बीबीसी लंदन के द्वारा हाल ही में कराए विश्व मीडिया सर्वे में बताया गया है कि आम यूरोपीय नागरिक का
मीडिया के प्रति भरोसे का भाव नहीं है। अब वह मीडिया को संदेह की नजर से देखता है। सर्वे से पता चला है कि मात्र 12 प्रतिशत यूरोपीय ही मीडिया पर भरोसा करते हैं। उत्तर अमेरिका में 15 प्रतिशत ,प्रशांत महासागरीय एशियाई देशों में 29 प्रतिशत और अफ्रीकी देशों में 48 प्रतिशत जनता मीडिया पर भरोसा करती है.
लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस के द्वारा कराये गये शोध में बताया गया है कि यूरोपीय नागरिकों की दशा यह है कि जब मीडिया का जबर्दस्त प्रचार अभियान चलता है तो यूरोपीय नागरिक जल्दी ही मीडिया के दबाव में आ जाते हैं।
मीडिया अपने पाठकों का शोषण करने में सफल हो जाता है। मीडिया बमबारी के कारण वे पूर्वाग्रह ग्रस्त खबरों पर भी विश्वास करने लगते हैं और अपने राजनीतिक विचारों को तुरंत ही बदल देते हैं। इसी संस्थान के वरिष्ठ प्रवक्ता मिशेल ब्रूटर ने अपने शोध के लिए यूरोपीय देशों के छह देशों के 1,200 लोगों के बीच में किए सर्वे के आधार पर उपरोक्त निष्कर्ष निकाला है.
सर्वे में यह भी पाया गया कि इकतरफा खबर की बमबारी का पाठकों पर सीधा असर हुआ है। ऐसी खबर पाठकों की राजनीतिक राय को मेनीपुलेट करने में सफल रही है। यूरोपीय पाठकों पर इकतरफा खबरों का मेनीपुलेटिव असर ही है जिसके कारण अधिकांश यूरोपीय नागरिकों का मीडिया पर कोई विश्वास नहीं है। वे मीडिया के प्रति संशय का भाव रखते हैं।
इस सर्वे का केन्द्रीय निष्कर्ष यह है कि मीडिया की बमबारी से पाठकों का दोहन करने में सफलता मिलती है। यहां तक कि शिक्षित भद्र लोग भी मीडिया बमबारी के दबाव में आ जाते हैं और मीडिया उनका मेनीपुलेशन करने में सफल हो जाता है। इस सर्वे में पाया गया कि यूरोपीय नागिरकों के अधिकांश हिस्से पर खबरों का अब कोई खास असर नहीं होता। यह भी देखा गया कि यूरोपीय नागरिकों में यूरोपीय पहचान के प्रति खास आग्रह है। यूरोपीय अस्मिता को वे ज्यादा तबज्जह देते हैं।
उनका अविश्वास जायज भी है !
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