गुगल ने प्राइवेसी के बारे में तयशुदा सभी नियमों को धता बताते हुए नेट यूजरों की जासूसी शुरू कर दी है। यह खबर इंटरनेट संबंधी जानतांत्रिक अधिकारों की संरक्षक विश्व विख्यात संस्था ने जारी की है, इस संस्था का नाम है 'इलैक्ट्रोलिक फ्रंटियर फाउंडेशन''। आश्चर्य की बात यह है कि यह अपील जुलाई 2009 में अपडेट करके जारी की गई थी, इसके बावजूद भारत में इसके बारे में कोई सुगबुगाहट नहीं देखी गयी। बाद में सितम्बर 2009 में उन्होंने फिर से जारी किया है कि लोग गुगल के द्वारा किए जा रहे प्राइवेसी अधिकारों के हनन बारे में सचेत हों। सारीदुनिया के नेट लेखकों को भी यह अपील भेजी गयी है। इस अपील में बताए तथ्य के अनुसार अब गुगल वाले अपने सर्च ईंजन में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति का हिसाब रखने वाले हैं। आप सावधान हो जाइए। आपकी गुप्त सूचनाओं का कभी भी आपके खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है। गुगल की नयी प्रणाली के अनुसार अब बुक सर्च करने वालों का हिसाब रखा जाएगा। आप नेट पर कौन सी किताब पढते हैं, कहां से पढ़ते हैं, कितने पेज पढ़ते हैं,प्रत्येक पेज पर कितना समय देते हैं। साथ ही मार्जिन में क्या लिखते हैं, यह सब गुगल के रिकॉर्ड में रहेगा। इसके जरिए यूजर की रीडिंग आदतों का हिसाब रखा जाएगा, साथ ही उसकी प्राइवेसी पर भी नजरदारी रहेगी। प्रत्येक यूजर का व्यापक हिसाब किताब डिजिटल डोजियर में रहेगा।
आपकी रूचि क्या है, सरोकार क्या हैं। किस तरह की सूचनाएं आप पसंद करते हैं। इस सब पर गुगल की नजर रहेगी। अभी तक यह कानून है कि यूजर कहां जाता है, क्या पढ़ता है यह उसका निजी कार्यव्यापार है,लेकिन अब गुगल के द्वारा प्राइवेसी में सेंध लगाने के साथ प्राइवेसी की धारणा पूरी तरह ध्वस्त होने जा रही है। विभिन्न देशों की सरकारें यह दबाव डालती रही हैं कि यह बताया जाए कि लोग क्या पढ़ रहे हैं। गुगल की डिजिटल लाइब्रेरी में पैसे देकर किताब पढने से अच्छा है मुहल्ले की लाइब्रेरी में जाओ किताबें पढो,विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में जाओ, किताबें पढो।
आप क्या पढ़ते हैं और क्यों पढते हैं यह किसी को न बताएं, हम भारत के अनुभव से कह रहे हैं कि माओवादी साहित्य मिलने के कारण किसी भी व्यक्ति को सरकार पकड सकती है, पश्चिम बंगाल में अनेक लोगों के ऊपर जो आरोप लगाए गए हैं उनमें एक आरोप यह भी है कि तलाशी में माओवादी साहित्य मिला। ऐसी स्थिति में माओवादी साहित्य को यदि कोई पाठक नेट पर पढ़ता है और गुगल के द्वारा तैयार रिकॉर्ड हाथ लग जाता है तो आपकी खैर नहीं। यही स्थिति पोर्न वेब पर जाने वालों की भी हो सकती है। माओवादी लोगों से संवर्क रखने वालों की भी हो सकती है।
गुगल से कल भारत सरकार यह मांग कर ही सकती है कि माओवादी साहित्य की चर्च करने वालों,माओवादी संगठनों के ईमेल आदि का हिसाब किताब दो, गुगल वाले भारत सरकार को यह हिसाब किताब देने के लिए बाध्य हैं। वे चीन सरकार को उन तमाम बागी लोगों के ईमेल पते,ठिकाने दे चुके हैं और उनमें से अनेक जेलों में बंद हैं, सजाएं काट रहे हैं।
अमेरिका में मुसलमानों के ईमेल पेट्रिएट एक्ट के तहत जांचे गए हैं, मुसलमानों पर खास निगरानी रखी जा रही है। यही हाल ब्रिटेन का भी है एक भारतीय मूल के युवक को कुछ अर्सा पहले 25 साल की सजा इसलिए देदी गयी क्योंकि वह बार-बार बम बनाने वाली वेबसाइट पर जाता था, बम बनाने वाली किताबें नेट से पढ़ता था, लंदन की लाइब्रेरी से बम बनाने वाली किताबें लाता था, यानी बम बनाने वाली किताबें पढना अपराध करार दे दिया गया और उस युवक को अदालत ने 25 साल की सजा सुना दी। जबकि उस युवक ने कभी कोई हिंसा नहीं की, उसके पास कोई हथियार या विस्फोटक नहीं मिला,उसने कोई बम का धमाका भी नहीं किया था, उसने किसी को धमकी भी नहीं दी थी, सिर्फ ईमेल और रीडिंग की आदतों के आधार पर ब्रिटेन की अदालत ने उसे आतंकी करार दे दिया जबकि उसका किसी भी संगठन से कोई भी संबंध तय नहीं हो पाया,किसी भी संगठन का वह सदस्य भी नहीं था। महज रीडिंब आदत के आधार पर उसे जेल जाना पड़ा।
अब गुगल वाले सारी दुनिया में यूजरों का हिसाब रखने जा रहे हैं। यह एक खतरनाक कदम है इससे व्यक्ति की प्राइवेसी में दखलंदाजी बढ़ेगी साथ संविधान प्रदत मानवाधिकारों का भी इससे उल्लंघन होगा। हमें गुगल के इस तरह के प्रयास का जमकर विरोध करना चाहिए।
हमें गुगल से मांग करनी चाहिए कि
1. वह यूजर के डाटा किसी थर्ड पार्टी को न दे। सरकार को न दे। आप जब भी गुगल में कोई चीज खोजने जाएं तो उपनाम से खोज करें।सही नाम न बताएं।
2. आपके जो डाटा गुगल ने संकलित किए हैं वे तब तक किसी अन्य को न दिए जाएं जब तक संबंधित व्यक्ति की अनुमति नहीं मिल जाती। आपके बारे में गुगल ने जो भी सूचना एकत्रित की है उसे संपादित करने, खत्म करने का संबंधित व्यक्ति को अधिकार होना चाहिए।
3. आपने कौन सी किताब ली, किसके खाते से ली और किसके खाते में ट्रांसफर की इसके बारे में कोई जानकारी किसी भी कीमत पर अन्य पार्टी को नहीं दी जाए।
4. बुक सर्च में जाने वाले यूजरों की सूचनाओं को सरकार,विज्ञापन एजेंसियों और क्रेडिट कार्ड प्रोसेसर्स कंपनियों को नहीं बताया जाए।
हमें गुगल के Google CEO Eric Schmidt को तुरंत ईमेल भेजकर अपनी सुरक्षा के लिए उपरोक्त चार मांगे उठानी चाहिए। उन पर दबाव पैदा करना चाहिए। विभिन्न वेबसाइट के मालिकों को भी इस मामले में आवाज बुलंद करनी चाहिए। गुगल का बुक सर्च करने वालों के बारे में सूचनाएं एकत्रित करना नागरिकों के निजता या प्राइवेसी के अधिकारों का हनन है। हम सब मिलकर इसके खिलाफ बोले, ईमेल करें।
1) http://www.anonymizer.com/
जवाब देंहटाएं2) use firefox with ctrl+shift+p
3) Don't keep signed into google.
Happy Now? :)
ईस्वामि कह गये!!
जवाब देंहटाएंgood-nice
जवाब देंहटाएं@इस्वामी जी धन्यवाद आपका |
जवाब देंहटाएंजहाँ तक मुझे पता है .. गूगल हमारे बारे मैं एकत्रित की गई सुचना को आशानी से किसी सरकार को नहीं देती, चीन को छोड़ कर | हाँ वहां की सरकार यदि गूगल की पीछे हाथ धो कर पद जाए तो बात कुछ और है | अमेरिका मैं सरकार के लाख कोशिशों के बावजूद गूगल ने पूरी सुचना सरकार को नहीं दी है |
फिर भी यदि गूगल साड़ी सुचना एकत्रित कर रखती है ... तो आज-नहीं तो कल किसी ना किसी को बेच भी सकती है ... इसलिए हमें दुसरे सर्च इंजिन bing या yahoo को भी परखना चाहिए |