍बोध की पहली महत्‍वपूर्ण बात यह है कि‍ वह इति‍हास के बारे में दंतकथाओं और कपोल कल्‍पनाओं को एकसि‍रे से अस्‍वीकार करते हैं। यहां तक कि‍ पौराणि‍क कथाओं के आधार पर भी इति‍हास के बारे में चर्चा नहीं करते। इति‍हास का आख्‍यान उन्‍होंने इति‍हासकारों की जानकारि‍यों के आधार पर नि‍र्मित कि‍या है।
मुक्‍ति‍बोध ने लि‍खा है '' भारतीय संस्‍कृति‍ की एक वि‍शेषता रही है- सर्वाश्‍लेषी सर्व-संग्राहक प्रवृत्‍ति‍।'' ,इसका अर्थ यह है कि‍ भारतीय संस्‍कृति स्‍वभावत: मि‍श्रण से बनी है,इसमें शुद्धता जैसी कोई चीज नहीं है। वह यह भी मानते हैं कि‍ भारतीय संस्‍कृति‍ एक ' महान् नद ' के समान है। संस्‍कृति‍ के क्षेत्र में हमेशा से टकराव भी रहा है। लि‍खा है '' एक ओर पृथकतावादी पावि‍त्र्यवादी प्रवृत्‍ति‍ भी रहती थी। इसका वि‍रोध सर्व-संग्राहक संश्‍लेषणवादी प्रवृत्‍ति‍ ने कि‍या। '' लेकि‍न '' समन्‍वयकारि‍णी संश्‍लेष -प्रधान सर्वसंग्राहकप्रवृत्‍ति‍ ही प्रधान रही।'' यह भी लि‍खा '' जब-जब पृथकतावादी अहम्‍मन्‍य प्रवृत्‍ति‍ का उदय हुआ ,भारत में झगड़े हुए और अराजकता मच गयी। कि‍न्‍तु अंतत: सहि‍ष्‍णुता,सर्वसंग्राहकता,व्‍यापक भाव दृष्‍टि‍ ,उदार हृदय तथा उदार दृष्‍टि‍कोण का ही सम्‍मान हुआ। दूसरे शब्‍दों में ,भारत में संकीर्ण सम्‍प्रदायवाद‍ और जाति‍वाद बराबर बने रहे।''
     इस्‍लाम के बारे में साम्‍प्रदायि‍क और अमरीकी साम्राज्‍यवादी वि‍चारक आए दि‍न यह प्रचार करते रहते हैं कि‍ इस्‍लाम धर्म हिंसक धर्म है।असमानता पर आधारि‍त धर्म है । इसकी पुष्‍टि‍ के लि‍ए इस्‍लामि‍क देशों के उदाहरण दि‍ए जाते हैं। मुक्‍ति‍बोध का इसके वि‍परीत मानना था '' इस्‍लाम 'शान्‍ति‍ का मार्ग' है। उसके भीतर ,सब एक-बराबर हैं- स्‍त्री और पुरूष ,गरीब और अमीर ,शासक और शासि‍त। धर्म के अन्‍तर्गत सामाजि‍क समानता है। ईश्‍वर और उसके रसूल को न मानना कुफ्र है। जो कुफ्र करते हैं,वे काफि‍र हैं। काफ़ि‍रों को धर्म के अन्‍तर्गत लाना पुण्‍यकार्य है। '' यह भी लि‍खा '' इस्‍लाम का अर्थ है - 'शान्‍ति‍' अथवा 'ईश्‍वरीय इच्‍छा के प्रति‍ समर्पित होना।' ,इस्‍लाम से ही मुसलमान शब्‍द बना जि‍सका अर्थ होता है, इस्‍लाम का अनुयायी।''
    आमतौर पर मीडि‍या के जरि‍ए यही प्रचार कि‍या जाता है कि‍ मुस्‍लि‍म शासकों ने अपनी संस्‍कृति‍ भारतीयों पर थोपी थी। हि‍न्‍दू और मुसलमानों के बीच आदान-प्रदान नहीं था,वे अलग समूहों में रहते थे। इन सभी धारणाओं का मुक्‍ति‍बोध ने खंडन कि‍या है। मुगलों के शासनकाल को मुक्‍ति‍बोध ने 'आध्‍यात्‍मि‍क मानवीय समन्‍वय' का युग कहा है ,और लि‍खा है इसके गर्भ से महान् वि‍भूति‍यों ने जन्‍म लि‍या। हि‍न्‍दू और मुस्‍लि‍म जनता में गहरा संपर्क और याराना था। मुक्‍ति‍बोध ने यहां तक लि‍खा कि‍ बाहर से आए मुस्‍लि‍म शासकों का ''भारतीयकरण होता गया।'' यह भी लि‍खा  '' मुस्‍लि‍म सामन्‍त शासक थे, हि‍न्‍दू जनता और हि‍न्‍दू सामन्‍त शासि‍त थे। बहुत बार मुस्‍लि‍म सामन्‍तों के हि‍न्‍दुओं पर अत्‍याचारों ने उग्र अमानुषि‍क रूप धारण कर लि‍या यह एक ऐति‍हसि‍क तथ्‍य है।''
  '' कि‍न्‍तु इस तथ्‍य को उत्‍पन्‍न करने वाला मूल कारण यह हे कि‍ ये लोग जो मध्‍य-एशि‍या से आए थे, भले ही सभ्‍य कहलाए,वे वस्‍तुत: सभ्‍य नहीं थे; उनके अंग-अंग में ,उनके कण-कण में, घुमक्‍कड़,युद्ध -व्‍यवसायी जीवन का खून बहता था। ''
    मुक्‍ति‍बोध ने मुगलों के जमाने की सामाजि‍क दशा के बारे में लि‍खा '' हि‍न्‍दुओं की सामाजि‍क दशा गि‍री हुई थी। राज्‍य में वे नि‍चली श्रेणी के नागरि‍क थे। सुल्‍तान के दरबार में उनके साथ तुच्‍छता का बरताव होता।'' '' दि‍ल्‍ली सल्‍तनत में तो दास-प्रथा जोरों पर थी।ये दास वि‍देशों से मँगाए जाते थे ।इनमें कुछ भारतीय भी होते। अमीरों और सरदारों को दास रखने का शौक था।''
   साम्‍प्रदायि‍क ताकतें आए दि‍न यह प्रचार करती हैं कि‍ मुगल काल में भारत की संस्‍कृति‍ नष्‍ट हो गयी ,इस प्रचार का भी मुक्‍ति‍बोध ने खंडन कि‍या है। एक प्रचार यह भी कि‍या जाता है कि‍ जि‍न चीजों के नि‍र्माण में मुसलमानों का हाथ है उनका प्रयोग मत करो। ऐसे लोग भक्‍ति‍आंदोलन और साझा संस्‍कृति‍ की साझा वि‍रासत को नष्‍ट करना चाहते हैं।
साम्‍प्रदायि‍क ताकतें चाहती हैं कि‍ भारत के इति‍हास और संस्‍कृति‍ से मुसलमानों का नामोनि‍शां खत्‍म कर दि‍या जाए। उन सभी चीजों को हम अस्‍वीकार करें जि‍नसे कि‍सी भी रूप में कोई मुसलमान जुड़ा हो, इसी आधार पर गुजरात और दूसरे इलाकों में मुसलमानों के साथ अछूतों जैसा व्‍यवहार कि‍या जा रहा है।
साम्‍प्रदायि‍क संगठन नहीं जानते कि‍ हमारे देश में यदि‍ साझा संस्‍कृति‍ की मुगलकालीन भारतीय वि‍रासत को यदि‍ नि‍काल देते हैं तो सीधे पाषाणयुग में पहुँच जाएंगे। मसलन् क्‍या हम अमीरखुसरो और सूफि‍यों को नि‍काल सकते हैं ? साझा संस्‍कृति‍ की उपज 'बारूद' और 'कागज' को नि‍काल देंगे तो बचेगा क्‍या ? मीनाकारी, बीदरी,धातुओं की कलई,कढ़ाई,जरी का काम,इत्रों की खोज को नि‍काल देंगे तो देखने में कैसे लगेंगे ? अमीर खुसरो के कव्‍वाली, तराना , या जि‍लुफ,सरपदा,साजगीरी को नि‍काल देंगे तो बचेगा क्‍या ? अमीर खुसरो ने ही नायक गोपाल के साथ मि‍लकर तबला और सि‍तार का आवि‍ष्‍कार कि‍या था। क्‍या अब हम इन्‍हें भी नष्‍ट कर दें ? मुगलकाल में ही अनेक अरबी,फारसी राग भारतीय गान परंपरा में मि‍ल गए,ये हैं जि‍लुक, नीरोज, जांगुला, इराक,यमन,हुसैनी,जि‍ला दरबारी,हेज्‍जाज,खमाज आदि‍ क्‍या इन्‍हें नि‍कालना संभव है ? इसी तरह जौनपुर के सुल्‍तान हुसैन ने प्रसि‍द्ध राग हुसैनी,कान्‍हडा और तोड़ी का आवि‍ष्‍कार कि‍या था।  सदारंगा ने 'ख्‍याल' का आवि‍ष्‍कार कि‍या था। वैसे इसके साथ हुसैन शाह सरकी को भी जोड़ा जाता है। इसके अलावा पंजाबी टप्‍पा, रेख्‍ता,कौल,तराना,तखत गजल,कलबना,मर्सिया और सोज का क्‍या करेंगे ये सभी हमारी साझा संस्‍कृति‍ का अभि‍न्‍न हि‍स्‍सा हैं और यह सब मुगलों के जमाने में ही हुआ है।
    जो प्रमुख वाद्ययंत्र मुस्‍लि‍म संगीतकारों ने बनाए वे हैं - सारंगी,दि‍लरूबा,तौस, सि‍तार,रूबाब, सुरबीन, सुर सिंगार, तबला और अलगोजा। इसके अलावा शहनाई,उन्‍स(रोशन चौकी) ,नौबत (नगाड़ा) के आवि‍ष्‍कार में भी मुस्‍लि‍म संगीतकारों की भूमि‍का रही है। कहने का तात्‍पर्य यह है रवैयया है,उसकी मुक्‍ति‍बोध ने धर्मनि‍रपेक्ष और वैज्ञानि‍क आधारों पर सही मीमांसा प्रस्‍तुत करके धर्मनि‍रपेक्ष इति‍हास दृष्‍टि‍ का नया मानक बनाया है।
                 


1 टिप्पणी:

  1. @ 19 सि‍तम्‍बर 1962 को यह कि‍ताब प्रति‍बंधि‍त की गई
    ___________________________
    मतलब कि चीन द्वारा क्रांति का विस्तार भारत तक करने के अभियान के औपचारिक प्रारम्भ के एक महीने पहले :)- कहना क्या चाह रहे हैं आप? इनका आपस में क्या सम्बन्ध है?
    वैसे आप उस हमले से इत्तेफाक तो नहीं रखते न ?
    संघ या कांग्रेसी जैसे भी रहे हों, उनसे तो बेहतर ही थे जो लोग उस समय चीन के गौरवगान और उसके हमले की नंगई को दुरूह शब्दजाल में रचे औचित्त्य का जामा पहनाना चाहते थे।

    @ ईश्‍वर और उसके रसूल को न मानना कुफ्र है। जो कुफ्र करते हैं,वे काफि‍र हैं। काफ़ि‍रों को धर्म के अन्‍तर्गत लाना पुण्‍यकार्य है।
    _______________________________
    यह इस्लाम का मत है, मुक्तिबोध ने बस क़ोट किया है। यह स्पष्टीकरण दे दें।

    किसी विकास को मात्र इसलिए नकार देना या निकालने की कोशिश करना कि वह किसी विशेष कालखण्ड में हुआ है, मूर्खतापूर्ण वैचारिक अन्धता है। वैसे जितने विकास/कथित आविष्कार आप ने गिनाए हैं, वे तब भी होते यदि मुगल या मुस्लिम नहीं आए होते। इन सबके बीज यहीं थे और बहुत मामलों में उन्नत मॉडल भी मौजूद थे।

    'साझा संस्‍कृति‍ की मुगलकालीन भारतीय वि‍रासत' में मुगलकालीन को मध्यकालीन से बदल दें ताकि अर्थ व्यापक हो जाय। अमीर खुसरो सल्तनतकाल में हुए थे न कि मुगल काल में। ऐसे ही सूफी मत मुगलकाल प्रारम्भ होने के पहले ही भारत में पूर्ण विकसित और स्थापित हो चुका था। उसके राजनैतिक कारण ही थे और कोई नहीं।

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