माध्यम साम्राज्यवाद आज विश्व राजनीति का एजेण्डा तय कर रहा है।हम अभिशप्त हैं कि उपग्रह चैनल जैसा समझाते हैं वैसा ही मानने लगे हैं। कहने को हम स्वतंत्र हैं,संप्रभु राष्ट्र हैं,हमारी अपनी अस्मिता है। इसके बावजूद हमारी पहचान भूमंडलीय चैनल तय कर रहे हैं। राजनीति,अर्थनीति और संस्कृति के क्षेत्र के प्रमुख सवाल हम नहीं माध्यम साम्राज्यवाद तय कर रहा है।
माध्यम साम्राज्यवाद की चालकशक्ति बहुराष्ट्रीय निगम और अमरीका है। व्यवहार में सैन्य- औद्योगिक समूह के साथ माध्यम साम्राज्यवाद का गहरा सम्बन्ध है। इस परिप्रेक्ष्य में आतंकवाद और अमरीकीकरण की प्रस्तुतियों पर विचार करना समीचीन होगा। आतंकवाद राजनीतिक फिनोमिना है। इसका राजनीतिक आधार बड़ी पूँजी और ड्रग माफिया है। जब कि सामाजिक आधार पिछड़ी हुई सामाजिक शक्तियां हैं। इसकी अस्मिता का आधार धर्म है। किसी भी देश में आतंकवाद की उत्पत्ति स्थानीय सामाजिक असंतोष के गर्भ से होती है,और साम्राज्यवाद अपने हितों के विस्तार के लिए उसे हर संभव मदद करता है। आतंकवाद का बुनियादी लक्ष्य आधुनिकता,जनतंत्र और समाजवाद का विरोध करना है। साम्राज्यवाद अथवा इजारेदार पूँजीपतिवर्ग आतंकवाद का अपने निहित स्वार्थों के विस्तार के लिए इस्तेमाल करता है,उसे वैधता प्रदान करता है।आतंकवादी ताकतों को वैधता प्रदान करने के लिए जनमाध्यमों और प्रशासनिक ढ़ाँचे का खुलकर इस्तेमाल करता है।चूँकि आतंकवाद का जनतंत्र,आधुनिकता और समाजवाद से द्वेषभाव है अत: बहुत जल्दी ही उसका साम्राज्यवाद या इजारेदार पूँजीपतिवर्ग से भी युध्द शुरु हो जाता है। भिण्डरावाले और लिट्टे का कांग्रेस के साथ और विन लादेन का अमरीका के साथ जल्दी ही पैदा हुआ अन्तर्विरोध इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
ऐसा क्यों होता है कि जब भी किसी घटना को भूमंडलीय माध्यम प्रक्षेपित करते हैं तो हम सहज ही उसे प्रामाणिक मान लेते हैं ?अधिकतर सरकारों और संगठनों का अपना कोई वजूद नजर नहीं आता बल्कि भूमंडलीय माध्यमों ने जो कहा है उसका वजूद नजर आता है। इसका प्रधान कारण है भूंडलीय माध्यमों का निरन्तर वैचारिक प्रचार। निरन्तर वैचारिक प्रचार के बलबूते पर ही ये माध्यम अपनी बात को मनवाने में सफल हो जाते हैं। हम कहीं न कहीं इस बात पर भरोसा करते हैं कि दृश्य माध्यमों में, खासकर भूमंडलीय माध्यमों में जो बातें दिखाई जाती हैं वे सच होती हैं। हम यह भी मानते हैं कि ये माध्यम निष्पक्ष हैं। वे सच दिखाते हैं। अगर कहीं सीधा प्रसारण हो तब तो माध्यम प्रस्तुति पर अंगुली उठाने का सवाल ही पैदा नहीं होता।इसी तरह की मान्यताओं से परिचालित होकर हमारा राजनीतिक विमर्श निर्मित हो रहा है। खासकर अमरीकी साम्राज्यवाद और बहुराष्ट्रीय निगमों की भूमिका को लेकर आमतौर पर हम वही सच मानते हैं जो भूमंडलीय माध्यम दिखाते या बताते हैं।हम स्वतंत्र रुप से सोचना बंद कर देते हैं। स्वतंत्र-चिन्तन के अभाव में माध्यम साम्राज्यवाद मेनीपुलेट करने में सफल हो जाता है। अत: माध्यम को अंन्तिम सत्य मानने की प्रवृत्ति से बचने की जरुरत है।
घटनाओं को माध्यम के परिप्रेक्ष्य की बजाय राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में देखने की कोशिश की जानी चाहिए। माध्यम का परिप्रेक्ष्य मेनीपुलेशन और अर्ध्दसत्य के आधार पर निर्मित होता है,वह राजनीतिक हितों की पूर्त्ति करता है। हाल ही में पाक में हुए आतंकी हमले,मुंबई के आतंकी हमले ,अमरीका में किए गए आतंकवादी हमले या कश्मीर में हो रहे हमलों या कुछ समय पहले रुस में किए गए आतंकवादी हमलों में एक बात कॉमन है कि ये राष्ट्र-राज्य की सत्ता पर किए गए हमले हैं। इन हमलों के पीछे ऐसे संगठन का हाथ है जिसका विश्वव्यापी नैटवर्क है। साथ ही उसका लक्ष्य है हिंसा फैलाकर दहशत पैदा करना। राज्य की मशीनरी को पंगु बनाना है।
हमें इस प्रश्न पर गौर करना चाहिए कि माध्यमों से आतंकवाद का कवरेज क्या स्थिति पैदा करता है ? लेवी रुडोल्फ ने लिखा है ''माध्यमों में आतंकवाद का कवरेज आतंकवादी ग्रुपों के निर्माण के लिए उत्प्रेरित करता है। वे अपनी कार्यनीतिगत सफलताओं से उत्साहित होकर पहले से ज्यादा आक्रामक ढ़ंग से आतंकी कार्रवाई करते हैं। जनता के सामने अपनी कार्रवाई की खुली घोषणा करके आतंकी गिरोह लोकप्रियता हासिल करते हैं। वर्चस्व स्थापित करने के लिए ज्यादा से ज्यादा हिंसा करते हैं।आतंकी गिरोहों की कार्रवाई के निर्बाध कवरेज के जरिए प्रशासन की अनुपस्थिति का अहसास होता है।'' ध्यान रहे आतंकवाद शून्य में पैदा नहीं होता,अपितु उसकी सक्रियता के लिए जनमाध्यमों में हिंसा और आतंक का रुपायन करने वाले कार्यक्रम पृष्ठभूमि तैयार करते हैं। ऐसे कार्यक्रम हिंसा और आतंक को रोजमर्रा की आम बात बना देते हैं।
माध्यमों में आतंकी हिंसा की बार-बार प्रस्तुति अंतत: आतंकवादियों को मदद पहुँचाती है। उपग्रह चैनलों के द्वारा आतंकी घटनाओं के चित्रों का बार-बार प्रक्षेपण अंतत: हिंसा को जन्म देता है। आतंकवादी हिंसा यदि माध्यमों में व्यापक अभिव्यक्ति पाती है तो इससे शांति या जागरुकता कम हिंसा और दहशत ज्यादा फैलती है। आम लोगों में आतंकवाद के खिलाफ लड़ने का भाव खत्म हो जाता है।
पी.एलेक्स स्मिथ और जेनी द ग्रीफ ने ''वायलेंस एज कम्युनिकेशन:इनसर्जेण्ट टेररिज्म एंड दि वेस्टर्न न्यूज मीडिया'' और एम.सी.वासीउनी ने''प्राब्लम्स ऑफ मीडिया कवरेज ऑफ स्टेट - स्पॉसर्ड टेरर-वायलेंस इंसीडेंट'' निबंध में विस्तार से इस बात पर प्रकाश ड़ाला है कि आतंकवाद का मीडिया कवरेज संक्रामक रोग की तरह है।इसका कवरेज हिंसा को बढ़ावा देता है। इन विद्वानों का मानना है कि माध्यम कवरेज आतंकवाद की विचारधारात्मक भूमिका को छिपाता है और गैर-विचारधारात्मक बातों को उछालता है।
हिंसा और आतंक की बार-बार प्रस्तुति आपराधिक तकनीक को उभारती है। न्यूज चैनलों में आतंकवादी हमले की प्रस्तुतियों को में विस्तार से बताया जाता है हमला कैसे हुआ। हमले की योजना कैसे बनी। निश्चित लक्ष्य पर हमला करने का प्रशिक्षण कैसे प्राप्त किया। हमलावर कहां रहते थे। उनकी विचारधारा क्या थी। बिन लादेन या किस आतंकी गिरोह के सदस्य थे। इस गिरोह का केन्द्र कहां है।
मीडिया कवरेज इस्लामिक जगत या तीसरी दुनिया और पश्चिमी जगत इन दो असमान कोटियों में विभाजित है। एक प्राच्य है दूसरा पश्चिम है। एक की प्रस्तुति 'हम' के फ्रेमवर्क में होती है दूसरे की 'तुम' के फ्रेमवर्क में होती है।'ओरिएंट' को 'इन्फीरयर' पेश किया जाता है। जबकि यह हिस्सा आकार,सभ्यता एवं शक्ति में पश्चिम से बड़ा है।पश्चिमी जगत यह मानता है कि ईसाइयत का इस्लाम प्रतिस्पर्धी हो सकता है,ईसाइयत को चुनौती दे सकता है।ईसाइयत की राय में मोहम्मद छद्म प्रोफेट है।अव्यवस्था का बीज बोने वाला है। मिथ्याचारी है।कपटी है और शैतान का प्रतिनिधि है।
हिन्दू अंधविश्वासी,कर्मकांड में आस्थावान,पिछड़े होते हैं। बहुराष्ट्रीय मीडिया कभी क्रिश्चियन फंडामेंटलिज्म,ईसाई अंधविश्वास,ईसाई पोंगापंथ आदि का कवरेज नहीं देता। बहुराष्ट्रीय चैनलों को देखकर यही लगेगा पश्चिमी देश अंधविश्वास और पोंगापंथ से एकदम मुक्त हैं। सच्चाई यह नहीं है।तीसरी दुनिया की तरह पश्चिम में भी अंधविश्वास है,पोंगापंथ है,तत्ववादी संगठन हैं। पश्चिमी दृष्टिकोण मुसलमानों के द्वारा न्याय,शोषण,दमन,इतिहास आदि के बारे में कही गयी बातों को अस्वीकार करता है।जबकि इस्लामिक जगत के बारे में अमरीका ने जो कुछ कहा है उसे महत्वपूर्ण मानता है। अमरीकी नीति निर्धारकों की नजर में तीसरी दुनिया अविकसित है। यहाँ परम्परागत जीवनशैली का वर्चस्व है। इससे मुक्ति के नाम पर तीसरी दुनिया के आधुनिकीकरण पर जोर दिया जा रहा है। अमरीकीकरण पर जोर दिया जा रहा है। अमरीकी जीवन शैली,सैन्य सहयोग,सांस्कृतिक उत्पादों के अबाध प्रवेश और उपग्रह चैनलों के अबाध प्रसारण पर जोर दिया जा रहा है। मीडिया में अमरीकीकरण के नाम पर 'जनप्रिय दिमाग', 'मूर्खतापूर्ण खर्चों' और 'सैन्य सामानों' की खरीद पर जोर दिया जा रहा है। भ्रष्ट शासकों और अमरीका के बीच रिश्ते मजबूत हुए हैं। दैनन्दिन राजनीति में अमरीका का हस्तक्षेप बढ़ा है।
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