चंचल चौहान
मुक्तिबोध सामाजिक जीवन में घटित सारे क्रिया व्यापार को अपने सही तर्कसंगत वर्गीय नजरिये से ही देखते थे चाहे वह राजनीति हो या साहित्य लेखन । लेकिन इस तरह के विश्लेषण में वे यांत्रिकता से बचते थे । अपने समय की राजनीति के बारे में भी उनका यह खयाल सही था कि राजसत्ता कुछ वर्गों की होती है। संसद में चाहे कोई भी पार्टी चुन कर आये । उन्होंने लिखा भी था 'हमारे यहां राजसत्ता का वैज्ञानिक अर्थ नहीं समझा जाता ।...सामंती समाज में सामंती वर्ग, पूंजीवादी समाज में उच्च-मध्यवर्गीय और धनी लोग राजसत्ता को चलाते हैं । बहुमत से पार्लामेंट में चुन कर चाहे जो आये, राजसत्ता के संचालन और आर्थिक संतुलन का कार्य इसी उच्च-मध्यवर्ग को करना पड़ता है ।''पृ.69) यहां मुक्तिबोध 'उच्च-मध्यवर्ग' दर असल मार्क्सवादी शब्दावली में प्रयुक्त बहुचर्चित शब्द ‘big bourgeoisie के लिए डिक्शनरी में अंकित हिंदी अनुवाद की वजह से लिख रहे थे, जिसका वास्तविक अर्थ अब 'बड़ा पूंजीपतिवर्ग' या "इजारेदार पूंजीवाद" होता है। सामंतवादी युग में उसे जरूर 'उच्च मध्यवर्ग' कहा जाता था। क्योंकि उस युग में वह शासकवर्ग नहीं था । मगर शब्दकोशों में अभी तक 'बूर्जुआ' के लिए 'मध्यवर्ग' ही दिया जा रहा है । जिस तरह निराला ने अपनी कविता 'राजे ने अपनी रखवाली की' में शासक और उसके हितसाधन के लिए बनायी गयी ऊपरी संरचना के बीच के रिश्ते को उजागर किया था, उसी तरह मुक्तिबोध ने उस अवधारणा को और अधिक वैज्ञानिक तौर पर अपने आलोचना कर्म में और रचना में भी प्रस्तुत किया । 'अंधेरे में' कविता की ये पंक्तियां हम सभी को इसी अवधारणा की याद दिलाती हैं:
विचित्र प्रोसेशन
बैंड के लोगों के चेहरे
मिलते हैं मेरे देखे हुओं से
लगता है उनमें कई प्रतिष्ठित पत्रकार
इसी नगर के !!
बड़े-बड़े नाम अरे कैसे शामिल हो गये इस बैंड-दल में !!
उनके पीछे चल रहा
संगीन नोकों का चमकता जंगल
कर्नल ब्रिगेडियर जनरल मार्शल
कई और सेनापति सेनाध्यक्ष
चेहरे वे मेरे जाने बूझे से लगते
उनके चित्र समाचार-पत्रों में छपे थे
उनके लेख देखे थे
यहां तक कि कविताएं पढ़ी थीं
भई वाह !
उनमें कई प्रकांड आलोचक- विचारक-जगमगाते कविगण
मंत्री भी उद्योगपति और विद्वान
यहां तक कि शहर का हत्यारा कुख्यात
डोमाजी उस्ताद
मुक्तिबोध ने पूरे पूंजीवादी सुपरस्ट्रक्चर को इस अंश में चित्रित कर दिया है । इसी तरह भारतीय पूंजीवादी-सामंती शोषण व्यवस्था को उन्होंने अपनी कविता 'एक स्वप्नकथा' में 'काले सागर' के बिंब से चित्रित किया है, वहां उसके साम्राज्यवाद से सहयोग को भी कलात्मक तरीके से बिंबित किया:
हो न हो
इस काले सागर का
सुदूर-स्थित पश्चिम किनारे से
जरूर कुछ नाता है
इसीलिए हमारे पास सुख नहीं आता है ।
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