मुंबई आतंकी हमले की बरसी पर टीवी चैनलों पर बैठे गृहमंत्री चिदम्बरम् बौने और झूठे लग रह रहे थे। कई चैनलों पर उनका साक्षात्कार दिखाया जा रहा था और चैनलों के संपादक बगैर किसी होमवर्क के केन्द्र सरकार के पब्लिक रिलेशन ऑफीसर का काम कर रहे थे। इस काम में राजदीप सरदेसाई और बरखादत्त सबसे आगे हैं। टीवी पत्रकारिता के सारे इनाम भी इन्हें ही मिलते हैं। सरकारी जनसंपर्क साधने में भी ये ही सबसे आगे रहते हैं।
जनसंपर्क करते हुए ये लोग बता रहे थे कि सरकार क्या-क्या कर रही है। यह नहीं बताते कि सरकार के द्वारा जो किया जा रहा है उसकी सीमा क्या है,संभावनाएं क्या हैं और वे कौन से क्षेत्र हैं जहां सरकार अभी पहुँच ही नहीं पायी है। टीवी चैनल यह भी नहीं बताते कि कैसे केन्द्र सरकार ने 26/11 के लाइव कवरेज को नापसंद किया था। उस समय किस तरह चैनलों ने आचार संहिता का उल्लंघन किया था। और केन्द्रीय मंत्रालय के द्वारा कैसे झाड़ पड़ी थी और कैसे भेड़ की तरह मिमियाते हुए सूचना प्रसारणमंत्री के पास चैनलों के संपादक गए थे। केन्द्रीय मंत्रालय का मानना था चैनलों ने मुंबई आतंकी हमले के कवरेज के लाइव प्रसारण के समय भयानक भूलें कीं। इन भूलों का ही परिणाम था कि मुंबई में समाचार चैनलों का लाइव प्रसारण बंद करना पड़ा था। आश्वर्यजनक बात यह है कि किसी भी चैनल ने अपने चैनल पर आकर गलतियों को नहीं माना।
एक साल पहले हुए आतंकी हमले के बाद देश में केन्द्र सरकार कैसे आतंकवाद के खिलाफ काम करती रही है इसका जिस तरह से जयगान किया गया और एंकरों ने असुविधाजनक कोई भी सवाल नहीं पूछा, कोई तथ्य नहीं दिया। बस इस तरह के सवाल पूछे गए जिससे चिदम्बरम अपना प्रचार करते रहें। चैनलों का सरकार के लिए इस तरह अनालोचनात्मक मंच प्रदान करना टीवी पत्रकारिता की सबसे घटिया मिसाल है। यह तो सरकारी चैनल डीडी न्यूज से भी गयी गुजरी टीवी पत्रकारिता है।
चिदम्बरम ने चैनलों को दिए साक्षात्कार में कहा कि हमने आतंकवाद के खिलाफ पुख्ता तैयारियां कर ली हैं और अब मात्र 30 मिनट में मुंबई में विशेष सुरक्षा कमांछो पहुँच सकते हैं। यह भी कहा कि हमारी सरकार की सबसे बड़ी सफलता है कि हमने मुंबई घटना की पुनरावृत्ति नहीं होने दी। हमने पीड़ितों का ख्याल रखा है।
इस प्रसंग में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पाकिस्तान सरकार पाक में आतंकी संगठनों के खिलाफ जिस तरह कार्रवाई में लगी है उससे पाक से होने वाले आतंकी हमले की संभावनाएं कम हुई हैं। पाक सेना के द्वारा जेहादियों के खिलाफ पोजीशन लेने से स्थिति में सुधार आया है। पाक ने ऐसा क्यों किया है इसका प्रधान कारण है अमेरिका और मीडिया का दबाव न कि भारत सरकार का दबाव। भारत सरकार के दबाव में पाक सरकार नहीं है।
केन्द्र सरकार के लोग जिस समय संसद में विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी को लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर शैतान बनाने में लगे थे, 24 घंटे भी नहीं गुजरे थे कि लालकृष्ण आडवाणी ने 26/ 11 के पीड़ितों को केन्द्र सरकार द्वारा दी जाने वाली सहायता राशि और इस संदर्भ में केन्द्रीय शासन की विफलता को संसद में नंगा करके चिदम्बरम साहब की इमेज खराब कर दी। चिदम्बरम साहब के सारे दावे खोखले साबित कर दिए जब आडवाणी ने यह कहा कि एक साल में सभी पीड़ितों को सहायता राशि नहीं मिली है।
संसद में विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि 403 पीड़ितों के परिवारों को सहायता राशि दी जानी है, इसमें से एक साल में मात्र 118 लोगों को ही सहायता पहुँचायी जा सकी है। राज्यसभा में भाजपा सांसद प्रकाश जावडेकर ने बताया कि सहायताराशि पाने वाले कुछ लोगों के चैक बगैर भुगतान के वापस आ गए हैं। लोकसभा और राज्यसभा में भाजपा के द्वारा किए गए इस रहस्योदघाटन ने केन्द्र सरकार की पोल खोलकर रख दी है कि केन्द्र सरकार पीड़ितों के प्रति कितनी आग्रहशील है। केन्द्र सरकार के निकम्मेपन का चरमोत्कर्ष तब सामने आया जब यह पता चला कि जिन पीड़ितों को पेट्रोल पंप आवंटित किए गए हैं उन्हें अभी तक पेट्रोल पंप नहीं मिले हैं। उल्लेखनीय है केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री उसी शहर से आते हैं जिसे हम मुंबई कहते हैं। यानी पीड़ितों को समय रहते सहायता देने के मामले में गृहमंत्रालय और पेट्रोलियम मंत्रालय एकसिरे से निकम्मे साबित हुए हैं।
चिदम्बरम साहब ने चैनलों पर जब यह कहा कि हम आज आतंकवाद से मुकाबला करने की बेहतर स्थिति में हैं तो वे सरासर झूठ बोल रहे थे। विगत एक साल में कई बार आतंकियों ने असम में लगातार हमले किए हैं और किसी भी हमले के पहले और बाद में एक भी आतंकी पकड़ा नहीं गया है। यहां तक कि पुलिस और खुफियातंत्र भी उन पर नजरदारी रखने में विफल रहा है। यही हाल माओवादी आतंकियों से प्रभावित इलाकों का है। हमारा पुलिसतंत्र जानते हुए भी किसी माओवादी को पकड़ने में असफल रहा है।
माओवादी नेता किशनजी का निरंतर टेलीविजन चैनलों पर साक्षात्कार देना,लाइव साक्षात्कार देना, सैंकड़ों पत्रकारों के सामने एक अपहृत थानेदार को रिहा करना और सकुशल अपने घर चले जाना किस बात का संकेत है ? क्या अमेरिका में यह संभव है कि कोई आतंकी लगातार अमेरिका में रहकर टीवी चैनलों को साक्षात्कार दे,लाइव टॉक शो दे और सकुशल बना रहे।
उल्लेखनीय है बांग्ला चैनलों से लेकर राष्ट्रीय चैनलों तक सभी को किशनजी ने साक्षात्कार दिया लेकिन केन्द्रीय पुलिसबल उसे पकड़ नहीं पाए। जबकि यह व्यक्ति कम से कम पश्चिम बंगाल में लालगढ़ में अनेक हत्याओं को सम्पन्न कराने में शामिल रहा है। इसके अलावा बोडो उग्रवादियों के साथ केन्द्र सरकार का नरम रूख किस बात का संकेत है ? राज्य में कांग्रेस सरकार के रहते हुए अभी तक बोडो आतंकियों के नेटवर्क को केन्द्रीय वाहिनी नष्ट नहीं कर पायी है। यही स्थिति उत्तर-पूर्व के बाकी राज्यों में सक्रिय आतंकियों की है। वे छुट्टा सॉंड़ की तरह घूम रहे हैं और अनेक जिलों में उनकी समानान्तर सरकार चल रही है। आतंकवादी संगठनों के संदर्भ में इतनी व्यापक असफलता के बावजूद गृहमंत्री चिदम्बरम का अपने हाथों अपनी पीठ ठोकना और राजदीप सरदेसाई और बरखादत्त जैसे टीवी संपादकों का टीवी स्वॉंग भडैती से ज्यादा महत्व नहीं रखता।
सही लिखा आपने , आज मीडिया के बहुत से लोग सिर्फ़ सरकार की पीठ खुजाने का काम कर रहे हैं
जवाब देंहटाएंआपने बहुत सम्यक विचार किया है। अधिकतर समाचार चैनेल केन्द्र सरकार के साथ मिलकर इस मामले पर लीपापोती कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंअरे नहीं-नहीं जनाव, ये लोग सेक्युलर है, घोर सेकुलर, इसलिए इनके बारे में ऐसा मत कहिये !
जवाब देंहटाएंलेख के एक-एक अक्षर से पूरी तरह से सहमत… कुछ गुण्डों ने घर मे घुसकर माँ को मारा-पीटा है और हमें सलाह दी गई है कि सहिष्णु बने रहो… मोमबत्तियाँ जलाओ… चलो माना कि गुण्डों के घर में घुसकर मारना नहीं आ पाया 60 साल में, लेकिन किस्मत से एक-दो गुण्डे पकड़ में आ गये हैं उन्हें क्यों दामाद बनाकर रखा गया है? ज़रा सोचिये कसाब पर खर्च किये जा चुके 32 करोड़ से कितने स्कूल बनाये जा सकते थे। और अफ़ज़ल पर पता नहीं कितने खर्च किये जा चुके हैं… मानवाधिकारवादी उसे भी छुड़ाने में लगे हैं… फ़िर भी लोग कहते हैं कांग्रेस का हाथ हमारे सर पर सदा बना रहे…। सुना है कि हिजड़ों को भी कभी-कभी गुस्सा आ जाता है, लेकिन शायद भारत के लोग, सरकारें, नेता सब के सब उनसे भी गये-गुजरे हैं…
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