बाबरी मस्जिद विध्वंस की जांच कर रहे लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट संसद में रखे जाने के बाद यह साफ हो गया है कि इसमें किसकी भूमिका थी। वैसे सारा देश जानता था कि बाबरी मस्जिद विध्वंस में किसकी भूमिका थी। समस्या यह थी कि इस तरह की विकट साम्प्रदायिक समस्या से भविष्य में कैसे लड़ें। केन्द्र सरकार ने इस रिपोर्ट के संदर्भ में जो कार्रवाई हेतु सिफारिशें दी हैं। वे गौरतलब हैं। ये सिफारिशें इसी कमीशन की रिपोर्ट से निकली हैं। अनेक ऐसी भी सिफारिशें हैं जिन्हें केन्द्र सरकार ने अभी अपनी कार्रवाई रिपोर्ट में शामिल नहीं किया है।
बाबरी मस्जिद विध्वंस की तैयारियां सिर्फ एक मस्जिद गिराने की तैयारियों तक सीमित नहीं थीं, इनका दीर्घकालिक राजनीतिक लक्ष्य था। दीर्घकालिक लक्ष्य था साम्प्रदायिक आधार पर भारत का स्थायी विभाजन करना। बहुराष्ट्रीय कंपनियां, कारपोरेट घराने और अमरीकी प्रशासन यही चाहता था। यही वजह है कि बड़े पैमाने पर अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से संघ परिवार के संगठनों को व्यापक फंड भी मिलता रहा है।
बाबरी मस्जिद विध्वंस की योजना का पहला सबक है कि ऐसी किसी भी राजनीतिक कार्रवाई,कार्यक्रम और आन्दोलन को सक्रिय होने से रोका जाए जो देश का सामाजिक,राजनीतिक विभाजन करने वाला हो। देश की एकता के सामने समस्त राजनीतिक लक्ष्य बौने हैं,अप्रासंगिक हैं।
लिब्रहान कमीशन का दूसरा बड़ा सबक यह है कि मीडिया और नौकरशाही को साम्प्रदायिक प्रचार अभियान और हितसाधन का अस्त्र न बनने दिया जाए। संघ परिवार अपने साम्प्रदायिक लक्ष्य में इसलिए सफल होता रहा हे क्योंकि मीडिया और नौकरशाही का उसे व्यापक पैमाने पर अंध समर्थन मिलता रहा है। संघ अपने प्रचार अभियान के लिए मीडिया का सबसे ज्यादा दुरूपयोग करता रहा है। मीडिया की अपनी प्रकृति में निहित साम्प्रदायिक तत्वों,विचारधारा और कार्यशैली से कैसे लड़ा जाए ,इसके लिए किस तरह के संरचनात्मक परिवर्तन किए जाएं इनका अभी तक केन्द्र सरकार ने खुलासा नहीं किया है।
साम्प्रदायिकता की समस्या अभी किसी संगठन विशेष की समस्या नहीं रह गयी है बल्कि इसने व्यापक शक्ल अख्तियार कर ली है। इसने मीडिया,नौकरशाही और राजनीतिक दलों में स्थायी स्थान बना लिया है। साम्प्रदायिकता को अब आप संघ परिवार की समस्या कहकर हाथ नहीं छाड़ सकते।
संघ परिवार साम्प्रदायिकता का गोमुख है लेकिन आज इससे समूची राजनीतिक संरचना और संचार माध्यमों के बड़े हिस्से को अपनी विचारधारा के घेरे में ले लिया है। इस समस्या के प्रति तदर्थ उपाय इससे मुक्ति नहीं दिलाते। केन्द्र सरकार ने कार्रवाई रिपोर्ट में जो प्रस्ताव दिए हैं वे आधे अधूरे हैं और इस समस्या के प्रति केन्द्र के तदर्थ रवैयये को व्यक्त करते हैं1 केन्द्र सरकार का खासकर कांग्रेस पार्टी का साम्प्रदायिकता के साथ नरम-गरम का रिश्ता रहा है। साम्प्रदायिकता के खिलाफ विचारधारात्मक,संरचनात्मक परिवर्तनों को कांग्रेस ने कभी प्रमुख एजेण्डा नहीं बनने दिया।
भाईसाब बड़े जोर की कलम है।
जवाब देंहटाएंहद तो तब जब आप रिपोर्ट को बिना पढ़े इतना लंबा भाषण छाप मारा और सांप्रदायिकता पर इतनी लंबी टिप्पणी कर कर दी. आपको कांग्रसियों और कम्युनिष्टों की सांप्रदायिकता नहीं दिखती. ये कम्युनिष्ट देशभर के सैंकड़ों मठों और मंदिरों के हजारों एकड़ जमीन लूट चुके हैं ये सांप्रदायिकता नहीं हैं. सांप्रदायिकता ये भी नहीं है कि देश का प्रधानमंत्री कहे कि इस देश के संसाधनों पर सिर्फ मुसलमानों का अधिकार है. शर्म आती है ऐसी धर्मनिरपेक्षता पर.
जवाब देंहटाएंकांग्रेस ने देश पर चालीस सालों से ज्यादा शासन किया फिर भी कह रही है कि मुसलमान गरीब है और कभी सच्चर कमिटि बनती है तो कभी रंगनाथ.
थू ऐसी धर्मनिरपेक्षता पर. भगवान माफ करे इनके समर्थकों को.
jab ramsetu tode ka pryas kiya jata hai to koi nahi atta aur jab ek videsi ke namm per banai masjid todi jati hai to sab aise chillate hai jise inki maa mar gayr ho jab godhra main hindu jinde jalay jate hai to lalu jaise nautanki bazz ise hadse batata hai lakil jab is kand ke pratikriya pure jugrat main hoti hai to sabhi harami secular hinu chillate hai jaise inke parivar mare jaa rahe ho
जवाब देंहटाएंjab ramsetu tode ka pryas kiya jata hai to koi nahi atta aur jab ek videsi ke namm per banai masjid todi jati hai to sab aise chillate hai jise inki maa mar gayr ho jab godhra main hindu jinde jalay jate hai to lalu jaise nautanki bazz ise hadse batata hai lakil jab is kand ke pratikriya pure jugrat main hoti hai to sabhi harami secular hinu chillate hai jaise inke parivar mare jaa rahe ho
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