कल तक व्याकरण और छंद की मौत के फरमान पढ़े जा रहे थे। अब 'ट्विटर' ने छंद और व्याकरण को पुनर्जन्म दे दिया है। इंटरनेट पर सामाजिक नेटवर्किंग के साथ नई विधा 'ट्विटर' के जन्म ने व्यारकण के सीखने की संभावनाओं के नए रास्ते खोले हैं। 'ट्विटर' विधा असामान्य विधा है। इसमें आपको मात्र 140 अक्षरों में ही अपनी बात कहनी होती है,इतनी संक्षिप्त चर्चा ,इतने छोटे वाक्य हमने सिर्फ औरत के मुँह से सुने थे। छोटे वाक्य औरत की भाषिक संरचना का अभिन्न हिस्सा हैं। छोटे वाक्यों में लिखने की कला स्त्री की कला है। स्त्री के छोटे वाक्य छंदमय ध्वनि व्यक्त करते हैं। मन को आलोड़ित करते हैं। संचालित करते हैं। शिरकत को मजबूर करते हैं। 'ट्विटर' का 140 अक्षरों का खेल स्त्रीभाषा की श्रेष्ठतम उपलब्धि है। हाइपरटेक्स्ट भाषा में संक्षिप्ततम संवाद की सबसे बडी सफलता है। यह इंटरनेट के अनंत आकार में लिखने,लंबे संवाद करने,अंतहीन गद्य के विकल्प के आगमन की भी सूचना है।
'ट्विटर' के आने का अर्थ यह है कि अब आपको इस विधा का इस्तेमाल करने के लिए व्याकरण का बेहतर ज्ञान प्राप्त करना होगा। चूंकि सारी बात 140 अक्षरों में ही कही जानी है अत: आप छंदमय कविता में ही अपनी बात कह सकते हैं। इससे नेट की भाषा में आया गैर काव्यात्मक भावबोध नष्ट होगा।
उल्लेखनीय है कम्प्यूटर क्रांति और सूचना क्रांति की यह खूबी रही हे कि उसने शिक्षित को शिक्षित किया,प्रशिक्षित को प्रशिक्षित को प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए मजबूर किया है। जैसे पहले कोई व्यक्ति इंजीनियर था उसके पास अपने हुनर का प्रशिक्षण था,क्लर्क था उसे रजिस्टर भरना आता था, लेकिन कम्प्यूटर ने इन सबको नए प्रशिक्षण हासिल करने के लिए मजबूर किया।
ठीक वैसे ही 'ट्विटर' विधा नेट लेखन को पूरी तरह बदल देगी। यदि आपको इस विधा में लिखना है,संवाद करना है तो व्याकरण का अच्छा ज्ञान होना जरूरी है। काव्यात्मक अभिव्यक्ति में सिद्धहस्त होना जरूरी है। छंद में लिखने की कला का मास्टर बनना पडेगा। इसी परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखकर हाल ही में एक नयी किताब आयी है '' 140 करेक्टर्स:ए स्टाइल गाइड फॉर दि शार्ट फॉर्म''। इस किताब को लिखा है 'ट्विटर' के सह सर्जक डॉम सागुल्ला ने।
'ट्विटर' के सहसंस्थापक जेक डोर्सी ने लिखा है कि 140 करेक्टर के जरिए कोई भी दुनिया बदल सकता है। इस किताब के लेखकों ने प्रेस विज्ञप्ति में लिखा है 140 करेक्टर में ऑनलाइन सेवा यूजरों को सारी दुनिया में कहीं पर भी संपर्क,संवाद और संदेश देने की व्यवस्था प्रदान करती है। जब से 'ट्विटर' आया है इसने सारी दुनिया में लेखन के नए रूप को जन्म दिया है। इस विधा का नेट पर ज्यादातर लोग इस्तेमाल कर रहे हैं,वैसे यह मूलत: अत्याधुनिक फोन के जरिए होने वाली इंटरनेट सेवाओं के उपयोग के लिहाज से ज्यादा सुरक्षित और आरामदायह विधा है। इसे कुछ लोग एसएमएस का छोटा भाई भी कह रहे हैं। डोना सागुल्ला का मानना है 'ट्विटर' साहित्य का नया विधा रूप है। इसकी 140 करेक्टर में लिखने की सीमा ही इसकी क्षमता का आधार है। यह सभी किस्म की सर्जनात्मक अभिव्यक्ति की अनंत संभावनाओं के द्वार खोलता है। 'ट्विटर' पर लिखने के लिए व्याकरण का अच्छा ज्ञान वाक्य गठन की कला का आना बेहद जरूरी है। इस अर्थ् में यह व्याकरण की ओर युवाओं को मोड देगी। अभी हमारे बच्चे व्याकरण के प्रति जिस रट्टूभाव से पेश आते हैं आने वाले समय में उन्हें व्याकरण के प्रति अपनी रट्टूभावना को त्यागना पडेगा। व्याकरण रटने की चीज नहीं है। हमारी शिक्षा ने व्याकरण को रटने की चीज बनाकर व्याकरण की हत्या कर दी है। 'ट्विटर' के आने के बाद व्याकरण, छंद और काव्यात्मक अभिव्यक्ति की दिशा में पूरा समाज लौटेगा। छोटे सुंदर वाक्यों के संचार जगत लौटेगा। नेट के नीरस गद्य की जगह सुंदर काव्यात्मक अभिव्यक्ति के रूप देखने को मिलेंगे। घटिया भाषा और थर्ड ग्रेड चुटकुले नेट की कृपा से जिस तरह गद्य के आदर्श नमूने बने हैं। ठीक उसी तरह 'ट्विटर' एक नए काव्यात्मक संसार को पैदा करेगा।
'ट्विटर' में रीयल टाइम में संचार होता है। रीयल टाइम में सटीक वाक्य और काव्यात्मक अभिव्यक्ति वह भी 140 अक्षरों में,सबसे मुश्किल काम है। किंतु करोडों लोग यह काम कर रहे हैं। वे 'ट्विटर' पर जा रहे हैं। वे अनेक लोगों से जुड़े होते हैं। आमतौर पर तकनीक को मनुष्य विरोधी कहा जाता है, सच यह नहीं है, संचार तकनीक का समस्त कार्य- व्यापार मनुष्य को ज्यादा मानवीय बनाने से जुड़ा है। संचार तकनीक के विधा रूपों के साथ भी मानवीय कार्य-व्यापार जुड़ा है।
'ट्विटर' नेट विधा है। चुस्त-दुरूस्त सुंदर काव्यात्मक वाक्य उसकी अभिव्यक्ति के प्राण हैं। इसकी अभिव्यक्ति में प्रतीक भी प्रभावी होंगे। प्रतीक किसी बात के अनुरूप हो यह जरूरी नहीं है। बचपन में मास्टर का खेल खेलते समय मैंने मान लिया था कि बरामदे की रेलिंगें मेरी छात्र हैं। मास्टरी अनुशासन के निष्ठुर गौरव का अनुभव करने के लिए सचमुच के लड़कों को बटोरना जरूरी नहीं हुआ। इस नजरिए से देखें तो प्रतीक मान लेने की चीज है। मनुष्य का प्रतीक का कार्य व्यापार भाषा को लेकर आता है। प्रतीक के जाल में जल,आकाश और पृथ्वी के असंख्य सत्य खिंचे चले आते हैं। प्रतीक मनुष्य की अभिव्यक्ति की सबसे बडी उपलब्धि है। शब्द का प्रतीक हमारे मन के साथ मिलकर रहता है,जानकारी बढ़ने के साथ-साथ उसके अर्थ् का भी विस्तार होने में भी कठिनाई नहीं होती।
'ट्विटर' के भाषिक प्रयोग हमें हृदयावेग की चरम अनुभूति से भी मिलाते हैं। इनके जरिए सुकुमार भावों का भी सहज प्रवेश हो जाता है। जो मूर्ख हैं उन्हें भाषा का यह भावावेग समझ में नहीं आएगा। उन्हें 140 अक्षरों का खेल बेवकूफी लग सकता है। लेकिन 'ट्विटर' की शक्ति अब समझ में आने लगी है तेजी से उसके यूजरों की संख्या में इजाफा हो रहा है। आज ज्ञान , व्यापार और मार्केटिंग में इसका व्यापक इस्तेमाल हो रहा है। 'ट्विटर' की भाषा स्पष्ट होनी चाहिए। उसमें ठीक बात का ठीक मतलब होना चाहिए। साज-सज्जापूर्ण वाक्यों से उसे नहीं ढंकना चाहिए।
'ट्विटर' ज्ञान माध्यम का हिस्सा है। ज्ञान माध्यम में ज्ञान की भाषा का प्रयोग ही समीचीन होगा। ज्ञान की भाषा में स्पष्ट अर्थ व्यक्त होना चाहिए। यहां पर अभिव्यक्ति के बॉंकपन अथवा वक्रोक्ति का भी सुंदर इस्तेमाल हो सकता है। क्योंकि अभिव्यक्ति के बॉंकपन में कम अक्षरों में ज्यादा बातें संप्रेषित होती हैं। शब्द बने हैं ठीक -ठीक बताने के लिए उनको यदि अभिव्यक्ति के लिए घुमाव देना पडे तो यह भी करना चाहिए। कई बार 'ट्विटर' अनिर्वचनीय भावों को भी संकेतों के माध्यम से व्यक्त करते हैं। जो बात भाषा में कहने में असुविधा हो उसे आकृति,संकेत,प्रतीक आदि के जरिए कहते हैं। इसमें अक्षर कम खर्च होते हैं और शक्तिशाली संप्रेषण होता है। सोशल नेट ने भाषा का घेरा तोड़ा है खासकर 'ट्विटर' ने भाषा के नए मानक बनाने शुरू कर दिए हैं। यहां अभी स्पष्ट और अस्पष्ट दोनों किस्म के भाषिक प्रयोग चल रहे हैं।
'ट्विटर' में अभिव्यक्ति का बॉंकपन और नेट की एकांत साधना ये दोनों अभिन्न रूप से जुड़े हैं। नेट की अभिव्यक्ति कहने को सामाजिक होती है। लेकिन इस अभिवयक्ति को हम एकांत में महसूस करते हैं। ज्यादातर नेट यूजर नेट का पाठ अकेले पढते हैं। वे जहॉं पढ़ते हैं वहां और कोई नहीं होता। इस नजरिए से देखें तो नेट ने एकांत अनुभूति का व्यापक उत्पादन और पुनर्रूत्पादन किया है। एकांत अनुभूति के कारण ही सोशल नेटवर्किंग और नेट का अनेक लोगों पर दुष्प्रभाव भी देखा गया है।
नेट का सारा कार्यव्यापार अखण्ड है। इसे अलग अलग करके नहीं देखना चाहिए। इसमें वस्तु-बोध और रस बोध घुले मिले हैं। ये आकार,इंगित,सुर और संकेतों के जरिए हम तक पहुँचते हैं। इंटरनेट की अनुभूति दूर की अनुभूति है,वर्चुअल अनुभूति है, इसके बावजूद यही महसूस होता है कि वह हमारी निकटतर अनुभूति है,प्रबलतर अनुभूति है,गंभीर अनुभूति है।
इंटरनेट में जितने भी विधा रूप प्रचलन में उनमें आवेग और स्पीड का केन्द्रीय महत्व है। आवेग के माध्यम में भाषा भी आवेगपूर्ण होनी चाहिए। आवेग का धर्म है वेग। नेट चूंकि रीयल टाइम में वेग यानी स्पीड के कंधों पर सवार होकर संचार करता है अत: उसमें आवेग प्रधान वाक्य ही प्रभावशाली होते हैं। जब आप आवेग और वेग दोनों का संचार के लिए इस्तेमाल करते हैं तो यह काम हृदय के बिना संभव नहीं होता वेग से कही गयी बात हमेशा हृदय को सम्बोधित करती है। वेग के कारण वैचित्र्य भी पैदा होता है। जिस तरह बिजली के वेग में प्रकाश वैचित्र्य की अनुभूति होती है वैसे ही नेट की अभिव्यक्ति में वैचित्र्यमय अनुभूति होती है। वेग का वैचित्र्य ही इसकी अभिव्यक्ति के रंग को बदलता है। इसके सुर को बदलता है। वेग से संप्रेषित बात हमेशा अनुभूति लोक को संबोधित करती है। नेट के लेखक हों या 'ट्विटर' के 140 अक्षरों के संप्रेषक हों वे सभी अपने शब्द के द्वारा कहने को बाहरी जगत की घटनाओं को व्यक्त करते हैं लेकिन वेग से संवाद करने के कारण अपने अंदर की गति को भी व्यक्त करते हैं।
'ट्विटर' और नेट की धुरी है वेगपूर्ण अभिव्यक्ति। वेगपूर्ण अभिव्यक्ति के कई रूप प्रचलन में हैं। एक तरह नेट पर संचित सामग्री हे जिसका वेग के साथ प्रयोग करते हैं दूसरी ओर रीयल टाइम में 'ट्विटर' संवाद,संपर्क और संचार करते हैं। यहां अबाध उन्मुक्त और कृत्रिम दोनों ही किस्म का संचार उपलब्ध है। ऐसा वेगपूर्ण संचार भी उपलब्ध है जो जनघाती है। 'ट्विटर' में जो कथ्य है वह वेग के साथ आता है। ये आवेगपूर्ण वाक्य काव्यात्मक नहीं हैं तो इनसे हृदय को प्रभावित नहीं कर सकते लेकिन यदि यह काव्यात्मक अभिव्यक्ति है तो इससे हृदय डूबने उतराने लगता है। हृदय में स्पंदन होने लगता है। स्पंदन के संयोग से शब्द के अंदर कैसा चमत्कार पैदा होता है इसकी कल्पना करना संभव नहीं है।
'ट्विटर' पर संवाद करने वालों की बातें संबंधित विषय तक ही सीमित नहीं रहतीं, उसी तरह नेट पर बातें करने या लिखने वालों की बातें संबंधित विषय तक सीमित नहीं रहतीं बल्कि उसका अतिक्रमण कर जाती हैं। नए विषय ,नयी समस्या,नयी अनुभूति और नए किस्म के प्रभाव को जन्म देती हैं। इसी अर्थ में 'ट्विटर' अनिर्वचनीय को जगा देता है।
'ट्विटर' में अमूमन अभिधा में ही बातें कही जाती हैं इसके बावजूद आप चाहें तो लक्षणा और व्यंजना में भी अपनी बातें कह सकते हैं। नेट चूंकि विश्वमाध्यम है अत: इसमें रूढ शब्दों का प्रयोग अनेकार्थी होता है। शब्द विशेष का कौन सा अर्थ कहां लिया जाएगा कैसे लिया जाएगा यह अनुमान लगाना संभव नहीं है। विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर के एक वाक्य को लेकर जो बबाल मचा था वह हम सबको याद है। अभिधा में शब्द के अर्थ का निर्धारक तत्व है प्रसंग। एक प्रसंग में एक ही अर्थ होता है। वैसे सुविधा के लिए हमें इस कार्य में भर्तृहरि भी मदद कर सकते हैं। भर्तृहरि ने शब्द के अर्थ नियंत्रक को 'अभिधानियामक' कहा है। इसी प्रसंग में दूसरी बात यह है कि शब्द का अर्थ हमेशा वह होता है जो यूजर के मन में होता है। वह कभी वस्तुनिष्ठ नहीं होता बल्कि आत्मनिष्ठ होता है। वह आब्जेक्टिव नहीं सब्जेक्टिब होता है। विषयगत नहीं विषयीगत होता है।
सही बात है, ढेर ढेर सारी बकवास लिखने वालों को टिवटर के 140 अक्षरों का विचार करना चाहिए।
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंअच्छी टिप्पणी
जवाब देंहटाएंसत्य वचन..अच्छा विश्लेषण.
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