फूको का मानना है कि 'सेक्स' हमारा जीवन सत्य है। यह आधुनिक सभ्यता की आत्म-स्वीकृति का बुनियादी सिध्दान्त है। अन्तोनी गिदेन का मानना है कि आधुनिक विचारों को ऊर्जस्वित करने में मुश्किल से इससें कोई मदद मिलती है। एक अन्य विचार यह है कि सेक्स एक तरह से लत की संवृत्ति के रूप में सामने आता है।वह आधुनिक समाज में कामुक व्यवहारों को मजबूरी बना देता है। कामुक व्यवहारों की लत और अनिवार्यता के कारण ही पोर्नोग्राफी, कामुक पत्रिकाओं,फिल्मों आदि की व्यापक पैमाने पर खपत दिखाई दे रही है।
सवाल पैदा होता है कि कामुकता के प्रति हमारा रवैयया क्या होना चाहिए ? इस संदर्भ में पहली बात यह कि कामुकता को वैविध्यमय और स्वैच्छिक होना चाहिए। कामुकता का एकायामी रूप सामाजिक तनावों को जन्म देता है। हमारे समाज में कामुक वैविध्य के प्रति सहिष्णुता होनी चाहिए। कामुकता के संदर्भ में दूसरी बात यह कि कामुकता सिर्फ शारीरिक क्रिया-व्यापार तक सीमित नहीं है , उसकी राजनीति भी होती है। समाज किस दिशा में जाएगा इसके लिए कामुकता को सही नजरिए से देखा जाए। कामुकता को व्यक्तिगत बनाया जाए,साथ ही व्यक्तिगत जीवन के मानक और मर्यादाएं भी बनायी जाएं। कामुकता के नियमन में सत्ता और वर्चस्वशाली ताकतों का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। आंतरिक लगाव की धारणा को सही अर्थों में लागू किया जाए। व्यक्तिगत जीवन की आधारभूत संरचनाओं के निर्माण पर जोर दिया जाए। कामुकता के क्षेत्र में जनतंत्र की स्थापना की जाए। व्यक्तिगत जीवन का जनतांत्रिकीकरण किया जाए। कामसूत्र में कामुकता का समूचा विमर्श जनतांत्रिक या व्यक्तिगत इच्छाओं पर आधारित है। वहां सिर्फ सेक्स और काम क्रियाओं के बारे में ही सब कुछ नहीं कहा गया। बल्कि व्यक्ति की जीवनशैली के बारे में,उसकी निजता आदि के बारे में भी सुझाव दिए गए हैं। कामसूत्र में जोर- जबर्दस्ती,दण्ड ,सत्ता का दबाव, सामाजिक दबाव या पारिवारिक दबाव आदि का कहीं जिक्र नहीं है। व्यक्तिगत जीवन और कामुकता के जनतांत्रिकीकरण का यह आदिम दस्तावेज है।
बहुत उलझे हुए विषय पर कुछ सुलझे विचार !
जवाब देंहटाएंलेख में दी गई जानकारी बहुत ही अच्छी लेकिन, कई शब्द बहुत कठिन है। उनके अर्थ ढूढ़ने पड़े।
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